28 अप्रैल। पुलिस के अनुसार समरवीर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में तदर्थ शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। ज्ञात हो कि जब हिंदू कॉलेज में स्थायी नियुक्ति हुई तो समरवीर को स्थायी नियुक्ति नहीं मिली, उन्हें निकाल दिया गया। समरवीर राजस्थान के राजस्थान के मुल्की गांव के रहने वाले थे। वह पिछले 7 वर्षों से दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे। लेकिन जब हिंदू कॉलेज में स्थायी प्राध्यापक की नियुक्ति हुई तो समरवीर को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उन्हें सद्भावना के रूप में तदर्थ शिक्षक के रूप में पुनः नियुक्त किया गया लेकिन 21 दिनों के बाद महाविद्यालय ने यह कहते हुए उन्हें हटा दिया कि विश्वविद्यालय से उनकी सेवा की स्वीकृति नहीं मिल रही है। समरवीर को अतिथि शिक्षक के रूप में शिक्षण कार्य करने की पेशकश भी की गई। इस पूरे घटनाक्रम से समरवीर बहुत चिंतित थे। वे अपने भविष्य की चिंता बर्दाश्त नहीं कर सके और पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी।
पुलिस के अनुसार कोई सुसाइड नोट नहीं पाया गया, लेकिन समरवीर के एक जानने वाले से पता चला कि महाविद्यालय में हुई इस पूरी घटना से वो गहरी चिंता में थे। जब पुलिस ने कॉलेज की प्रिंसिपल अंजू श्रीवास्तव से इस बारे में बातचीत करने की कोशिश की तो उनका कोई कॉल या जवाब नहीं आया।
आगे पुलिस इस घटना के बारे में और बताती हुई कहती है कि उनके पास बुधवार को कॉल आया कि एक व्यक्ति ने रानी बाग इलाके के एक अपार्टमेंट में खुदकुशी कर ली है, जब पुलिस घटनास्थल पर पहुँची तो देखा दरवाजा अंदर से बंद था। तब एक बाहरी डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस हरेंद्र सिंह ने एक मोबाइल क्राइम टीम बाहर से बुलाया और दरवाजे को तोड़ा गया। दरवाजा तोड़ने पर पाया गया कि व्यक्ति पंखे से लटका हुआ था। तब पुलिस ने पास के एक अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन अस्पताल ने व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया। फोरेंसिक साइंस और विशेषज्ञों की टीम व मोबाइल क्राइम जांच टीम ने घटनास्थल की जांच पड़ताल की। डीसीपी कहना है कि पूरी घटना संदेह के घेरे में है। पोस्टमार्टम के बाद शव परिवारवालों को सौंप दिया जाएगा।
इस घटनाक्रम के बाद आम आदमी पार्टी से जुड़े शिक्षक संगठन AADTA ने दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में प्रदर्शन किया। वहीं विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर हो रहे शिक्षकों के डिसप्लेमेंट के खिलाफ आवाज बुलंद की। इस शिक्षक संगठन का कहना कि दिल्ली विश्वविद्यालय में तदर्थ शिक्षकों के साथ अन्याय किया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े जुड़े विभिन्न कॉलेजों में स्थायी नियुक्तियां हो रही हैं। इन नियुक्तियों में उस कॉलेज विशेष में पढ़ा रहे हैं तदर्थ शिक्षकों को बड़े पैमाने पर बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। तदर्थ शिक्षकों की रोजी-रोटी पर बन आई है; जिन तदर्थ शिक्षकों को स्थायी नियुक्ति नहीं मिल रही है, वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। वे भयंकर तनाव में हैं। आगे उनका भविष्य अंधकारमय दिखाई पड़ रहा है।
शिक्षक संगठन का आरोप है कि विश्वविद्यालय सब्जेक्ट एक्सपर्ट के रूप में बाहर के एक्सपर्ट को बुला रहा है। एक विशेष संगठन के द्वारा बनाई गई सूची एक्सपर्ट को देकर उन्हीं की नियुक्ति करायी जा रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों में पिछले कई वर्षों से कोई स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है। बड़े पैमाने पर तदर्थ शिक्षक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कई महाविद्यालयों में तदर्थ शिक्षक 10 और 15 सालों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, वैसे तदर्थ शिक्षकों की भी स्थायी नियुक्ति नहीं हो पा रही है।
डीटीएफ नामक संगठन का कहना है कि तदर्थ शिक्षकों ने अपने खून पसीने से विश्वविद्यालय के एकेडमिक मयार को ऊपर उठाया है। ये तदर्थ शिक्षक अपने जीवन के उस पड़ाव पर हैं, जहां उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं। महाविद्यालयों से निकाले जाने पर उनका करियर अंधकारमय दिखाई पड़ता है, निकाले गए शिक्षक कहां जाएंगे क्या करेंगे उन्हें समझ में नहीं आ रहा है। ऐसी स्थिति में शिक्षकों के अंदर कुंठा भर रही है उनके भयंकर आक्रोश व निराशा है। इस निराशा और अवसाद का ही परिणाम है कि शिक्षक आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। विश्वविद्यालय को इसका संज्ञान लेना चाहिए। बरसों से पढ़ा रहे शिक्षकों का सम्मान करते हुए उन्हें स्थायी रूप से संदर्भित महाविद्यालयों में नियुक्त किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में दिल्ली विश्वविद्यालय का शिक्षक संघ (डूटा) कई बार प्रस्ताव पारित कर चुका है। अपने प्रस्ताव को राष्ट्रपति और शिक्षा मंत्री को भेज चुका है। समय रहते यदि तदर्थ शिक्षकों की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला गया तो आने वाला समय दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास में बहुत बुरा होगा। इसका प्रभाव दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य की गुणवत्ता पर स्पष्ट रूप से नजर आएगा।