1 अप्रैल। केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया कि विगत पाँच सालों में 6,901 ओबीसी, 3,596 एससी और 3,949 एसटी छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ड्रॉपआउट किया। इसी अवधि में 2,544 ओबीसी, 1362 एससी और 538 एसटी छात्र आईआईटी की पढ़ाई छोड़कर गए। 2018 से 2023 के बीच पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से आनेवाले 19,000 से अधिक छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रबंधन संस्थान से पढ़ाई छोड़ी। दरअसल तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद सदस्य तिरुचि शिवा ने सरकार से पिछले पाँच वर्षों में आईआईटी, आईआईएम और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बाहर होने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों की संख्या के बारे में पूछा था।
वह यह भी जानना चाहती थीं कि क्या सरकार ने इन उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों की उच्च ड्रॉपआउट दर के कारणों के संबंध में कोई अध्ययन किया गया है। हालांकि मंत्री का कहना था कि कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आनेवाले छात्रों की शिक्षा चलती रहे, इसके लिए सरकार ने शुल्क में कमी, अधिक संस्थानों की स्थापना, छात्रवृत्ति, राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति में उन्हें प्राथमिकता देने जैसे कई कदम उठाए हैं। अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों की भलाई के लिए आईआईटी में ट्यूशन फीस की छूट, केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत राष्ट्रीय छात्रवृत्ति, संस्थानों में छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं भी लाई गई हैं। विदित हो कि इससे पहले वर्ष 2021 में शिक्षा मंत्रालय ने संसद में बताया था कि देश के टॉप 7 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से ग्रेजुएशन के दौरान ही पढ़ाई छोड़ने वाले(ड्रॉपआउट) लगभग 63 फीसदी छात्र आरक्षित श्रेणी से आते हैं।