8 अप्रैल। बीते 29 जनवरी को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के चकिया तहसील के आसपास के गाँवों रामपुर, मुसाहीपुर, भभौरा, पीतपुर, केवलखाण कोठी, बहेलियापुर के गरीब व मेहनतकश किसानों की लगभग 80 हेक्टेयर कृषियोग्य उपजाऊ जमीन को वन विभाग द्वारा अपना बताते हुए जब्त कर लिया गया था। वन विभाग ने बिना कोई नोटिस दिए अचानक भारी पुलिसबल के साथ क्षेत्र में धावा बोल दिया और लोगों में दहशत पैदा कर सरसों, चना, अरहर, मसूर, गेहूं आदि की उनकी खड़ी फसल को नष्ट कर दिया और उनके खेतों में खाई खोदनी शुरू कर दी।
वनवासी किसानों ने पीढ़ियों से उस जमीन को जोतने व खेती करने का वन विभाग से दावा किया और कुछ ने अपने पट्टे भी दिखाए, लेकिन ताकत के मद में चूर वन विभाग व सरकारी नुमाइंदों ने उनकी एक न सुनी। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ये तो अभी ट्रेलर है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है। इस बाबत मेहनतकश मुक्ति मोर्चा चंदौली ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, कि पूरे मुसाखाड़, चकिया, नौगढ़ के वन क्षेत्र के गरीब व मेहनतकश जनता के ऊपर वन विभाग, सिंचाई विभाग व सरकार का अत्याचार बढ़ता जा रहा है। सरकार ने गरीब व मेहनतकश किसानों की जमीन के पट्टे निरस्त करने शुरू कर दिए हैं।
विदित हो, कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर, नेपाल बॉर्डर के तमाम जिलों, बुंदेलखंड, बिहार के कैमूर व रोहतास जिले और देश के तमाम राज्यों में सरकार व वन विभाग का आतंक आदिवासी व गैर आदिवासी, वनवासी जनता पर बढ़ता जा रहा है। कहीं बाघ अभ्यारण्य, कहीं गाछी व पेड़ लगाने के नाम पर तो कहीं खनन के लिए गाँव के गाँव उजाड़े जा रहे हैं। दरअसल जंगल तो बहाना है वास्तव में जंगल की सारी जमीन, पहाड़ आदि को खनन के लिए सरकार देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सरकार विदेशी कंपनियों और अडानी, अम्बानी, मित्तल, वेदांता जैसे कंपनियों को पूरे जंगल पहाड़ को खनन के लिए सौंप चुकी है या सौंप रही है, जिससे देश के इन राज्यों में आदिवासी किसानों और राजसत्ता के बीच एक भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है।
(‘जनज्वार’ से साभार)