तमिलनाडु के राज्यपाल का एजेंडा क्या है?

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— विनोद कोचर —

भाजपा विरोधी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में, भारत के संविधान के प्रति निष्ठावान बने रहने और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने की शपथ लेकर नियुक्त किये जाने वाले राज्यपालों के कामकाज के संविधान विरोधी रवैयों को लेकर, केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने के बाद से ही, राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच बढ़ रहे विवादों का एकमात्र कारण यही है कि ऐसे सभी राज्यपालों की वैचारिक पृष्ठभूमि आरएसएस/भाजपा की साम्प्रदायिक जहर में डूबी हुई हिन्दूराष्ट्रवादी विचारधारा से संस्कारित है।

उपराष्ट्रपति बनने के पहले तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे जगदीप धनकड़, महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि आदि के, राज्यपाल के पद पर बैठकर किये जाने वाले संविधान और लोकतंत्र विरोधी कारनामों का संदेश भी यही है।

इन राज्यपालों की पहली और आखिरी निष्ठा किसके प्रति है? संविधान और लोकतंत्र के प्रति, या इन्हें नष्ट करके, हिन्दूराष्ट्र की स्थापना के प्रति?

सालों से सवाल उठ रहे हैं। लेकिन आमतौर पर ऐसे राज्यपाल न केवल प्रशासनिक कामों में दखल राज्य सरकारों को परेशान करते हैं बल्कि अपनी संघी विचारधारा को संवैधानिक विचारधारा पर तरजीह देकर वादाफरोशी करते हुए भी शर्मसार भी नहीं होते।

लेकिन अब तो तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने हद ही कर दी है।

जिन्हें तमिलनाडु के भाषाई, सांस्कृतिक और जातीय गौरव का राई रत्ती भी पता नहीं, ऐसे बिहारी बाबू आरएन रवि तमिलों को, डीएमके को और मुख्यमंत्री स्टालिन को ज्ञान बांट रहे हैं कि वे अपने राज्य का नाम तमिलनाडु से बदलकर तमिझगम कर दें!

राज्यपाल को, ‘नाडु’ शब्द को लेकर आपत्ति क्यों है?

‘नाडु’ शब्द का मतलब होता है, जमीन। लेकिन राज्यपाल का तर्क है कि, ‘तमिल इतिहास की गलत व्याख्या और अनुवाद की जटिलताओं के कारण नाडु शब्द का अर्थ देश या राष्ट्र-राज्य हो गया है। इस तरह यहां राज्य को तमिल राष्ट्रवाद के तौर पर देखा जाता है।’

क्या रवि बाबू तमिलनाडु के लोगों को ये समझा रहे हैं कि तमिल इतिहास की उनकी जानकारी सही और, पेरियार रामस्वामी और अन्नादुरई की जानकारी गलत थी?

ऐसा नहीं कि सदन में पहली बार राज्यपाल ने तमिलनाडु नाम को लेकर बयान दिया है। 4 जनवरी को भी राजभवन में हुए कार्यक्रम में उन्होंने अपने यही विचार रखे थे।राज्यपाल रवि के अनुसार, वर्षों से इस कथन को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया कि तमिलनाडु भारत का अभिन्न अंग नहीं है।

द्रमुक के साथ-साथ, बिहारवासी रवि महोदय भाजपा की सहयोगी पार्टी अन्नाद्रमुक को भी अपने इस गंभीर आरोप के घेरे में लपेट रहे हैं कि ये दोनों पार्टियां तमिलनाडु को भारत का अभिन्न अंग न मानकर, उसे एक अलग देश या राष्ट्र मानती हैं।

तमिलनाडु भारत का अन्य राज्यों की तरह अभिन्न अंग है और वहाँ निकट भूतकाल में भी कभी ऐसा कोई आंदोलन नहीं हुआ है जो तमिलनाडु को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए,भारत से अलग होने की मांग पर आधारित रहा हो।

लेकिन राज्यपाल का ये आरोप, अपने आप में, विभाजनकारी हिन्दूराष्ट्रवादी मानसिकता से उपजा हुआ बेहद आपत्तिजनक आरोप है। ऐसी ही मानसिकता के कारण, मोदीराज में, समरसता की ओर बढ़ चुके जम्मू-कश्मीर को, असंवैधानिक और गैरलोकतांत्रिक तरीके से 2019 में, अलगाववाद की जलती भट्ठी में झोंक दिया गया।

डीएमके ने, राज्यपाल के इस तर्क और सुझाव से असहमत होकर भारत के संविधान और लोकतंत्र के प्रति अपनी निष्ठा का ही संदेश दिया है। डीएमके के मुखपत्र “मुरासोली” ने यह लिखकर राज्यपाल पर तीखा प्रहार किया है कि,
“वे कहते हैं कि तमिलनाडु नाम एक संप्रभु राष्ट्र को दर्शाता है। क्या आपको राजस्थान नाम पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान या तुर्कमेनिस्तान जैसा लगता है? क्या महाराष्ट्र इनके लिए एक अलगाववादी नाम नहीं है?” केरल का पर्यटन नारा, ‘भगवान का अपना देश’, राष्ट्र-राज्य की स्थिति की मांग भी हो सकता है। क्या आपके लिए तेलुगु देशम पार्टी में ‘देशम (भूमि)’ खोजना समस्याग्रस्त नहीं है?”

