जमशेदपुर में जाति उन्मूलन के सवाल पर संगोष्ठी

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19 अप्रैल। झारखंड के जमशेदपुर में साझा नागरिक मंच की ओर से डा. आंबेडकर जयंती की कड़ी में मंगलवार को एक विचार गोष्ठी की गयी। विषय था – जाति उन्मूलन का सवाल। यह गोष्ठी 5 बजे शाम से संत गाडगे भवन, रजक समाज परिसर, सर्किट हाउस एरिया में हुई। संगोष्ठी की अध्यक्षता एवं संचालन संयुक्त रूप से श्याम किशोर तथा रविन्द्र प्रसाद ने किया।

विषय प्रस्तावना मंथन ने की। वक्ता रहे – शशि कुमार (सीपीआई), विश्राम राम और अवधेश प्रसाद (अर्जक संघ) , चन्दन दत्ता बुद्धिजीवी, गणेश राम तथा सुरेश प्रसाद (एससी एसटी बैकवर्ड माइनरिटी वेलफेयर समिति), सुखचन्द झा (सर्व सेवा संघ), अशोक शुभदर्शी (जनवादी लेखक संघ), अरविन्द कुमार रविकर, विनोद, सुशील, सुजय राय, सत्यम, अंकिता, देवाशीष, बबलू आदि। सियाशरण शर्मा ने आम सहमति के बिन्दुओं की प्रस्तुति करते हुए अंतिम में अपनी बात रखी।

वक्तव्यों में विश्लेषण के विविध आयाम झलके। डा. आंबेडकर के जाति उन्मूलन विषयक आलेख का ऐतिहासिक संदर्भ आया। जाति ईश्वरीय और धर्मशास्त्रीय है, इस मूलगत मान्यता के कारण एक विशिष्ट और जड़ संरचना बनी हुई है। अमेरिका में भी अभिजन भारतीय विशेष प्रयास कर जातीय विभाजन कायम रखे हुए हैं। मारिशस, फिजी जैसे भारतीय बहुलता वाले देशों में जाति की स्थिति को जानना इस प्रश्न को समझने और सुलझाने में उपयोगी हो सकता है। आर्थिक विषमता घटने के साथ साथ स्वत: जाति कमजोर होती जाएगी, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन जाति के विनाश के लिए आर्थिक समता भी एक अनिवार्य कारक होगा।

जाति की समाप्ति के लिए यह मान्यता स्थापित करनी होगी कि जाति ईश्वरीय और सनातन शाश्वत नहीं है। मनुष्य नैसर्गिक रूप से स्वतंत्र और समान है। ब्राह्मणी सर्वोच्चता और श्रेष्ठता की अवधारणा समाप्त करनी होगी। ब्राह्मणी पुरोहिती चलन को हटाना होगा। व्यवसाय, प्रतिनिधित्व, नौकरी के हर क्षेत्र में वंचितों को विशेष अवसर देकर स्थापित करना होगा। स्त्रियों की स्वतंत्र पहचान और व्यक्ति स्वातंत्र्य को प्राथमिक बनाकर ही जाति की जड़ता और विषमता को खत्म किया जा सकता है। परम्परागत पेशा से अलग पेशा अपनाने की विशेष पहल लेनी होगी।

कुछ रणनीतियों और कार्यक्रमों के मामले में सहमति के स्वर उभरते दिखे। ब्राह्मणवाद, अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ वैचारिक अभियान चलाकर विज्ञानसम्मत विवेकशील मानस बनाना। अंतर्जातीय विवाहों के पक्ष में माहौल बनाना। बहुजन समाज के समतावादी महामानवों की जयंती का व्यापक तौर पर आयोजन। वंचितों और गरीबों के हाथ जीने के संसाधनों को देना। मानसिक और शारीरिक श्रम के महत्त्व और मूल्य (आमदनी) के अन्तर को कम करना।

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