बंगाल के बीरभूम में बंगला सांस्कृतिक मंच ने की विशाल रैली

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24 फरवरी. पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मुख्यालय शिवडी में 20 फरवरी को बंगला सांस्कृतिक मंच की विशाल रैली संपन्न हुई !

तीस से चालीस हजार की संख्या में हिंदू, मुस्लिम, महिलाओं और पुरुषों ने रैली में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. इनमें बड़ी संख्या युवाओं की थी!

गत 25-30 सालों से आरएसएस और उसकी राजनीतिक ईकाई बीजेपी वैसे तो पूरे पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए जबरदस्त कोशिश कर रहे हैं ! लेकिन बीरभूम जिला संथाली आदिवासी बहुल और झारखंड के सीमावर्ती इलाके से सटा हुआ होने के कारण, तथाकथित हिंदुत्व के एजेंडा के तहत वहाँ पैर पसारने की संघ की कोशिश जारी है ! वहाँ छोटे-छोटे पाड़ा में संघ शाखा चला रहा है !

इसकी काट के लिए बंगला सांस्कृतिक मंच बीरभूम जिले में विशेष रूप से सक्रिय है ! मंच की युवा इकाई लेस्ली फोस्टर नाम के एक ईसाई युवक के नेतृत्व में शुरू हुई है और इसने महिलाओं तथा किसानों से लेकर मजदूरों के बीच भी अपनी उपस्थिति दर्ज की है ! 20 फरवरी को शिवडी के मैदान में आयोजित दिनभर की रैली मुख्य रूप से सांप्रदायिकता के खिलाफ थी ! और बेरोजगारी, महंगाई तथा किसानों की समस्याओं तथा महिलाओं के उत्पीड़न तथा दलितों और आदिवासियों की समस्याओं को लेकर सभी वक्ताओं ने अपने भाषणों में बंगला सांस्कृतिक मंच के तरफ से जनआंदोलन की घोषणा की; और आने वाले लोकसभा चुनाव में किसी भी हाल में बीजेपी जैसे सांप्रदायिक दल को बंगाल से खदेड़ने के संकल्प के साथ रैली संपन्न हुई !

2017 के भूलागढ़ (जिला हावड़ा) के दंगे को रोकने के लिए, दंगे के भीतर घुसकर शांति-सद्भावना की कोशिश मंच ने की थी और इसमें उसे कामयाबी भी मिली! दंगे के बीच में हस्तक्षेप करके वहां शांति-सद्भावना कायम करने के साहसिक उदाहरण अपवादस्वरूप ही देखने में आते हैं ! बंगला सांस्कृतिक मंच ने आज से छह साल पहले ऐसा करके एक मिसाल कायम की है !

2017 में दंगे की स्थिति को देखकर प्रोफेसर समिरुल इस्लाम आईआईटी की शिक्षा के बाद, विदेश की अपनी आवश्यकता से अधिक पैसे देने वाली नौकरी को छोड़कर, अपने देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए वापस लौट आए; और उनके कुछ युवा मित्रों ने, मिलकर हस्तक्षेप किया था ! भूलागढ़ दंगे को रोकने में कामयाबी हासिल करने के बाद शायद सभी साथियों को लगा कि यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहनी चाहिए ! तो बंगाल में शांति, सद्भावना, और साथ-साथ सेवा के कामों को करते हुए, बंगाल के लगभग सभी जिलों में बंगला सांस्कृतिक मंच की इकाइयां स्थापित करने का प्रयास जारी है ! अब तक आधे से अधिक जिलों में बंगला सांस्कृतिक मंच की इकाइयां बन चुकी हैं !

बंगाल विधानसभा के पिछले साल के चुनाव में मंच ने ‘नो बीजेपी’ अभियान चलाया था ! और बीजेपी को बंगाल में रोकने में बंगला सांस्कृतिक मंच की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है ! और इसी तरह कोरोना के कारण, अचानक घोषित लॉकडाउन के समय, लोगों को मुखतः गरीब लोगों को, दो साल में ! दवा और आक्सीजन, तथा जीवनावश्यक वस्तुओं को मुहैया कराने से लेकर, जिन बच्चों की शिक्षा, तथाकथित डिजिटल तकनीक के अभाव में चलना असंभव थी, ऐसे क्षेत्रों में चलोमान पाठशालाओं की श्रृंखला मंच ने शुरू की ! बीरभूम और बर्धमान, मुर्शिदाबाद आदि जिलों में यह गतिविधि आज भी जारी है !

इसके अलावा सीएए जैसे विभाजनकारी कानून के खिलाफ बंगाल में मंच ने जबरदस्त आंदोलन किया ! और सबसे महत्वपूर्ण बात ! बंगाल के सीपीएम के नेता के अखिल भारत किसान सभा का नेता रहने के बावजूद बंगाल में किसानों का आंदोलन उस दौरान नहीं खडा़ हो सका था ! लेकिन बीरभूम जिले में, बंगला सांस्कृतिक मंच ने ट्रैक्टर ट्राली निकाली तथा केंद्र सरकार ने जो किसान विरोधी कानून पारित किये थे उसके खिलाफ आंदोलन किया!

बंगला सांस्कृतिक मंच सही मायने में समस्त बंगाल के नागरिकों का एक नया ऊर्जावान गैरराजनीतिक मंच है !सेकुलरिज्म के प्रति अपनी अटूट निष्ठा के चलते इसने सभी सेकुलर लोगों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया है और बीजेपी के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने का सुझाव दिया है !

बंगला सांस्कृतिक मंच शायद पश्चिम बंगाल में रचना और संघर्ष की सबसे बेहतरीन मिसाल है !

  – डॉ सुरेश खैरनार

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