गांधी और गांधी के लोग

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— अरमान —

हात्मा गांधी का व्यक्तित्व राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र रहा है। उनके व्यक्तित्व और काम को लेकर पूरी दुनिया में बहुत सारे लेखकों द्वारा लिखा-पढ़ा जाता रहा है।हाल में अरविंद मोहन की पुस्तक गांधी कथा नाम से पांच खण्डों में आई है। यह पुस्तक गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हुए नेताओं, घटनाक्रमों को कथा के रूप में शानदार ढंग से नए अंदाज में पस्तुत करती है।

अरविन्द मोहन

अरविन्द मोहन वरिष्ठ पत्रकार व इतिहास के गहन अध्येताओं में से हैं। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी हुई विभिन्न परतों को जिस बारीकी से पाठकों के सामने रखते हैं, उससे लगता है कि पाठक ऐतिहासिक घटनाओं को घटते हुए देख रहे हैं। ‘गांधी कथा’ के पहले भाग में कुल 29 कहानियां हैं। ये उन व्यक्तित्वों की कहानियां हैं जो गांधीजी से जुड़े रहे, जिनका सीधा संबंध गांधी जी के जीवन और आजादी के आंदोलन से था। जिनका जीवन प्रत्यक्ष ढंग से गांधीजी से प्रभावित रहा। इनमें प्रमुख हैं सरदार पटेल, नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना कलाम आज़ाद, सरोजनी नायडू, सुभाष चन्द्र बोस, राजाजी, मजहरुल हक, कृपलानी, ब्रजकिशोर प्रसाद, जाकिर हुसैन, मदन मोहन मालवीय, बादशाह ख़ान, राजकुमारी अमृत कौर आदि।

स्वयं लेखक के अनुसार इस प्रसंग में जो कहानियां आई हैं वे भागीदारों, चश्मदीदों या भागीदारों के मुंह से सुनाई गई हैं। लेखक द्वारा इन संदर्भों को उठाने का प्रमुख कारण नये संदर्भों में नया अर्थ जानने तथा इन नायकों के बारे में बन रही भ्रांतियों को दूर करने से है। एक दूसरे कारण के रूप में लेखक का यह आग्रह है कि हमारे आज के राजनीतिक नेतृत्व को एक प्रकार से आईना दिखाना कि केवल भाषण कला, डिजाइनर कपड़े, ईवेंट मैनेजमेंट, मीडिया मैनेजमेंट, जाति, धर्म तथा राष्ट्र के ऊपर झूठा खतरा दिखाकर सत्ता हथिया लेना ही राजनीति नहीं है बल्कि हमारे राजनेताओं ने खासकर गांधीजी, जो राष्ट्रपिता कहलाये उन्होंने एक साथ कई मोर्चों पर काम किया। एकसाथ मुल्क की आजादी की लड़ाई, उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष, राष्ट्र निर्माण के स्वराज आधारित सपने, देश की नैतिक ताकत को खड़ा करना था, महिला शक्ति को जागृत करना वह भी उस समय जब महिला शिक्षा न्यूनतम थी।

‘गांधी कथा’ के दूसरे खंड में कुल जमा 34 कहानियां हैं। ये कहानियां उन नायकों की हैं जो गांधीजी से प्रभावित या उनसे प्रेरित होकर रहे, इनमें कइयों ने अपना ऐश्वर्यपूर्ण जीवन त्याग दिया। आजीवन गांधीजी के होकर रहे, उनके बताए रास्ते पर चलते रहे, सत्ता संरचना और व्यक्तिगत प्रचार-प्रसार से दूर बिराने में जहाँ कहीं रहे, गांधी के रास्ते को मजबूती से पकड़े रहे।

लेखक को इस खंड में नायकों का चुनाव करते हुए दुविधा से गुजरना पड़ा तो इसका कारण है, क्योंकि ऐसे नायकों की संख्या बहुत बड़ी है. इस काम में स्वयं लेखक के गांधीवादी पिता श्री शंभुनाथ मिश्र द्वारा लेखक के बनाये गए मानस ने उनकी मदद की, जिनका आजीवन बहुत ही गहरा सरोकार गांधी के विचारों और काम से था। लेखक ने जिन 34 नायकों का चुनाव किया है उनमें देशी-देशी दोनों तरह के लोग हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र के माहिर लोग रहे हैं।इनमें प्रमुख हैं नरहरि पारिख, कस्तूरबा, स्वामी आनंद, शंकरलाल बैकर, एंडरुज, हेनरी पोलाक, श्लेसिन, पादरी डोक, छोटेलाल, राजकुमार शुक्ल, प्रजापति मिश्र, ठक्कर बापा, बंगाली सतीश बाबा, दुर्गा देशमुख, मीराबेन, नारायण भाई देसाई आदि।

