2 मई। 2 मई को झारखंड के विभिन्न जिलों से खासकर 5वीं अनुसूची जिलों से सैकड़ों मनरेगा मजदूर, पारंपरिक ग्राम प्रधान, पंचायत जनप्रतिनिधि व मजदूर संगठन से जुड़े लोग राजभवन (रांची) के समक्ष झारखंड नरेगा वॉच द्वारा आयोजित एक दिवसीय धरने में शामिल हुए।
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि 2006 से ही झारखंड के लगभग एक करोड़ मनरेगा मजदूरों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा एक जीवनरेखा रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों से खासकर 2023 में देश के मजदूरों सहित ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर मोदी ने सीधा हमला कर दिया है l
नरेगा वॉच के लातेहार के मनोज भुइयां ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए केन्द्रीय बजट में सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित कर मनरेगा मजदूरों, दलितों, आदिवासियों तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर मोदी सरकार ने चोट की है l यह पिछले साल की तुलना में 33% कम है। जीडीपी के अनुपात में यह आवंटन कार्यक्रम के इतिहास में सबसे कम है। इस साल ऑनलाइन मोबाइल हाजिरी प्रणाली (NMMS) और आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को अनिवार्य कर मनरेगा मजदूरों को बॅंधुआ मजदूरी करने के लिए धकेल दिया गया है। इन दोनों तकनीकों के कारण बड़े पैमाने पर मजदूर काम व अपनी मजदूरी से वंचित हो रहे हैं।
अरकोसा पंचायत, लोहरदगा से आई मनरेगा मेट शीला कुमारी ने बताया कि NMMS के कारण मजदूरों की परेशानियां और बढ़ गयी है। अब काम खत्म होने के बाद भी फोटो के लिए मजदूरों को सुबह और दोपहर कार्यस्थल पर रहना पड़ता है। NMMS में विभिन्न तकनीकी समस्याओं व इंटरनेट नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण कई बार न हाजिरी चढ़ पाती है और न फोटो। इसके कारण मजदूरों द्वारा की गयी मेहनत पर पानी फिर जाता है और वे अपनी मजदूरी से वंचित हो जाते हैं। कांके से आई मजदूर शीला देवी ने स्पष्ट कहा कि पहले हाजरी कागज में बनती था जो सब मजदूरों को दिखती थी, अब तो मोबाइल में क्या होता है, समझ में नहीं आता है।
पश्चिमी सिंहभूम के संदीप प्रधान ने मजदूरों की समस्याओं को साझा करते हुए कहा कि एक ओर मोदी सरकार आधार से हो रहे फायदे के झूठे प्रचार में व्यस्त है और दूसरी ओर ABPS के कारण मजदूर अपने काम व मजदूरी से वंचित हो रहे हैं। अगर मस्टर रोल में कुल मजदूरों में एक भी ABPS लिंक्ड नहीं है, तो सभी मजदूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है। राज्य के लगभग 1 करोड़ मजदूरों में केवल आधे ही ABPS लिंक्ड हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व आयुक्त के सलाहकर बलराम ने कहा कि आज राज्यपाल के समक्ष धरना देकर मांग की जा रही है कि राज्यपाल परिस्थिति में हस्तक्षेप करें, खासकर पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के लिए वे मुख्यतः ज़िम्मेवार हैं। चाहे NMMS हो या ABPS हो, ये कानून के विपरीत राज्य आदिवासी सलाहकार परिषद में बिना चर्चा व अनुमोदन के लिए लागू कर दिया गया है। यह ग्राम सभा, पांचवीं अनुसूची और लोकतंत्र का अपमान है।
रांची के कांके सहायता केंद्र की अर्पणा बारा ने सवाल किया कि अगर सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिश लागू कर लाखों रु तनख्वाह मिल रही है, तो मोदी सरकार मजदूरों को तुच्छ मजदूरी क्यों दे रही है? मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों ने मनरेगा को आईसीयू में डाल दिया है और मजदूरों को सड़क पर ला दिया है। वक्ताओं ने कहा कि झारखंड समेत पूरे देश के मनरेगा मजदूर 13 फरवरी से 100 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन मुद्दों पर धरना दे रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार का मजदूर विरोधी रवैया जारी है।
