बेपनाह ॲंधेरे को सुबह कैसे कहूँ?

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— डॉ सुरेश खैरनार —

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने लोकसभा में कहा कि “मुझे 140 करोड़ जनसंख्या के देश की जनता का आशीर्वाद-कवच प्राप्त है !” यह बात गलत है ! क्योंकि भारत में अभी तक हुए चुनावों में किसी भी दल को शत-प्रतिशत वोट नहीं मिला है ! और रही बात आपके दल की, तो उसे अभी तक 37 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिला है ! साठ प्रतिशत से अधिक लोग सांप्रदायिकता के, और पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करने के कारण आपके दल के खिलाफ हैं ! और जबतक आप गौतम अडानी जैसे लोगों की मदद करते रहेंगे और 140 करोड़ जनसंख्या के देश में ध्रुवीकरण की राजनीति करते रहेंगे तबतक आपको और आपके दल को शत-प्रतिशत मतदान कभी भी संभव नहीं हो सकता ! यह हकीकत है !

गौतम अडानी भी, अपने जवाब में, हिंडनबर्ग रिपोर्ट को भारत के ऊपर हमला कह रहा है ! मतलब यह देश न होकर आपकी या गौतम अदानी की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो गया है ! और भारत का सर्वोच्च सदन, जहाँ इस देश के कानून बनाने का काम किया जाता है वहां अडानी के बारे में पूछे गए सवालों को, सदन की कार्यवाही के रिकार्ड से निकाला जा रहा है, इसे आप क्या कहेंगे?

क्या अडानी भारत की संसद को भी खरीद चुका है? राहुल गांधी एक दिन पहले अडानी उद्योग समूह के घोटालों की चर्चा करते हैं और सुना है कि हमारे पीठासीन अध्यक्ष महोदय ने अडानी से संबंधित टिप्पणियां संसद की कार्यवाही से हटाने का आदेश दिया; उनका यह आदेश किस बात का परिचायक है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतनी लंबी तकरीर में जवाहरलाल नेहरू का नेहरू सरनेम अब क्यों नहीं रखा जाता है जैसे बेसिरपैर के मुद्दे पर संसद का बहुमूल्य समय क्यों बर्बाद किया? पीठासीन अधिकारी की जिम्मेदारी थी कि प्रधानमंत्री संसद में चल रहे मुख्य मुद्दे पर जवाब दें; जबकि प्रधानमंत्री ने एक बार भी अडानी का नाम तक नहीं लिया !

मतलब आपने हमारे देश के, संविधान संरक्षण के लिए बनाये गये, सभी संस्थानों की गरिमा खत्म करके अपनी मनमर्जी से उनका इस्तेमाल करने की शुरुआत की है ! हमारे देश की प्रमुख एजेंसियों से लेकर वित्तीय संस्थाओं तथा मीडिया का मनचाहा इस्तेमाल से आगे बढ़ कर अब अब न्यायव्यवस्था को लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं ! विशेष रूप से लगातार कानून मंत्री, गैरकानूनी हरकतें किए जा रहे हैं ! और इसी से तंग आकर चार न्यायाधीशों ने अपने सरकारी आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा था कि “हमारे ऊपर काफी दबाव है !” इससे पूर्व भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा कोई भी उदाहरण नजर नहीं आता है. क्या यह हमारी न्यायिक व्यवस्था में फैले भय का लक्षण नहीं है?

आज से नौ साल पहले नागपुर में (1 दिसंबर, 2014) सीबीआई स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश ब्रजगोपाल हरकिशन लोया की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत की स्पेशल स्टोरी कारवान नाम की अंग्रेजी पत्रिका ने 20 नवंबर 2017 के अपने अंक में करते हुए लिखा था : “A Family Breaks Its Silence : Shocking details emerge in death of judge presiding over Soharabuddin trial”! This was followed, a day later, by another piece : “Chief Justice of Maharashtra High Court Mohit Shah offered Rs 100 crore to my brother for a favourable judgment in Soharabuddin case : Late Judge Loyas sister”.और अब तो इस विषय पर “Who Killed Judge Loya?” इस शीर्षक से 315 पन्नों की एक किताब भी निरंजन टकले नाम के पत्रकार ने प्रकाशित की है ! जिसका भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है !

और सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस चलमेश्वर के आवास पर, दिल्ली में इसी केस को लेकर प्रेसवार्ता आयोजित की गई थी ! लोया भी भारत की 140 करोड़ जनसंख्या के देश के एक नागरिक थे ! तथा उनकी मृत्यु के सिलसिले में प्रेसवार्ता करने के लिए बैठे चारों जजों की नागरिकता भारतीय ही थी ! और सबसे महत्त्वपूर्ण बात आज भी, ब्रजगोपाल हरकिशन लोया के सभी रिश्तेदार भी, भारत के ही नागरिकों में शुमार होते हैं ! और जिस सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी और उनके सहयोगी तुलसी प्रजापति की फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई वह भी !

