— प्रो. राजकुमार जैन —
ब्रितानिया हुकूमत से लड़ते हुए अपने लड़कपन, जवानी को खपाकर खूंखार पुर्तगाली गुलामी के पंजे से गोवा को आजाद करवाने तथा साथ ही नेपाल की राणाशाही बादशाहत से लड़ रही नेपाली कांग्रेस के साथ जान को जोखिम में डालकर नेपाल की तराई के जंगलों में नेपाली पुलिस की गोली से किस तरह बचने तथा आजादी के फौरन बाद दिल्ली में नेपाल दूतावास पर नेपालियों के साथ हमदर्दी दिखाने के लिए जुलूस ले जाने पर अश्रु गैस के गोले की मार तथा इस जुर्म में 2 महीने की कैद की सजा पाने वाले डॉ राममनोहर लोहिया आजाद हिंदुस्तान में समाजवाद का अलख जगाने के लिए जब सड़क पर संघर्ष करते हुए फिर आजाद हिंदुस्तान की जेलों में यातना भोग रहे थे तो उस समय सब्र था कि अपनी पार्टी है, साथी हैं। परंतु अफसोस जब अपनी सोशलिस्ट पार्टी में भी सिद्धांतों पर अडिग रहने की सजा मिलने लगी तो मजबूरन अकेला चलने का फौलादी इरादा बनाकर सियासत के बियाबान में सुदूर दक्षिण हैदराबाद में अपना नया बसेरा ‘सोशलिस्ट पार्टी’ का मरकज बना दिया। इतना बड़ा जोखिम लोहिया ने जिन साथियों, अनुयायियों के विश्वास पर लिया था उनमें एक नाम बद्रीविशाल पित्ती का था। राजा परिवार का यह नौजवान जिसके पुरखे हैदराबाद के निजाम के साहूकार थे उसपर लोहिया का जादू इस तरह हावी था कि उसने राजसी ठाठ-बाट से हटकर सोशलिस्ट तहरीक का एक सिपाही, साधारण कार्यकर्ता बनकर तमाम उम्र लोहिया के मिशन को परवान चढ़ाने के लिए अपने को खपा दिया। आज लोहिया का विशद साहित्य जो नौ खंडों में अंग्रेजी -हिंदी में उपलब्ध है अगर बद्रीविशाल ना होते तो शायद ही बन पाता।
उसी हैदराबाद में 25 फरवरी को डॉ राममनोहर लोहिया न्यास द्वारा डॉ लोहिया पर “रिविजिटिंग राममनोहर लोहिया” पुस्तक, जिसके लेखक ए रघुकुमार हैं, का लोकार्पण किया गया। आधुनिक तकनीक के कारण उस प्रोग्राम की पूरी कार्यवाही देखने-सुनने को मिली। साथी गोपाल सिंह जो कि न्यायाधीश भी रह चुके हैं, उस कार्यक्रम के संयोजक की भूमिका में नजर आए। साथी गोपाल सिंह, बद्रीविशाल जी की भूमिका को आगे बढ़ाते हुए हमेशा लोहिया और समाजवादी विचार के प्रचार-प्रसार में मुसलसल भूमिका निभा रहे हैं। सोशलिस्ट तहरीक की नींव के पत्थर, वयोवृद्ध रावैल सुमैया 90 वर्ष की उम्र के बावजूद उनकी सरपरस्ती में लोहिया विचारों को प्रकाशित करने से लेकर सिविल नाफरमानी, प्रचार-प्रसार में लगे रहते हैं वह तथा सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी प्रोग्राम के रूहेरबा रहे।
ए. रघु कुमार द्वारा लिखी किताब की परत-दर-परत खोलते हुए हिंदुस्तान के मशहूर आलिम इतिहासकार, पर्यावरणवादी प्रोफेसर रामचंद्र गुहा ने और बातों के साथ-साथ जो सबसे महत्त्वपूर्ण सीख आज के सोशलिस्टों को दी, कि कांग्रेस, भाजपा, आरएसएस, कम्युनिस्टों के अपने-अपने इतिहासकार हैं, जो उनके नुक्ते नजरिए से लिखते हैं। परंतु सोशलिस्टों का कोई इतिहासकार नहीं, जिसके कारण 1934 से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुआ इतिहास जिसको 1990 तक लिया जा सकता है सोशलिस्ट पार्टी के टूटने के कारण अधूरा रह गया। जबकि भाजपा और आरएसएस जिसकी आजादी की जंग में कोई भूमिका ही नहीं थी, तथा कम्युनिस्ट जोकि अंग्रेजी राज के 1941 से 1944 तक जासूस बने रहे। गुहा ने कहा, लोहिया एक मौलिक चिंतक तथा संघर्षशील लड़ाकू थे। लोहिया ऐसे नेता थे जिन्होंने आजाद हिंदुस्तान में भी जनसवालों पर संघर्ष करने के कारण जेल यात्राएं सहीं। लोहिया ने गांधी और नेहरू तक से सैद्धांतिक सवालों पर बहस की। उन्होंने मार्क्सवाद की विसंगतियों पर भी लिखा।
