पुणे में कब बनेगा सावित्रीबाई फुले राष्ट्रीय स्मारक, उठने लगी आवाज

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जर्जर हालत में वह मकान, जहां ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला था।

लड़कियों के लिए खोले गए देश के पहले स्कूल की इमारत बदहाल


— हेमलता म्हस्के —

3 जनवरी। देश में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने वाली सावित्री बाई फुले की पुणे स्थित कर्मभूमि को कब राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाएगा? सावित्री बाई का नाम बहुत तेजी से देश और दुनिया में महिलाओं की प्रथम आदर्श के रूप में जन जन में व्यापक होता जा रहा है। उनको भारत रत्न से अलंकृत करने की भी मांग होने लगी है। इसलिए स्मारक बनाने की आवाज अब चारों ओर से उठने लगी है। तीन दिन पहले ही, पहली जनवरी को, भिड़े वाडा बचाओ मुहिम की ओर से फुले दंपति के सम्मान में रैली निकाली गई। मुहिम के प्रधान प्रशांत यतीश फुले का कहना है कि फुले दंपति के सम्मान के लिए सरकार और समाज दोनों को आगे आना होगा।

सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले की मदद से पुणे के भिड़े वाडा में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला था, उसकी तीन मंजिला इमारत अब पूरी तरह से जर्जर हो गई है। वह इमारत किसी भी समय ढह सकती है। यह सावित्री बाई को मानने वालों के लिए बहुत दुखद है। पुणे के भिड़े वाडा में लोगों की चहल पहल बढ़ गई है। पत्रकार, समाजसेवी, शोधार्थी सब वहां पहुंचने लगे हैं। इमारत की छतें बहुत पुरानी और जर्जर हो गई हैं, कब किस कमरे की दीवारें गिर जाएं, पता नहीं। खतरे की आशंका बढ़ गई है। जान-माल की क्षति हो सकती है।

स्थानीय प्रशासन या महानगरपालिका को तत्काल इस इमारत के जीर्णोद्धार के लिए कदम उठाना चाहिए। इधर देश दुनिया में सावित्री बाई की प्रसिद्धि बढ़ती ही जा रही है। उसके कारण भिड़े वाडा में लोगों की भीड़ बढ़ने लगी है। सभी की इच्छा पूरी इमारत देखने की होती है, कहां पर लड़कियां पढ़ती थीं। ((किस जगह सवर्ण विधवाओं को गर्भवती बनाकर आत्महत्या के लिए विवश होने वाली को आश्रय दिया जाता था।)) सावित्री बाई सिर्फ लड़कियों को पढ़ाती ही नहीं थी। उनके समय में विधवाओं पर बहुत अत्याचार होता था। इतिहास जानें तो यह पता चलता है कि चार साल में सौ से अधिक विधवाओं को इस इमारत में आश्रय दिया गया था। और उनकी जान बचाई गई थी। सावित्रीबाई और इनकी सहयोगी कहां क्या करती थीं आदि बातें अब सबकी जिज्ञासा का विषय बन गई हैं। देश में पुणे और सतारा सहित अनेक राज्यों में सावित्री बाई फुले के नाम से बड़े बड़े भवन बनाए गए हैं। उनके नाम से विश्वविद्यालय, स्कूल, कालेज और विद्यापीठ बन गए हैं। सैकड़ों अन्य संस्थाएं भी बनी हैं लेकिन उनके खुद के बनाए स्कूल के भवन की किसी ने सुध नहीं ली। वह स्कूल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। अब इसके जीर्णोद्धार की आवाजें उठने लगी हैं।

जबकि कुछ साल पहले कहा गया था कि पुणे के भिड़े वाडा में 1841 में सावित्रीबाई फुले द्वारा लड़कियों के लिए देश में पहली बार स्थापित स्कूल का एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में पुनर्विकास किया जाएगा और इसमें एक लड़कियों का स्कूल होगा। भिड़े वाडा के विस्तार का काम जल्द ही शुरू होगा। सात मंजिला इस भवन में पांच मंजिल स्कूल के लिए आरक्षित होंगी, जिसमें सभी आधुनिक सुविधाएं होंगी। स्कूल पीएमसी द्वारा चलाया जाएगा, और बेसमेंट में दुकानें होंगी, जो वहां पहले से ही स्थित हैं। लेकिन ये बातें सिर्फ कागजों और जुबानों तक सीमित हैं। हकीकत लेख के साथ चित्रों में देख सकते हैं।

