मधु जी के विचारों की प्रासंगिकता आज पहले से कहीं अधिक है

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— श्याम रजक —

मैं जब समाजवादी आंदोलन से जुड़ा तब मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि महाराष्ट्र से आए मधु जी और जॉर्ज फर्नाडिस बिहार से चुनाव लड़ते और जीतते हैं। पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ लेकिन बाद में मेरे लिए यह गौरव का विषय बन गया कि मैं जिस बिहार में पैदा हुआ उस बिहार के लोग क्षेत्रीयता और जातिवाद से ऊपर उठकर विचार के आधार पर वोट देते हैं।

मुझे यह भी लगा कि मैं उस ताकतवर समाजवादी विचार और संगठन से जुड़ा हूँ जो महाराष्ट्र के नेता को बिहार से चुनाव जिताने की ताकत रखता है।

मेरे जैसे हजारों युवा जो समाजवादी आंदोलन से जुड़े, उनके लिए मधु जी आजीवन प्रशिक्षक के तौर पर ही रहे। हर समय यह इच्छा रहती थी कि उन्हें सुनने का मौका मिले तथा जहाँ कहीं भी उनका लेख छपता था उसको पढ़ने का लालसा रहती थी।

मैं जब युवा जनता से जुड़ा तब चंद्रशेखर जी अध्यक्ष थे और मधु जी महामंत्री। युवा दोनों नेताओं से प्रेरणा लेते थे। सक्रिय राजनीति में अध्यक्ष जी ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया, विचार में मधु जी ने। आचार्य नरेन्द्रदेव, जेपी और लोहिया के बाद मैं उन्हें समाजवादी आंदोलन के ऐसे चिंतक के तौर पर देखता हूँ जिनका विचार राष्ट्रीय आंदोलन के मूल्यों से ओतप्रोत था तथा जिनके लिए राष्ट्र निर्माण सर्वोच्च स्थान रखता था।

आज जब सांप्रदायिक ताकतें समाज और देश पर हावी हैं, ऐसे समय में मधु जी ने दोहरी सदस्यता का सवाल उठाते हुए देश को जो चेतावनी दी थी उसपर गौर करना आवश्यक हो गया है। संघ के बारे में जो कुछ मधु जी ने कहा था वह सब कुछ सच हो रहा था।

सर्वोच्च न्यायालय को लिखित आश्वासन देने के बाद जिस तरह से लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य भाजपा के नेताओं ने बाबरी मस्जिद को तोड़ा, उससे यह साफ हो गया कि यह संगठन भारत के कानून और संविधान में विश्वास नहीं रखता। आज भी उसकी निष्ठा भारत के संविधान में न होकर मानसिक तौर पर मनुस्मृति और मनुवाद में बनी हुई है। मुझे इस बात का दुख है कि वंचित तबकों की धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग कर मनुवादी अपनी ताकत लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। मुझे लगता है कि मधु जी के विचारों की प्रासंगिकता आज पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।

उन्होंने संघ परिवार के बारे में जो बात कही हैं उसको हमें पत्थर पर लकीर के तौर पर स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने अपने एक लेख में संघ के संबंध में लिखा है :

सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ राममनोहर लोहिया से जयप्रकाश तक सभी नेताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार को सुधारने तथा सभ्य बनाने की कोशिश की। इस अच्छे उद्देश्य के लिए उन्होंने शैतान से मित्रता का भी खतरा मोल लिया, लेकिन उनके प्रयास विफल हुए। संघ परिवार क्रूर और धोखेबाज समूह है। उसने हमारे संविधान के मूलभूत मूल्यों को चुनौती दी है। उनके सिद्धांत हिटलर के सिद्धांतों के समान हैं। वे अल्पसंख्यकों से वैसा ही व्यवहार करना चाहते हैं जैसा हिटलर ने यहूदियों से किया था या जैसे पाकिस्तान अपने अल्पसंख्यकों से करता है। वे अतीत के जुल्मों और अत्याचारों की याद कर संघर्ष और विनाश का नया चक्र शुरू करना चाहते हैं। 6 दिसंबर 1992 का दिन हमारे लंबे इतिहास का एक काला दिन है। इसने भारत की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचायी है। इसके परिणामस्वरूप सैकड़ों बेगुनाह स्त्री-पुरुषों की जानें जा चुकी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार के लोग उन लाखों भारतीयों, हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई के प्रति भी अंधे हो गए हैं जो पश्चिम एशिया और खाड़ी के देशों में काम कर रहे हैं। उनका जानोमाल खतरे में पड़ गया है। यह सब सत्ता की भूख के कारण हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नजरें केंद्रीय सत्ता पर लगी हैं।

भाजपा के सभी नेता केवल कठपुतलियाँ हैं। वे स्वतंत्र और स्वायत्त पार्टी के नेता कभी नहीं रहे। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के औजार मात्र हैं।

इस शोकांतिका के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक है। मुसलमानों में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह के संगठन हैं। भारत की राजनीतिक व्यवस्था को धर्मान्धों के इस विष से मुक्त नहीं किया जाता है तो भारत एक विशाल लेबनान बन जाएगा। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं लालू यादव एवं तेजस्वी यादव के नेतृत्व में कार्य कर रही पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का सदस्य हूँ जिसने धर्मनिरपेक्षता को लेकर कोई समझौता नहीं किया तथा सांप्रदायिक ताकतों का पूरी ताकत लगाकर विरोध किया, तमाम नुकसान सहकर सांप्रदायिक ताकतों का सामना किया। मुझे इस बात की भी खुशी है कि मेरे बिहार में बहुसंख्यक लोग आज भी धर्मनिरपेक्षता के विचार को मजबूती से थामे हुए हैं, भले ही सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर तमाम सारे तिकड़म कर सांप्रदायिक ताकतें बिहार में काबिज हो गयी हों लेकिन बिहार के आम नागरिक का मानस अभी तक जहरीला नहीं हुआ है, यानी कि मधु जी के विचारों के साथ आज भी बिहार मुझे खड़ा दिखलाई देता है।

मैं तो इस लेख के माध्यम से समाजवादियों से अपील करना चाहूँगा कि वे यह संकल्प लें कि किसी भी परिस्थिति में सांप्रदायिक ताकतों से समझौता नहीं करेंगे। यही मधु लिमये जी के लिए समाजवादियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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