इन तमाम नायकों का काम अद्भुत है। पाठकों को पढ़ते हुए आश्चर्य होगा, कई नायक तो मानवीय मूल्यों की दृष्टि से असाधारण और अद्भुत लगते हैं। ये वे नायक हैं जो इतिहास की किताबों में नहीं मिलते हैं, गांधीजी से शब्द उधार लेकर कहें तो कथित इतिहास की धारा तो असाधारण-असहज अस्वाभाविक बातों को दर्ज करती है।ये कार्यकर्ता सहज और स्वाभाविक सत्याग्रही हैं, इन्हें वर्तमान मुख्यधारा की इतिहास दृष्टि से दर्ज नहीं किया जा  सकता है।

कथा का तीसरा खंड कथानुमा वैचारिकी के रूप में लिखा गया है, जो कुल जमा 27 अध्यायों में बंटा हुआ है। इस भाग में राष्ट्रीय आन्दोलन के अलग-अलग पक्षों व प्रसंगों की चर्चा की गई है, जिसका संबंध गांधीजी और राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान और उसके विकास की प्रक्रिया से है।इन अध्यायों को पढ़ने के बाद पाठकों को आजादी के आंदोलन के नेतृत्व पर आश्चर्य मिश्रित गर्व होगा। लेखक बहुत ही धीरज और मनोयोग से गांधी की रणनीतियों और उनकी वैचारिकी का आकलन करने की कोशिश करते हैं।वे अंग्रेजों के आने के पूर्व भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का भी आकलन करते हैं और ठोस अर्थशास्त्रीय भाषा और उसकी बहसों को भी सामने लाते हैं। इस प्रकिया में लेखक उन इतिहासकारों को भी चुनौती देते हैं, जिनका मानना है कि अंग्रेजों के आने के पहले भारत कुछ था ही नहीं, भारत आज जिस रूप में है वह अंग्रेजों की देन है। लेखक गांधीजी की लड़ाई की विलक्षणता का आकलन भी करते हैं। उनका मानना है कि गांधीजी को यूरोपीय सभ्यता की कमजोरियों और हिंदुस्तानी समाज की गड़बड़ियों की अच्छी समझ थी। इन दोनों को ध्यान में रखकर अपने आंदोलन और कार्यक्रमों की रणनीति बनाते थे।

लेखक के अनुसार गांधीजी अपनी तरह के उस्ताद थे, उन्हें मुद्दों की पहचान और उनका समाधान होने का अंदाजा था। वक्त की नजाकत तथा समाज की तैयारियों की गहरी समझ थी। गांधीजी का कुशल नेतृत्व व उनकी रणनीति ही थी जिसने 30 वर्षों में ही दुनिया के दो तिहाई हिस्से पर काबिज अंग्रेजी साम्राज्य को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इसके उदाहरण के रूप में इसी खण्ड के पहले अध्याय में ‘अंग्रेजों को नमक ने मारा’ शीर्षक को देखा जा सकता है। गांधीजी के नमक सत्याग्रह की रणनीति से कांग्रेस नेतृत्व के लोग बहुत खुश नहीं थे लेकिन गांधी को नमक सत्याग्रह और उसकी परिणति का अंदाजा हो गया था। नमक सत्याग्रह का प्रभाव दूरगामी हुआ। इस सत्याग्रह ने अंग्रेजी सत्ता की ताबूत में कील ठोंकने का काम किया, तब कांग्रेस के नेता भी आश्चर्य चकित रह गए।

गांधी कथा के चौथे खंड का नाम ‘गांधी ही गांधी ‘है। कथा के इस भाग में लेखक ने गांधियों की चर्चा की है। दरअसल इस शीर्षक का नाम गांधी परिवार होना चाहिए था लेकिन गांधी परिवार एक खास राजनीतिक परिवार के लिए रूढ़ हो गया है। इस खंड में लेखक ने उन व्यक्तियों की चर्चा की है जिन्होंने बड़े गांधी को बड़ा बनाने में अहम भूमिका अदा किया। उनका तप-त्याग और बलिदान किसी से कम नहीं है। लेखक लिखते हैं कई बार तो इन गांधियों ने जिनमें इसकी पत्नी, बेटे, बहू, पोते-पड़पोते, भाई-भतीजे तक ने कई पीढ़ियों तक के लोगों ने गांधियों से रिश्ता रखने की कीमत चुकायी। उनका मानना है कि इन्होंने गांधी जितना तो नहीं लेकिन पूरी क्षमता और भरपूर समर्पण से समाज का काम किया। गांधी जिन मूल्यों के लिए लड़ते रहे उसे आगे बढ़ाया। गांधी नामक सूरज के सामने ये सारे गांधी तारे की छुप जाते हैं, कई बार ये स्वयं भी अपने को छुपा देते हैं। इस अध्याय में लेखक इन गांधियों का नाम लेकर इनके तप त्याग समर्पण को दिखाने और चिन्हित करने का काम करते हैं। इस अध्याय के प्रमुख शीर्षक हैं : गांधी का बेटरहाफ थीं कस्तूरबा, छुआछूत के सवाल पर बहन को छोड़ा, देवदास की जल्दबाजी, आखिर के सबसे घनिष्ठ थी मनु, सीधे-सच्चे रामदास, तीसरी पीढ़ी के नायक राजमोहन, दुनिया को परिवार बनाया गांधी ने,असल मणि से मणिलाल, हिन्द स्वराज की सीख, गांधी के बेटे ने गोडसे को माफ कर दिया, हत्या का चक्रव्यूह और अकेले गांधी, मौत का आभास था उन्हें, वह मनहूस दिन, आँखों देखा अंतिम संस्कार, कपूर आयोग से दोषी सावरकर, इत्यादि-इत्यादि।