इससे पहले किताब के लेखक ए रघुकुमार ने बोलते हुए कहा कि लोहिया का मूल्यांकन भी आलोचनात्मक दृष्टि से किया जाना चाहिए। लोहिया के सिद्धांतों, लेखन केवल प्रशंसा की दृष्टि से नहीं आलोचनात्मक नुक्ते नजरिए से भी होना चाहिए। उसके बाद उन्होंने कहा कि मार्क्स के सिद्धांत भारतीय संदर्भ में सफल नहीं हुए, मार्क्स की सरप्लस थ्योरी से लोहिया सहमत नहीं थे। उसके बाद अपनी पुस्तक की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इसको चार भागों में विभाजित किया गया है।
1. पूंजीवाद के आलोचक के रूप में।
2. वर्ग और वर्ण का इतिहास।
3 . सैद्धांतिक प्रस्थापना।
4 . लोहिया के कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन।
के.रामचंद्र मूर्ति वरिष्ठ पत्रकार संपादक ने इस मौके पर कहा, जहां अंबेडकर ने कार्ल मार्क्स से तुलना की वहीं लोहिया ने गांधी से मार्क्स की। उन्होंने आगे कहा कि अंबेडकर व लोहिया इन दो चिंतकों ने राष्ट्र के जीवन में जाति की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने लोहिया की नजर में द्रौपदी का महत्त्व सीता से बढ़कर चित्रित किया। कृष्ण (वासुदेवा) तथा कृष्ण-द्रौपदी को महाभारत का असली हीरो बताया।
आईटीएम विश्वविद्यालय ग्वालियर के संस्थापक वाइसचांसलर तथा मध्यप्रदेश विधानसभा के तीन बार सदस्य रहे तथा पूर्व मंत्री, रमाशंकर सिंह जो कि अब समाजवादी साहित्य, विचार के प्रचार प्रसार में पूरी शिद्दत के साथ लगे होने के कारण पूरे मुल्क में सोशलिस्ट जगत में जाने जाते हैं उन्होंने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में अंग्रेजी भाषा के सवाल पर गांधी, नेहरू से ज्यादा लोहिया को ईमानदार माना। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा गांधी और नेहरू नेअंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, परंतु लोहिया ने इसके अलावा पुर्तगाली हुकूमत से गोवा को आजादी दिलवाने, नेपाल की राजशाही के खिलाफ भी संघर्ष किया. गांधी के बाद उनके सत्याग्रह को सिविल नाफरमानी नाम देकर आजादी के बाद भी मुसलसल संघर्ष किया।
लोहिया ने वंचितों के लिए 60 सैकड़े के सिद्धांत की वकालत की। तथा महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण की वकालत की। यह लोहिया ही थे जिन्होंने हिंदुस्तान में गांव की महिलाओं के लिए धुआं रहित चूल्हे की मांग 50 के दशक में कर दी थी। गांव देहात में स्वच्छ शौचालय बने, तथा नदियां साफ करो व हिमालय नीति के माध्यम से सुरक्षा से लेकर विकास तक का फार्मूला दिया। जिसके कारण पर्वतीय राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल में फलों की खेती की भरमार हो सके।
हैदराबाद शहर के आलिम फाजिल नामी-गिरामी शख्सियत से लेकर नए-पुराने सोशलिस्ट कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जागरूक नागरिकों ने इसमें भाग लेकर इसको एक विचारोत्तेजक यादगार दिवस बना दिया।