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुणे के पुराने शहर में, एक आठ वर्षीय लड़की की शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा को रूढ़िवादी विचारों वाले स्थानीय समुदाय के कठोर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। डॉक्टर विश्राम रामजी घोले की बेटी ‘काशीबाई’ समाज सुधारक और शिक्षाविद् सावित्रीबाई फुले और अन्य शिक्षकों द्वारा संचालित बालिका विद्यालय की छात्राओं में से एक थीं। स्थानीय समुदाय के लिए हालांकि लड़कियों के लिए उद्यम करना, शिक्षित होना अस्वीकार्य था और उसने घोले को अपने बच्चे को स्कूल भेजने से हतोत्साहित करने का प्रयास किया। जब उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया, तो काशीबाई के रिश्तेदार माने जाने वाले कुछ लोगों ने कथित तौर पर बच्चे को जहर दे दिया।

“यह उन कई उपाख्यानों में से एक है जो सावित्रीबाई फुले द्वारा महिला शिक्षा की दिशा में काम करने वाली सामाजिक परिस्थितियों को स्पष्ट करते हैं। उनका काम अनुकरणीय है और लड़कियों तथा महिलाओं के शिक्षित होने का मार्ग प्रशस्त करता है। घोले, जो फुले परिवार के निकट सहयोगी थे, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति थे। दुर्घटना के बावजूद, उन्होंने अपनी दूसरी बेटी गंगूबाई को स्नातक स्तर तक शिक्षित किया।

सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की प्रमुख श्रद्धा कुम्भोजकर के मुताबिक 1848 तक फुले दंपति ने तात्या साहब भिडे द्वारा दिए गए स्थान भिडे वाडा में वयस्क शिक्षार्थियों के लिए एक स्कूल शुरू किया। उन्हें जल्द ही अपने सहयोगी और मित्र उस्मान शेख के वाडा में जाना पड़ा, क्योंकि रूढ़िवादी जनता के दबाव ने उन्हें अपनों से बहिष्कृत कर दिया। सावित्रीबाई ने उस्मान की बहन फातिमा शेख के साथ पड़ोस में लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। दो साल के भीतर पुणे में लड़कियों, शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए और भी स्कूल शुरू किए गए।

भारत की पहली अध्यापिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले को महिला सशक्तीकरण के लिए काम करने के दौरान कड़े संघर्षों को झेलना पड़ा। महिला अधिकारों की आवाज उठाने के दौरान उन पर कीचड़ फेंका जाता था। उन्होंने कन्याशिशु हत्या को रोकने के लिए भी काम किया। अभियान चलाए और नवजात कन्याशिशु के लिए आश्रम तक खोला, ताकि उन्हें बचाया जा सके। सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव के निधन के बाद दत्तक औलाद होते हुए भी खुद पति का अंतिम संस्कार किया जबकि इस कार्य के लिए उस समय महिलाओं पर कठोर पाबंदी थी।

वे समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है।  उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नाय गांव में 3 जनवरी 1831 में हुआ था। दस साल की हुईं तो उनका विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया। ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया और शिक्षिका बनाया। सावित्री बाई ने 1859 में गर्भवती बना दी गई विधवा महिलाओं के लिए केयर सेंटर बनाया। जहां आत्महत्या के लिए मजबूर विधवाओं को बेहतर जीवन जीने का मौका दिया गया।

सावित्री बाई को कोई जैविक संतान नहीं थी। उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया, जिसका नाम यशवंत राव फुले रखा। यशवंत को पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर बनाया। फुले दंपति ने सत्यशोधक समाज बनाया, जिसके जरिए बाल विवाह रोकने, अंतर्जातीय और विधवा विवाह को बढ़ावा देने का अभियान चलाया। सावित्री बाई ने अकाल के दौरान लोगों की मदद की। प्लेग फैला तो अपने बेटे के साथ रोगियों की भरपूर मदद की। 1897 में 10 मार्च को सावित्री बाई फुले का निधन हो गया।

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