कवि-नागरिक का राष्ट्र को संबोधन

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पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल


— ध्रुव शुक्ल —

ओ मेरे भारत के जन
(रवीन्द्रनाथ ठाकुर को याद करते हुए)

भटक गये हैं देश के बादल
सूख रहा है देश का जल
बांझ हो रही देश की धरती
पशु-पंछी सब यहां विकल
बदल गये हैं बीज देश के
बिलख रहे हैं यहां किसान
हुनरमंद असहाय देश के
दो रोटी में अटकी जान
बिखर गया है देश का आंगन
और मर रहे देश के गांव
भूल गये अपनी पगडण्डी
ठिठक गये हैं देश के पांव
बिगड़ गयी है देश की बानी
डूब रहा है देश का मन
जहरीली है हवा देश की
टूट रहे हैं देश के तन
अकड़ रहे हैं देश के नेता
पकड़े परदेसी का हाथ
देश बंट गया जात-पांत में
कोई नहीं है सबके साथ
बेच रहे जो देश के साधन
लूट रहे जो देश का धन
उनको कब तक क्षमा करोगे
ओ मेरे भारत के जन

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