जीवन की पहली कमाई आपके अलावा किसको दूॅं!

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मधु लिमये (1 मई 1922 - 8 जनवरी 1995)


— मोहन प्रकाश —

नारस में मैंने जब सियासत में आंख खोली तो संगी साथियों की सोहबत में मधु लिमये का नाम सुनने को मिला। उनके ज्ञान, त्याग, सादगी, संघर्ष के चर्चे खासतौर से अखबारों की हैडलाइन, जिसमें संसद की कार्यवाही पढ़ने का मौका मिलता था। उसमें मधु लिमये से पूरी संसद दहली रहती थी, तथा इनका सामना करने से मंत्री सहमा रहते थे। रपट पढ़कर मधु जी के प्रति गर्व का भाव उमड़ता था।

बनारस विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुने जाने के कारण मधु जी से निकटता शुरू हो गई। जैसे-जैसे मैं इनके संपर्क में आता गया, मेरी आस्था, श्रद्धा इनके प्रति बढ़ती ही गई। आपातकाल में मैं मीसाबंदी के रूप में मैं बनारस जेल में बंद था। मधु जी जेल में बंद होने के बावजूद अपने कार्यकर्ताओं से सेंसरशिप होने के कारण सांकेतिक भाषा में निरंतर पत्राचार करते तथा दिशा निर्देशन देते थे। जेल में मैं उनको पोपट (मधु जी के बेटे का घरेलू नाम) के पिताजी संबोधित कर पत्र लिखता था, वे बांके बिहारी (मधु जी क्योंकि बांका से चुनाव जीतकर आए थे) नाम से खत लिखते थे।

1985 में, मैं राजाखेड़ा निर्वाचन क्षेत्र से राजस्थान विधानसभा का सदस्य चुना गया। मधु जी सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके थे। राजस्थान सरकार के पर्यटन मंत्री नरेंद्र सिंह भाटी जो कि मधु जी के प्रशंसक थे, उनके निमंत्रण पर मधु जी राजस्थान टूरिज्म की ओर से आयोजित किसी शास्त्रीय संगीत समारोह में भाग लेने के लिए आए हुए थे। मुझे पता चला कि मधु जी मेरे एमएलए निवास के नजदीक गगोर होटल में रुके हुए हैं। विधायक बनने के बाद पहली सैलरी, भत्ता बैंक में आने की खबर के बाद मैंने बैंक से तमाम रुपए निकाल, एक लिफाफे में बंद कर, मधु जी से मिलने के लिए होटल पहुंच गया।

मधु जी के सामने आते ही मैंने रुपए से भरा वह लिफाफा मधु जी के चरणों में रख दिया। मधु जी ने कहा, ‘यह सब क्या करते हो?’ मैंने कहा कि मधु जी यह मेरे जीवन की पहली कमाई है, आपके सिवा और किसको दूं। मधु जी ने प्यार से समझाया कि पहले अपनी जरूरत का सामान खरीद लो। समझो कि तुमने मुझे दे दिया और मैंने इसको ले लिया। परंतु मैं मानने को तैयार नहीं था, जब मधु जी नहीं मान रहे थे तो मैंने उनसे कहा ‘तमाम उम्र हमने आपकी बात मानी है, आपको भी हमारी यह बात माननी होगी।’ आखिर में मधु जी ने कहा ठीक है, तुम मुझे शेखावटी पेंटिंग पर प्रकाशित एक पुस्तक (नाम मैं भूल रहा हूं) खरीद कर दिल्ली में भेंट कर देना, मैंने वैसा ही किया।

महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डॉ राममनोहर लोहिया जैसे महान नेताओं के नक्शेकदम पर चलने वाले मधु लिमये एक सच्चे देशभक्त, प्रेरणास्रोत, त्याग, सच्चाई, सादगी के प्रकाश पुंज थे। मधु जी की जन्मशती पर मैं उनको नमन करता हूॅं।

1 COMMENT

  1. पढ़कर बहुत अच्छा। मधु जी काशी विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष थे पहली बार पता चला । 82 से 92 तक bhu का छात्र था । मोहन प्रकाश जी को टंडन जी के दुकान पर प्रतिदिन देखता था ।

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