— प्रभाकर सिन्हा —
जर्मनी हिटलर के शासनकाल में यहूदियों का कत्लगाह बन गया था। 25 लाख यहूदियों को गली के कुत्तों की तरह झुंडों में हांका गया, उन्हें यातना शिविरों में ले जाया गया और बड़ी निर्ममता से मार डाला गया। क्यों? क्योंकि वे जर्मन नस्ल के नहीं थे। लिहाजा, हिटलर के जर्मनी में उनके लिए कोई जगह नहीं थी और उनका हश्र बूचड़ख़ाने में लाए गए जानवरों जैसा होना था, क्योंकि उन्हें किसी और देश में जाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता था।
यह सब 1930 के दशक के अंतिम वर्षों से लेकर 1945 (जब हिटलर ने दूसरे विश्व युद्ध में शिकस्त खाने के बाद खुदकुशी कर ली) के दरम्यान हुआ।
जिस बड़े पैमाने पर यहूदियों की सामूहिक हत्याएं की गयीं वह स्तब्ध कर देने वाला था। जर्मनी और जर्मनी के कब्जे वाले भूभाग में 60 लाख लोग बड़ी निर्ममता से मार डाले गए। महायुद्ध समाप्त होने तक दुनिया इस जनसंहार के बारे में अनजान थी लेकिन यहूदियों के साथ किए जा रहे अमानवीय और यातनादायी सलूक के बारे में सबको पता था।
हिटलर ने जिस तरह से यहूदियों का सफाया किया और नरसंहार को अंजाम दिया उससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर बहुत प्रभावित थे और हिटलर से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने कहा था कि भारत के मुसलमानों के साथ भी यही किया जाना चाहिए। (हालांकि जर्मनों और यहूदियों के विपरीत, भारत के हिंदू और मुसलमान एक ही नस्ल के हैं, भले वे अलग अलग धर्म को मानते हों) हिंदू और भारत के धर्मान्तरित मुसलमान कहीं बाहर से नहीं आए हैं। यहां के मुस्लिम भी उसी तरह भारत के बेटे और बेटियां थे/हैं, जिस तरह हिंदू। लेकिन गोलवलकर अपनी किताब ‘वी आर अवर नेशनहुड डिफाइंड’ (1938) में लिखते हैं :
“जर्मन नस्ल का गौरव आज चर्चा का विषय है। नस्ल की शुद्धता और उसकी संस्कृति को बनाए रखने के लिए यहूदियों का सफाया करके जर्मनी ने सारी दुनिया को हैरान कर दिया है। नस्ल का गौरव यहां अपनी पराकाष्ठा में प्रकट हुआ है। जर्मनी ने यह भी दिखाया है कि जिन नस्लों और संस्कृतियों में मूलभूत भिन्नताएं हैं उनका एक संपूर्ण इकाई में घुलमिल पाना लगभग असम्भव है। यह हम हिंदुस्तान में रहने वालों के लिए एक अच्छा सबक है और हमें इससे लाभ उठाना चाहिए।”
गोलवलकर भारत के हिंदुओं की जर्मनों से और भारत के मुसलमानों की जर्मनी के यहूदी नागरिकों से तुलना करते हैं लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि जहां जर्मन और यहूदी अलग अलग नस्ल से ताल्लुक रखते थे वहीं भारत के हिंदू और मुसलमान एक ही नस्ल के हैं। वे इस तथ्य से भी आंख मूंद लेते हैं कि जहां जर्मनी के यहूदी किसी और देश से जर्मनी गए थे, वहीं भारत के मुस्लिम हिंदुओं की तरह भारत में ही पैदा हुए और भारत में ही पले- बढ़े हैं। इसलिए हिंदुओं की जर्मनों से और मुसलमानों की यहूदियों से तुलना करना न सिर्फ गलत था बल्कि बुरी मंशा से भी प्रेरित था। यहां रहने वाले हिंदू व मुसलमान, दोनों समुदायों के लोग, भारत के बेटे और बेटियां थे और हैं, अपने अपने धर्म को छोड़कर, बाकी सभी मामलों में वे एक जैसे हैं।
यहूदियों पर कहर बरपाने और उनका जनसंहार करने जैसे हिटलर के घोर अमानवीय कृत्यों को गोलवलकर ने भले काबिले-तारीफ माना हो, सारी दुनिया ने, जब उन कृत्यों का पता चला तो, उनकी एक स्वर से निंदा ही की थी। दरअसल, यूरोप के उदार लोकतंत्रों ने, जनसंहार को छिपाने या झुठलाने को दंडनीय अपराध माना है। ऐसा इसीलिए किया गया है ताकि भावी पीढ़ियों को उस तरह के अमानवीयकरण से बचाया जा सके जैसा हिटलर के जर्मनी में हुआ था।
जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब हिंदुत्ववादी क्या कर रहे थे? वे अंग्रेजों के एजेंट बने हुए थे और अंग्रेजी हुकूमत के उकसावे पर मुसलमानों के साथ इस तरह सलूक कर रहे थे जैसे वे देश के दुश्मन हों। यह प्रवृत्ति देश को विभाजन की तरफ ले गयी और महात्मा गांधी की सुनियोजित हत्या का सबब बनी।
स्वाधीनता संघर्ष के दौरान और बाद में भी हिंदुत्ववादियों को लोग तिरस्कार भरी दृष्टि से देखते थे लेकिन धीरे धीरे वे लोगों को बहकाने और बहकाकर सत्ता में आने में सफल हो गए और अब वे मानवता तथा राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत गंभीर खतरा बन गए हैं। उनका प्रभाव बढ़ने की परिणति हमारे देश के लोगों के अमानवीयकरण में ही होगी।