बल्ली सिंह चीमा के पांच गीत

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पेंटिंग एवं फोटो : कौशलेश पांडेय

1.

संघर्ष कर रहा है दिल्ली किसान देख।
हैरान हो रहा है सारा जहान देख।
संघर्ष, सच, अहिंसा सब साथ-साथ हैं,
उठ्ठा है जाग मेरा भारत महान देख।
सड़कों पे गूंजते वाणी के राग सुन,
अब दे रहे हैं संगत घंटी, अजान देख।
हर इक किसान का है अब हौसला बुलंद,
ये देख दुश्मनों को चढ़ता बुखार देख।
संसद से कह रहे हैं धरने कि आ के मिल,
दिल्ली के बौडरों पे हमारे मकान देख।
हम तो जमीन पर हैं तू आसमान में,
तूफां के रहम पर है तेरा मचान देख।
कविता बुझा रही है नफ़रत की आग को,
पानी बना रहा है बल्ली का प्यार देख।

2.

साथी जल, जंगल, जमीन, का बचना बहुत जरूरी है।
इसीलिए अन्धे विकास से लड़ना बहुत जरूरी है।
कोई भी बुनियादी मुद्दा इन्हें नज़र नहीं आता है,
हिंदु मुस्लिम, हिंदु मुस्लिम हर चैनल चिल्लाता है।
नक़ली मुद्दे, नक़ली बहसें सत्ता की मजबूरी है।
इसीलिए ………..
मजूर-किसान की हालत हर दिन खस्ता होती जाती है,
शहरों में हर सेठ की दौलत दुगनी होती जाती है।
कोई खाता सूखी रोटी कोई हलुआ पूरी है,
इसीलिए ……………….
किसी सेठ को आत्महत्या कर के मरते ना देखा,
किसी किसान को पैसा ले
परदेस भागते ना देखा।
सही समय पर सही दाम फसलों का मिले जरूरी है।
इसीलिए ………………..
लोकतंत्र को तानाशाही के रंग में रंग डालेंगे,
गर ना जागी जनता सारा देश तबाह कर डालेंगे।
ऐसे में संविधान की रक्षा करना बहुत जरूरी है।
इसीलिए अन्धे विकास से लड़ना बहुत जरूरी है।

पेंटिंग एवं फोटो : कौशलेश पांडेय

3.

आत्महत्या कभी ना करना अधिकारों की खातिर लड़ना,
हमसे कहता है संविधान हम हैं भारत के किसान,
हम हैं भारत के किसान।
फ़सल हमारी कीमत उनकी
नहीं चलेगी, नहीं चलेगी,
खेत हमारे खेती उनकी
नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।
एम एस पी बिन हुए अनाथ
गन्ना, गेहूं, मक्का, धान।
हम हैं भारत के किसान
हम हैं..……………..
धींगा मुशती ये मनमानी,
नहीं चलेगी, नहीं चलेगी,
चोरी उस पर सीनाजोरी,
नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।
हमको भी सम्मान से जीने
का हक़ देता है संविधान।
हम हैं भारत के किसान
हम हैं ………….….
कारपोरेट करेगा खेती
उनकी यही कहानी है,
देश को ठेके पर देने की
उन्होंने मन में ठानी है।
उनकी पूंजीवादी सोच
हमको समझे है नादान।
हम हैं भारत के किसान
हम हैं………….……
खेत हमारे यार हमारे,
उनका यार अडानी है,
देश हमारा प्यार हमारा,
उनका प्यार अंबानी है।
जीतेगा तो सच ही आखिर
कहते सब वेद पुराण।
हम हैं भारत के किसान
हम हैं……………….
आत्महत्या कभी ना करना
अधिकारों की खातिर लड़ना,
हमसे कहता है संविधान
हम हैं भारत के किसान,
हम हैं भारत के किसान।

4.

दुख सिर पे आ पड़े हैं सारे जहान के।
गुस्से में आ गए हैं आंसू किसान के।
दुनिया तो देखती है तू भी तो देख ले,
दिल्ली की ओर बढ़ते किसानों के काफिले।
किसान को है चिंता सारे जहान की,
सड़कों पे आ गयी है पीड़ा किसान की।
संसद में गूंजते हैं मुद्दे किसान के,
गुस्से में आ …….….
तूफ़ान बन गये हैं आंसू किसान के।
जम्हूरियत में भी मन की बात बन गये,
कानून से भी पहले गोदाम बन गये।
सब भेद खुल गये हैं उनके बयान के।
गुस्से में आ …………..
तूफ़ान बन …………..….
वो चाहते हैं भाई-भाई में फूट हो,
वो चाहते हैं आस्था को दंगों की छूट हो।
हैवानियत निकलती है उनकी ज़बान से।
गुस्से में आ…………
तूफ़ान बन………….
वो चाहते हैं खेती करना
अवैध हो,
वो चाहते हैं रोटी गुदामों में क़ैद हो।
सब भेद खुल गये हैं कारपोरेटी दुकान के।
गुस्से में आ………….
तूफ़ान बन…………..
वो चाहते हैं पूंजी को शोषण की छूट हो,
वो चाहते हैं खुलकर मेहनत की लूट हो।
किसानी करेगी बल्ली किसानी के फैसले।
गुस्से में आ गये हैं आंसू किसान के।
तूफ़ान बन गये हैं आंसू किसान के।

पेंटिंग एवं फोटो : कौशलेश पांडेय

5.

दाल ही काली है सारी या काला है कुछ दाल में।
कैसी लूट मची है देखो
आज कुरोना काल में।
कैसी लूट मची है देखो
इनके शासन काल में।
आफ़त को अवसर कहते हैं
करते हैं मनमानियां,
धनवानों को लाभ हुआ है
और जनता को हानियां।
अब तो वो भी हो रहा जो
हुआ ना सत्तर साल में।
कैसी लूट मची है देखो
इनके …………..
रेलों को ये बेच रहे हैं
घाटा होता है कह कर,
देश को गिरवी रख देंगे ये
देश के रखवाले बन कर।
हिंदु – मुस्लिम कर देते हैं
हर चुनावी साल में।
कैसी लूट मची है देखो
इनके शासन ……..
करनी-कथनी के अंतर से
खुल कर खेल रहे हैं ये,
देश नहीं हम बिकने देंगे
कह कर बेच रहे हैं ये
फंसी हुई है जनता फिर भी
मक्कारों के जाल में।
कैसी लूट मची है देखो
इनके शासन ……
अधिकार मजूरों से छीन के
जीना मुश्किल कर देंगे,
मई दिवस की लाली को ये
फिर से काला कर देंगे।
उठो मजूरो, उठो किसानो
रंगें हरे और लाल में।
कैसी लूट मची है देखो
इनके शासन काल में।
दाल ही काली है सारी या
काला है कुछ दाल में।
कैसी लूट मची है देखो
इनके शासन काल में।

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