और आपने अपने जीवन में पहली बार 10 अक्टूबर 2001 के दिन गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण के बाद, 2002 के 27 फरवरी को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में एस-6 कोच में जलाये गए 59 मुसाफिर भी भारतीय नागरिक थे ! और उसके बाद 28 फरवरी को उनकी लाशों को लेकर खुले ट्रकों में अहमदाबाद की सड़कों पर जुलूस निकालने वाले भी भारत के नागरिक थे ! और उन्हें यह सब करने की छूट देने वाले भी भारत के ही नागरिक थे ! इस सब के कारण जिन हजारों लोगों की मौत हो गई और कई औरतों के साथ बलात्कार किया गया वह भी भारत के नागरिक थे ! और इस कारण, एकाएक आपकी चौवालीस इंची छाती छप्पन इंची बन गई ! और दंगे में शामिल बाबू बजरंगी से लेकर माया कोडनानी और हजारों की संख्या में शामिल लोग भी, भारत के नागरिक थे !

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि आपने राजधर्म का पालन नहीं किया, और सोनिया गांधी ने आपको मौत का सौदागर कहा. तब इसे आपने पांच करोड़ गुजरातियों का अपमान बताया. मरने वाले भी भारत के नागरिक थे और मारने वाले भी 140 करोड़ जनसंख्या के देश के नागरिकों में शामिल थे ! और वर्तमान समय में भारत के अल्पसंख्यक समुदायों की जनसंख्या लगभग एक चौथाई हिस्सा है, जो आपके सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण असुरक्षित मानसिकता में जीने के लिए मजबूर हैं ! और वे भी भारत के नागरिकों में शामिल होते हैं. आप भरी लोकसभा में दावा कर रहे हैं कि आपको 140 करोड़ जनसंख्या का सुरक्षा-कवच प्राप्त है ! मतलब चालीस करोड़ से अधिक जनसंख्या के असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर रहते हुए ! आप 140 करोड़ जनसंख्या के सुरक्षा कवच का दावा कैसे कर सकते हैं?

उसी सांप्रदायिकता के आधार पर आपके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई है. और भारतभक्त ‘गौतम अडानी के प्राइवेट जेट में बैठकर आपने देश के चुनाव प्रचार के इतिहास में सबसे अधिक जनसभा को संबोधित करने का रेकॉर्ड बनाया. 2014 के लोकसभा चुनाव में आप भारत के सिर्फ 31 फीसद मतदाताओं के वोट पाकर प्रधानमंत्री बने थे; 69 फीसद लोगों ने अलग-अलग दलों को वो दिया था!

 2019 के चुनाव में आपके दल को 37.4 फीसद ही वोट मिले ! और आप कहते हैं कि 140 करोड़ लोगों का कवच मुझे प्राप्त है ! आपका यह दावा गलत है ! आज भी आपको दो-तिहाई लोग नहीं चाहते हैं !

फिर अचानक यह सुरक्षा कवच की बात कहाँ से आ गई ? यह तो मैंने केला खाया नहीं कहानी के जैसा है ! अभी आपको कौन सा खतरा दिखाई दे रहा है, जिससे 140 करोड़ जनसंख्या के देश के लोगों का सुरक्षा कवच प्राप्त होने की बात हो रही है ! आपको खुद को अच्छी तरह से मालूम है कि आपको कितने और कौन लोग पसंद कर रहे हैं ! फिर भी आप संपूर्ण देश की आबादी को आपका सुरक्षा कवच की उपमा दे रहे हैं; यह आपकी असुरक्षित मानसिकता का परिचायक है !

अडानी भी हिंडनबर्ग रिपोर्ट को भारत के ऊपर हमला कह रहा है ! दोनों दोस्तों की इस तरह की हरकतों को देखते हुए दाल में कुछ काला है, ऐसा लगता है ! क्या बात है कि दोनों देश की आड़ ले रहे हैं?

आपने 2014 में पहली बार सत्ता में आने के तुरंत बाद ही हमारी जांच एजेंसियों को अलग-अलग लोगों के ऊपर छापे डालने के काम में लगा दिया है ! तो एक छापा गौतम अदानी के प्रतिष्ठानों पर भी क्यों नहीं ! देश और दुनिया को पता चल जाएगा कि आप सचमुच निष्पक्ष भाव से राजकाज कर रहे हैं; यह आपकी छवि के लिए भी ठीक रहेगा ! लेकिन जांच का मतलब खाली खानापूर्ति नहीं होना चाहिए. घोटाले का खुलासा अंतरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसी हिंडेनबर्ग ने किया है तो जांच भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की ही होनी चाहिए! जिसके निष्पक्षता को लेकर कोई शिकायत न हो!