डीएमके की सांसद कनिमोझी ने भी कहा है कि, “तमिलनाडु नाम हमारी भाषा, परंपरा, राजनीति और जीवन को ही इंगित करता है। यह भूमि हमेशा के लिए तमिलनाडु रहेगी।

राज्यपाल ने सिर्फ नाम पर ही आपत्ति नहीं उठाई, बल्कि यह भी कहा कि, ‘पूरे देश में जो स्वीकार्य होता है उस पर तमिलनाडु में ना हो जाती है और यह एक नियम बन गया है।’

ऐसा कहकर राज्यपाल ने आरएसएस के उस भारत तोड़क एजेंडे को ही उजागर किया है, जो अभिव्यक्ति एवं असहमति के बुनियादी अधिकार पर आधारित, भारत की विविधता में एकता वाली लोकतांत्रिक गणराज्यीय शासनप्रणाली को नष्ट करके एकात्मक शासन प्रणाली पूरे देश में लागू करने पर आमादा है।

क्या राज्यपाल ये बता सकते हैं कि ऐसे कौन-से मुद्दे हैं जो तमिलनाडु को छोड़कर पूरे देश में स्वीकार्य हैं?

आरएसएस/भाजपा परिवार को असहमति बर्दाश्त क्यों नहीं होती?

आरएसएस तो गांधी से सहमत नहीं, नेहरू से सहमत नहीं, विवेकानंद से सहमत नहीं, अम्बेडकर से सहमत नहीं, सरदार पटेल से सहमत नहीं। फिर भी लोकतंत्र और संविधान की उस पर ये कृपा रही कि उसे अपनी भारत तोड़क बातों को कहने का अधिकार मिला।

और अब केंद्र में सरकार बनते ही उसे वह असहमति बर्दाश्त नहीं हो रही है जिसका लोकतंत्र सम्मान करता है और जिसकी कृपा का दूध पीकर आरएसएस परिवार फल फूल गया है। जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना या नमकहरामी जैसी कहावतें ऐसी ही हरकतबाजों पर क्या लागू नहीं होती हैं?

आरएन रवि बिहार के रहने वाले हैं, अधिकारी रहे हैं और वे कोई बड़े इतिहासकार या पुरातत्त्ववेत्ता भी नहीं हैं। .फिर भी अपने आप को तमिलनाडु के इतिहास का महाज्ञाता समझते हुए वे इस हद तक आगे बढ़ गए कि राज्यपाल द्वारा सदन में पढ़े जाने के लिए राज्य सरकार द्वारा तैयार किये गए अभिभाषण को पढ़ते समय, जानबूझकर उन्होंने अभिभाषण के उस पैराग्राफ को ही सेंसर कर दिया जिसमें पेरियार रामस्वामी, अन्ना दुराई और अम्बेडकर का ससम्मान उल्लेख किया गया था। क्या राज्यपाल का ये कुकृत्य इन तीनों महापुरुषों को सरेआम अपमानित करने वाला कुकृत्य नहीं था? क्या वे इन तीनों महापुरुषों को अलगाववादी और भारत विरोधी मानते हैं?

सच तो ये है कि आरएसएस/भाजपा खुद ही ऐसी दिशा की ओर भारत की आर्थिक/सामाजिक/सांस्कृतिक व्यवस्थाओं को धकेल रहे हैं जिनका अंतिम परिणाम भारत के आर्थिक/सामाजिक और सांस्कृतिक बिखराव के रूप में ही सामने आएगा।

आरएसएस/भाजपा तमिलनाडु पर थोपे गए अपने इस हिन्दूराष्ट्रवादी राज्यपाल के जरिये, इतिहास, भूगोल का सवाल उठाकर और तमिलनाडु के सर्वमान्य महापुरुषों को अपमानित करके, पूरा देश बनाम तमिलनाडु का विवाद खड़ा कर रहे हैं।

अब देखने वाली बात यही रह गई है कि राष्ट्रपति और मोदी सरकार इस मामले में कौन-सा रवैया अख्तियार करते हैं?

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