मोदी सरकार के अमृत काल की उपलब्धियों के दावे कितने सही?

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— एस आर दारापुरी —

ज बजट स्तर में संसद में राष्ट्रपति महोदया के भाषण के माध्यम से मोदी सरकार ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है जिनकी शव परीक्षा जरूरी है। गिनाई गई उपलब्धियों की समीक्षा से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि यह अधिकतर अभौतिक एवं भावनात्मक हैं और भविष्य की संभावनाओं की अभिव्यक्ति है। एक भी उपलब्धि ऐसी नहीं है जो दर्शाती हो कि आम आदमी के जीवन स्तर में कोई सुधार हुआ हो। इसके विपरीत अमृत काल में असमानता, कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी में बढ़ोतरी, अराजकता, बहुसंख्यक का आतंक, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न तथा मानवाधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं धार्मिक स्वतंत्रता का हनन, कानूनों का दुरुपयोग एवं बुद्धिजीविओं तथा सरकार से असहमत लोगों की पड़तालना, निजीकरण, आर्थिक व्यवस्था का कार्पोरेटीकरण एवं तानाशाही प्रमुखता से परिलक्षित हुई है। वैसे तो भाषण में मोदी सरकार की अभौतिक उपलब्धियों तथा दावों की भरमार है जैसे दुनिया का भारत से प्रेरणा लेना तथा दुनिया का भारत को देखने का नजरिया बदलना आदि।

भाषण में उल्लिखित कुछ उपलब्धियों की समीक्षा निम्नवत है –

1. भाषण में देश के प्रत्येक नागरिक के लिए कर्तव्यों की पराकाष्ठा करके दिखाने की अपेक्षा की गई है। भाषण में कहीं भी नागरिकों के अधिकारों को संरक्षित करने एवं उनके उपभोग को सुगम बनाने की बात नहीं की गई है। मोदी सरकार का यह कृत्य भाजपा/आरएसएस की हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के ही अनुरूप है जिसमें फासीवाद के अनुरूप नागरिकों के केवल कर्तव्य होते हैं, उनके अधिकार नहीं।

2. भाषण में ऐसा भारत बनाने की बात कही गई है जिसमें गरीबी न हो। इससे स्पष्ट है कि सरकार खुद मान रही है कि देश में गरीबी है। परंतु सवाल पैदा होता है कि मोदी ने अपने शासन के 9 साल में गरीबी कम करने के लिए क्या किया है। प्रधानमंत्री गरीब खाद्यान्न योजना के अंतर्गत 80 करोड़ लोग 5 किलो मुफ्त राशन की लाइन में खड़े दर्शाते हैं कि देश में गरीबी का क्या स्तर है।

3. भाषण में कहा गया है कि हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल रही है। परंतु जमीनी सच्चाई यह दर्शाती है कि मोदी सरकार का यह दावा बिल्कुल खोखला है। क्या राफेल की खरीददारी में हुआ भ्रष्टाचार किसी से छुपा है? चुनावी बांड के माध्यम से पूँजीपतियों/कारपोरेट घरानों से अपनी पार्टी के लिए चंदे की वसूली मोदी सरकार की ही देन नहीं है? क्या भाजपा ने चुनाव एवं विधायकों की खरीददारी में अरबों रुपए लगाने का कीर्तिमान नहीं बनाया है?

4. भाषण में कहा गया है कि मोदी सरकार ने हर उस समाज की इच्छाओं को पूरा किया है, जो सदियों से वंचित रहा है। गरीब, दलित, पिछड़े, आदिवासी, इनकी इच्छाओं को पूरा कर उन्हें सपने देखने का साहस दिया है। मोदी सरकार के इन दावों को यदि धरातल पर परखा जाए तो यह दावे भी खोखले सिद्ध हो जाते हैं। गरीबों की हालत का आकलन ऊपर किया जा चुका है। दलित, पिछड़े और आदिवासियों के कल्याण की स्थिति यह है कि हाल में ही मोदी सरकार ने इन वर्गों को मिलने वाली प्री-मैट्रिक छात्रवृत्तियां खत्म कर दी हैं। इसी प्रकार रिसर्च फैलोशिप की राशि एवं पद कम कर दिए गए हैं। तकनीकी शिक्षा तथा मेडिकल कालिजों की फीस कई गुना बढ़ा दी गई है। शिक्षा का तेजी से निजीकरण हो रहा है जिससे इन वर्गों का शिक्षा से वंचित हो जाना तय है। इसी प्रकार चिकित्सा सेवाओं का निजीकरण भी इन वर्गों के लिए सबसे अधिक हानिकारक है। यही वर्ग बेरोजगारी कि सबसे अधिक मार झेल रहे हैं।

आदिवासियों के कल्याण के दावे की सच्चाई यह है कि आदिवासियों की जमीन छीनकर कार्पोरेट्स को दी जा रही है और उन्हें बेदखल किया जा रहा है। इसका विरोध करने पर उन्हें नक्सली तथा माओवादी कहकर मारा जा रहा है तथा जेलों में सड़ाया जा रहा है। उनके पक्ष में खड़े होने वाले लेखों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अर्बन नक्सल कहकर जेलों में डाला जा रहा है। आदिवासियों को स्थायी तौर पर आवास तथा कृषिभूमि देने के लिए यूपीए सरकार द्वारा 2006 में बनाए गए वनाधिकार कानून को लागू करने में मोदी सरकार कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है जबकि आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट तथा कुछ अन्य संगठनों द्वारा इस हेतु सुप्रीम कोर्ट से 2019 में आदेश भी पारित कराया जा चुका है।

उपरोक्त संक्षिप्त समीक्षा से स्पष्ट है कि बजट स्तर के राष्ट्रपति महोदया के भाषण के माध्यम से मोदी सरकार द्वारा अपनी उपलब्धियों के गिनाए गए दावे झूठे हैं तथा जमीनी सच्चाई से परे हैं। इसकी अगली तस्वीर बजट से और भी स्पष्ट हो जाएगी।


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