हमारे देश की जांच एजेंसियों के बारे में आप खुद ही पोपट की उपमा दे चुके हैं ! और वे गत आठ सालों से अपनी पोपट की भूमिका बखूबी निभा रही हैं ! यह किसी से अधिक आपको पता है इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी के द्वारा अडानी उद्योग समूह के घोटालों की जांच के लिए शुरुआत कर देनी चाहिए. लोकसभा में विरोधी दलों के नेताओं को गांधी को पढ़ने की सलाह देते हुए आपको देखा तो बहुत अच्छा लगा कि आपने गांधी को पढ़ा है ! गांधी तो सत्य को ही ईश्वर या ईश्वर ही सत्य मानने वाले लोगों में से एक थे ! और राम ही उनके आराध्य देवता थे !

और गत चालीस साल से भी अधिक समय से आप और आपकी पार्टी, अपनी संपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों के केंद्रीय मुद्दे में, राम के नाम पर राजनीतिक सफर करने वाले लोगों को, झूठ का सहारा लेना कहाँ तक उचित है ? क्योंकि आने वाले समय में आपको प्रभु श्रीराम का मंदिर निर्माण करने के बाद ही चुनाव प्रचार जो करना है ! तो आने वाले चुनावों में आपको जनता के सामने गौतम अडानी के साथ आपके संबंधों को लेकर जवाब देना होगा ! गाँधीजी तो रघुपति राघव राजाराम और पतित पावन सीताराम ! ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान ! जैसी सर्व धर्म समभाव का संदेश देने वाली प्रार्थना रोज अपनी प्रार्थना सभा में गाते थे ! क्या आपको उनकी प्रिय प्रार्थना पसंद है? और पसंद है तो इतनी सांप्रदायिकता की राजनीति आप क्या गांधीजी को पढ़ने के बाद कर रहे हैं? आपने गांधीजी की जगह विनायक दामोदर सावरकर को पढ़ने के बाद ही सांप्रदायिकता की राजनीति का रास्ता अपनाया है !

140 करोड़ जनता का हवाला देते हुए क्या आपने सोचा कि पसीना बहाने के बाद विभिन्न बैंकों में तथा जीवन बीमा कंपनी में जमा किये हुए लोगों के पैसे का क्या होगा? मतलब गौतम अडानी की कंपनियों में एलआईसी और एसबीआई का पैसा लगाने का फैसला किसके कहने से लिया गया? और वह भी हजारों करोड़ रुपए ! आज हमारे देश की सभी वित्तीय संस्थाओं की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में क्यों आ गई है?

एक सामान्य आदमी को अपना घर बनाने के लिए, बैंक से कर्ज लेने के पहले कितनी कागजी कार्यवाही से गुजरना पड़ता है? और गौतम अडानी को एक झटके में एक लाख करोड़ रुपये? वह बड़ी आसानी से इन्हीं बैंकों से कैसे और कौन सी गारंटी पर लेता है? और किसके कहने पर

1988 में अडानी समूह अधिकृत रूप से रजिस्टर्ड होता है ! और पैंतीस सालों के भीतर वह दुनिया में धनिकों की सूची में तीसरे नंबर पर आ जाता है ! यह सब किसकी मेहरबानी से हुआ?

आपने सदन में दुष्यंत कुमार जैसे क्रांतिकारी कवि की कविता उद्धृत की. मैं उसी कविता को पूरी देना चाहता हूँ ताकि देश को पता चलना चाहिए कि असल में मामला क्या है ! यह कविता दुष्यंत कुमार ‘साये में धूप’ नामक 64 पेज के ग़ज़लसंग्रह में प्रकाशित आखिरी ग़ज़ल है –

तुम्हारे पांवों के नीचे कोई जमीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं!
मैं बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूँ,
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं !
तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह,
तू एक जलील सी गाली से बेहतरीन नहीं!
तुम्हीं से प्यार जताए तुम्हीं को खा जाए,
अदिब यो तो सियासी है पर कमीन नहीं!
तुझे कसम है खुदा की बहुत हलाक न कर
तू इस मशीन का पुर्जा है, तू मशीन नहीं !
बहुत मशहूर है आएं जरूर आप यहां,
ये मुल्क देखने लायक तो है, हसीन नहीं!
जरा-सा तौर-तरीकों में हेरफेर करो!
तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नही!

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