आईसीआईएमओडी की रिपोर्ट कहती है कि अधिकांश हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में पर्यटन का विकास बहुत गलत तरीके से किया गया है.
— भगीरथ श्रीवास —
जोशीमठ की त्रासदी केवल उत्तराखंड का संकट नहीं है, बल्कि पूरे हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र (एचकेएच) में संकट का संकेत है। आईसीआईएमओडी (इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट) द्वारा 2019 में प्रकाशित अध्ययन “द हिंदुकुश हिमालय असेसमेंट” के अनुसार, इस क्षेत्र में 24 करोड़ से अधिक आबादी रहती है।
यहां से 10 नदी बेसिन की उत्पत्ति होती है। इन नदी बेसिन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 1.9 बिलियन लोग लाभान्वित होते हैं।” ऐसे में अगर हिंदुकुश हिमालय पर संकट आता है तो क्षेत्र की आबादी के साथ ही इसके संसाधनों पर निर्भर करोड़ों लोगों पर प्रभाव पड़ेगा।
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील इस क्षेत्र में बेलगाम पर्यटन स्थानीय पर्यावरण के लिए परेशानी का सबब बनकर उभरा है क्योंकि इसके दबाव के चलते जारी निर्बाध व्यावसायिक गतिविधियों से यह अपने प्राकृतिक स्वरूप को खोकर विकृत हो रहा है। भारत के हिस्से में आने वाला हिमालय क्षेत्र 2500 किलोमीटर लंबा और 220-330 किलोमीटर चौड़ा है और यह 11 राज्यों व 2 केंद्रशासित प्रदेशों में फैला है। करीब 5 करोड़ लोग इस क्षेत्र में रहते हैं।
आईसीआईएमओडी की रिपोर्ट कहती है कि अधिकांश हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में पर्यटन का विकास बहुत गलत तरीके से किया गया है। इस गलत विकास के चलते बने होटल, रेस्तरां, कैंपिंग साइट, गेस्ट हाउस आदि ने पर्वतीय पर्यावरण पर बुरा असर डाला है। पर्यटन ने यहां पारिस्थितिकी क्षरण में बहुत योगदान दिया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 के दशक से हिंदुकुश हिमालय में स्थित कुछ देशों को पर्यटन से फायदा पहुंचा है। हालांकि भूटान और चीन जैसे देशों ने अपने क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या सीमित की है, भले ही उसके पीछे राजनीतिक कारण हों। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में भी राजनीतिक अस्थिरता और संघर्षों के चलते पर्यटन समय के साथ कम हुआ है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां पर्यटन ने गति पकड़ी है।
पर्यटन के दुष्प्रभाव
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर गोविंद वल्लभ पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट (एनआईएचई) द्वारा जून 2022 में जमा की गई रिपोर्ट “एनवायरमेंट असेसमेंट ऑफ टूरिजम इन द इंडियन हिमालयन रीजन” में क्षेत्र में पर्यटन के दुष्प्रभावों की समीक्षा की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय प्रदेश को सकल घरेलू उत्पाद का 7 प्रतिशत पर्यटन-क्षेत्र से मिलता है जबकि पर्यटन पर काफी हद तक निर्भर उत्तराखंड के राजस्व में 2006-07 से 2016-17 के बीच इसकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत रही। जहां तक खर्च की बात है तो सिक्किम अपने कुल खर्च का 1.9 प्रतिशत पर्यटन पर खर्च करता है। शेष सभी भारतीय हिमालयी राज्यों में यह खर्च एक प्रतिशत से भी कम है।
रिपोर्ट के अनुसार, उपलब्ध सुविधाओं और बुनियादी ढांचे की क्षमता को देखते हुए पर्यटन का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण है। रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र में पर्यटन का विकास पिछले कुछ दशकों में बहुत तेजी से हुआ है। इसने क्षेत्र में बहुत सी समस्याएं खड़ी कर दी हैं। इसमें ठोस कचरे का अपर्याप्त प्रबंधन, वायु प्रदूषण, जल संसाधनों का क्षरण, प्राकृतिक संसाधनों का खत्म होना, जैव विविधता को नुकसान और पारिस्थितिक सेवाओं का नुकसान शामिल है।
उदाहरण के लिए, लद्दाख पानी की कमी वाला क्षेत्र है। यह ग्लेशियर या बर्फ के पिघलने से निकले पानी और सिंधु नदी पर निर्भर है। यहां एक स्थानीय निवासी की प्रतिदिन पानी की खपत 75 लीटर है जबकि एक पर्यटक प्रतिदिन 100 लीटर पानी की खपत करता है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालय क्षेत्र के 11 राज्यों के शहरी क्षेत्र प्रतिदिन 6,346 मीट्रिन टन ठोस कचरा पैदा करते हैं यानी हर साल 23.16 लाख मीट्रिक टन कचरा पैदा हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में सर्वाधिक 1792 मीट्रिक टन और इसके बाद उत्तराखंड में 1,528 टन कचरा पैदा हो रहा है। इस कचरे की एक बड़ी वजह पर्यटन है।
पर्यटकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि
लद्दाख को जब 1974 में पर्यटकों के लिए खोला गया था, तब करीब 527 पर्यटक यहां पहुंचे थे। इनमें भी करीब 500 विदेशी थे। पिछले दो दशक में लद्दाख आने वाले पर्यटकों की संख्या कई गुना बढ़ गई और 2021 में तीन लाख से पार पहुंच गई। हिमाचल प्रदेश में 2011 में 1.49 करोड़ पर्यटक पहुंचे जिनकी संख्या 2019 में 1.72 करोड़ हो गई।
कोरोना महामारी के दौरान 2020 में भी पर्यटकों का दौरा नहीं थमा और 30.56 लाख पर्यटक हिमालय प्रदेश गए। देवभूमि के नाम से लोकप्रिय उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन आकर्षण का केंद्र है। 2012-16 के दौरान यहां करीब ढाई करोड़ पर्यटक पहुंचे।
अकेले 2019 में यहां साढ़े तीन करोड़ से अधिक घरेलू पर्यटकों ने हाजिरी लगाई। लगभग 6 लाख की आबादी वाले सिक्किम में भी पिछले एक दशक में पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ी है। 2011 में यहां 5.52 लाख घरेलू पर्यटक पहुंचे थे। 2019 में इन पर्यटकों का आंकड़ा बढ़कर 14 लाख से अधिक हो गया। सभी हिमालयी राज्यों में यही ट्रेंड है, जिसने राज्यों को आर्थिक रूप से तो फायदा पहुंचाया लेकिन स्थानीय पर्यावरण को अपूरणीय क्षति भी पहुंचाई है।
(डाउनटुअर्थ से साभार)