रेनू गंभीर के न रहने पर!

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स्मृतिशेष : रेनू गंभीर


— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

इंडियन क्रिश्चियन सिमेट्री,पंचकुइया रोड, पहाड़गंज मे रेनू गंभीर के पार्थिव शरीर को जब कब्र में रखा जा रहा था,दुख और अवसाद के उन लम्हों में उनके साथ बिताए गए लगभग 50 वर्षों से अधिक के चित्र आंखों के सामने घूमने लगे। दिल्ली के सीताराम बाजार की आर्य समाज गली, में नशाबंदी के दफ्तर में पहली बार रेनू गम्भीर से बातचीत हुई थी। तब तक उनका विवाह साथी श्याम गंभीर से नहीं हुआ था। हमारे नेता मरहूम सांवल दास गुप्ता की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र वही था, एक दौर में नशाबंदी के दफ्तर में हर रोज इस बात की तैयारी होती थी कि अगले दिन कहां प्रदर्शन होना है, मोर्चा लगना है, गिरफ्तारी देनी है, उस समय सोशलिस्ट कार्यकर्ताओं के साथ-साथ दिल्ली के गरीब मजदूर मजलूम, रेहड़ी, पटरी, खोमचे, खोखे, झुग्गी-झोपड़ी, अकलियत, दलितों जिनको पुलिस और कमेटी, दबंगों द्वारा सताया जाता था, वे लोग अपनी फरियाद लेकर इमदाद की आशा में गुप्ता जी के दफ्तर में आते थे। महिलाएं जो सताई हुई होती थीं अधिकतर पहुंचती थीं। मुझे याद पड़ता है कि अगले दिन बाल्मीकि मंदिर अंगूर धट्टे पर ‘सहभोज’ (जाति तोड़ो) का आयोजन था। बाल्मीकि समाज के नेता कूड़े पहलवान का इसमें बहुत सहयोग था, जिसमें बड़ी संख्या में आसपास के बाल्मीकि तथा अन्य दलित जातियों के लोग भाग लेते थे। उसमें रेनू गंभीर एक वॉलिंटियर के रूप में वहां पर भोजन वितरित कर रही थीं। उनके उस दिन का वॉलिंटियर रूप आखिरी तक दिल्ली की सोशलिस्ट तहरीक में बना रहा। महिलाओं में कोई एक नाम स्थायी रूप से सोशलिस्ट सूची में हमेशा शामिल रहा तो वह रेनू गंभीर का था। पार्टी की हर गतिविधि में वे हमेशा बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थीं, समय-समय पर होने वाले प्रदर्शनों में भाग लेते हुए वह कई बार गिरफ्तार होकर तिहाड़ जेल की बंदिनी भी बनी। कुछ गिरफ्तारियों की मुझे आज भी याद है, अप्रैल 1970 के जनवाणी दिवस पर हुए प्रदर्शन में वे गिरफ्तार हुईं। सोशलिस्ट पार्टी द्वारा 1973 में किए गए प्रदर्शन में और लोगों के अतिरिक्त सोशलिस्ट नेता राजनारायण जी तथा मनीराम बागड़ी भी शामिल थे, उस गिरफ्तारी का रेनू और श्याम के जीवन में एक विशेष महत्त्व था। जब तक वे एक मित्र के रूप में थे परंतु राजनारायण जी और बागड़ी जी ने इनको आदेश दिया अब तुम दोनों वैवाहिक बंधन में बंध जाओ। बहुत ही सादगी से उनका विवाह संपन्न हो गया।

हमारे एक साथी मुकुंद भाई पारीख एक जबरदस्त सत्याग्रही तथा मजदूर नेता होते थे। खादी का साधारण कुर्ता-पैजामा, लंबे बाल तथा दिल्ली में कहीं भी जाना हो साइकिल से वे विचरण करते थे, उनके साइकिल के पीछे कागजों का एक मोटा पुलिंदा बंधा रहता था। दिल्ली के कई संस्थानों की मजदूर यूनियन के संचालक एवं अध्यक्ष भी रहते थे। मशहूर गंगाराम हॉस्पिटल की एंप्लाइज यूनियन के भी वे अध्यक्ष थे। एक बार लंबी हड़ताल हुई प्रदर्शन करते हुए हम लोग गिरफ्तार हुए उसमें रेनू गंभीर भी शामिल थीं।

रेनू गंभीर मात्र एक आंदोलनकारी, सत्याग्रही नहीं थीं, उनमें प्रशासनिक दक्षता भी कम न थी। जनता दल की सरकार के वक्त सोशल वेलफेयर बोर्ड की सदस्य भी बनीं। पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट की काउंसलर भी वो रहीं। सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल इत्यादि में भी उन्होंने कई पदों पर काम किया। महिला दक्षता समिति की वे एक प्रमुख नेता थीं। और अंत समय में वे नवगठित सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की दिल्ली प्रदेश की अध्यक्ष भी थीं।

उनके चेहरे पर मुस्कुराहट और विनम्रता हमेशा बनी रही। एक कुशल गृहणी की भूमिका निभाने के साथ-साथ आंदोलन की एक सक्रिय, पहली कतार की एक्टिविस्ट भी वे सदैव बनी रहीं। रेनू धार्मिक रूप से क्रिश्चियनिटी में विश्वास रखती थीं परंतु श्याम का परिवार ब्राह्मण संस्कारों का रहा, यहां भी रेनू और श्याम गंभीर का समाजवादी विचारों, आचरण का असली रूप देखने को मिला। धर्म की बंदिशों का कोई स्थान रेनू और श्याम गंभीर के जीवन में कभी पैदा नहीं हुआ। महिला अधिकारों और उस पर होने वाले जुल्मों, गैरबराबरी के खिलाफ दिल्ली में कभी भी, कहीं भी किसी के साथ भी हुआ हो, यह हो ही नहीं सकता था कि रेनू को पता लगे और वह उसमें शिरकत ना करें।

काफी लंबे अरसे से वे शारीरिक अस्वस्थता के कारण बिस्तर तक ही महदूद थीं, उस समय साथी श्याम गंभीर ने दोहरी जिम्मेदारी निभाई; एक तरफ घर-परिवार को चलाने की और दूसरी ओर रेनू जी की देखभाल की भी। एक सामाजिक-राजनीतिक परिवार होने के कारण साथियों, कार्यकर्ताओं का आर-जार इनके घर पर लगा रहता था, जो काम पहले रेनू जी करती थीं, अब वह श्याम और उनके परिवार के अन्य सदस्य कर रहे थे।

उनके जाने से दिल्ली की सोशलिस्ट तहरीक को जो धक्का पहुंचा है उस नुकसान की भरपाई होना फिलहाल मुश्किल लग रहा है। साथी श्याम गंभीर और उनके परिवार पर जो वज्रपात हुआ है, दुख की इस घड़ी में दिल्ली के सोशलिस्ट उनके साथ शामिल हैं, खड़े हैं।

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