अंतिम अध्याय ‘मौत और कलाकारों की सूझबूझ’ में लेखक यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि गांधीजी को अपनी मौत की खबर हो गई थी। गांधी को कभी गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत से ईर्ष्या हुई थी, ईश्वर ने उन्हें वैसे ही मौत दी। लेखक एक प्रसंग का जिक्र करते हैं, गांधीजी खाना खाकर प्रतिदिन सिर में तेल की मालिश कराते थे। मौत के एक दिन पहले वे खाना खाकर सीधे सोने चले गए। तब उनकी सेवा में लगी मनु गांधी को आश्चर्य हुआ, जब मनु मालिश करने लगीं तो गांधीजी ने मनु से कहा आज एक बात तुझे कहना चाहता हूँ, जो कई बार पहले भी कह चुका हूँ। यदि मैं किसी रोग या छोटी सी फुंसी से भी मरूँ, तो तू जोर-जोर से दुनिया को कहना कि यह दंभी महात्मा रहा। तभी मेरी आत्मा को, भले ही वह कहीं हो, शान्ति मिलेगी। भले ही मेरे लिए लोग तुझे गालियां दें, फिर यदि मैं रोग से मरूँ, तो तुझे दम्भी पाखंडी महात्मा ही ठहराना। और यदि गत सप्ताह की तरह धड़ाका हो, कोई मुझे गोली मार दे और उसे मैं खुली छाती पर झेलता हुआ भी मुँह से ‘सी’ तक न करता हुआ राम का नाम रटता रहूँ, तभी कहना कि वह सच्चा महात्मा था……इससे भारतीय जनता का कल्याण ही होगा।’ इस अध्याय में पता चलता है कि कलाकारों ने गांधीजी के जीवन प्रसंगों, घटनाक्रमों को लेकर अदभुत कलाकृतियां बनाई हैं, इसके कई आश्चयर्जनक प्रसंग इस खंड में मिलते हैं।

गांधी कथा का पांचवाँ और अंतिम खंड 35 प्रसंगों, घटनाओं का कथाक्रम है। इस खंड में गांधीजी के ऐतिहासिक नेतृत्व की झांकी मिलती है, जहाँ नेहरू-पटेल सरीखे बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक की विभिन्न मुद्दों पर समझ विकसित करना दिखाई पड़ता है। इन तमाम प्रसंगों में कई बार गांधीजी बहुत कठोर नजर आते हैं तो कई बार लचीले। इनमें कई प्रसंग ऐसे मिलते हैं जहाँ सामान्य लोगों के जीवन और उनकी दुश्वारियों से गांधीजी स्वयं सीखते हैं तथा अपने जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाते हैं। इस प्रसंग में लेखक ने चंपारण में, गंदी साड़ी पहनी महिला को कस्तूरबा के माध्यम से नहाने और साफ कपड़े पहनने का संदेश देने और उस महिला के जवाब के उदाहरण दिये जा सकते हैं। इस घटनाक्रम के बाद गांधीजी के पहनावे में व्यापक बदलाव आया जैसे प्रेरित करने वाले प्रसंग हैं। लेखक के अनुसार गांधीजी के आंदोलन और उनकी रणनीति को किसी सरलीकरण के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। उन्हें जब जो अच्छा लगा उसे खुलकर किया, भले ही उनकी आलोचना होती रही। कई बार इन फैसलों को देखने के बाद ऐसा लगता है कि गांधीजी, अंग्रेजों और उनकी नीतियों के प्रति नरम रहे। लेकिन उन्हीं रणनीतियों की वजह से आजादी के आंदोलन को लाभ होता है और अंग्रेजों पीछे हटना पड़ जाता है। ये तमाम प्रसंग इसमें मिल जाते हैं।

इन पांच खण्डों में लिखी गई कथा, लेखक के अनुसार विधिवत इतिहास नहीं है, दरअसल एक वृहत-वृत्तांत है जिसे किस्साग़ोई की शैली में लिखा गया है। इनमें ढेर सारे प्रसंग हैं जो ऐतिहासिक घटनाओं से मिलकर बनते हैं।इसके केंद्र में गांधीजी तो हैं, साथ ही साथ-साथ बहुत सारे वे लोग हैं जिनका आजादी के आंदोलन और उसके बाद, समाज के नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ये सारे वे व्यक्ति हैं जो गांधीजी से प्रभावित रहे तो उनको प्रभावित किया भी। इन पांचों खण्डों को पढ़ने के बाद आजादी के आंदोलन के बारे अच्छी समझ बनती है, वहीं कई प्रचलित या प्रचलित की गई भ्रांतियाँ दूर होती हैं।

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