झारखंड किसान परिषद के अम्बिका यादव ने कहा कि एक तरफ मजदूर अपने पेट के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं और दूसरी ओर मोदी सरकार मनरेगा को खतम करके मजदूरों को मारने पर तुली है। सिराज दत्ता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ अडानी व चंद अन्य कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह का फाएदा पहुंचा रही है और दूसरी तरफ मनरेगा समेत सामाजिक व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कमजोर कर रही है। बगईचा के टॉम कावला ने कहा कि अगर आदिवासी बेबस होकर गाँव से पलायन करे, तो उनका जल, जंगल, जमीन लूटना आसान होगा।
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि यह दुख की बात है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, इससे मजदूरों, दलितों, आदिवासियों एवं कमजोर वर्गों का राज्य सरकार से मोहभंग होना लाजिमी है। 2019 चुनाव के पहले वर्तमान सत्तारूढ़ी दल बढ़चढ़ कर मनरेगा मजदूरों के अधिकारों की बात करते थे लेकिन अब चुप्पी साधे हुए हैं। अभी मजदूरों को काम की जरूरत है लेकिन राज्य के अनेक गांवों में कई महीनों से एक भी कच्ची योजना का कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है।
राज्य में केंद्र की इन नीतियों व प्रशासनिक उदासीनता के कारण व्यापक पैमाने पर मजदूरी भुगतान बकाया है। गढ़वा से आए रामदेव भुइयां ने रोष के साथ कहा कि उनके गाँव के अनेक मजदूर फरवरी से भुगतान के इंतजार में हैं।
प्रशासनिक उदासीनता का एक हाल का उदाहरण है मजदूरों को बिना कोई कारण बताये जॉबकार्ड रद्द कर देना, जिससे वे काम कर ही न पाएं l 23 फरवरी 2023 से 2 मई 2023 के बीच राज्य में 2.23 लाख जॉबकार्ड डिलीट किए गए हैं और केवल 51,783 नए कार्ड बने हैं। यह स्पष्ट है कि फिर से आधार से न जुड़े / ABPS न हुए कार्ड को डिलीट किया जा रहा है। नरेगा वॉच द्वारा 237 ऐसे परिवारों के सर्वेक्षण में पता चला कि उनमें से 77% को तो पता ही नहीं था कि उनका जॉबकार्ड रद्द किया गया है। लोहरदगा से आई साबित एक्का ने कहा कि कार्ड रद्द करने के कारण में यह कहा गया कि “मजदूर काम करने में इच्छुक नहीं है” जबकि मजदूर तो गाँव में काम के इंतजार में बैठे हैं।
धरने के अंत में सभी ने दृढ़ संकल्प लिया कि मनरेगा की लड़ाई को तब तक चालू रखेंगे जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी। धरने के अंत में राज्यपाल को संबोधित मांगपत्र देते हुए निम्नलिखित मांग की गयी है –
● ऑनलाइन मोबाइल हाजरी व्यवस्था व आधार आधारित भुगतान प्रणाली तुरंत रद्द किया जाएजाए।
● मनरेगा बजट को बजट बढ़ाने के साथ-साथ मनरेगा मजदूरी दर को कम-से-कम 600 रु प्रति दिन किया जाए।
● किसी भी परिस्थिति में काम के 15 दिनों के अन्दर भुगतान सुनिश्चित किया जाए।
● ठेकेदारी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए एवं दोषी कर्मियों व पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। शिकायतों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
● जॉबकार्ड को रद्द करने की प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए और बिना भौतिक सत्यापन व ग्राम सभा की सहमति के किसी भी परिस्थिति में जॉबकार्ड रद्द न किया जाए।
● पिछले दो साल से मनरेगा कानून अनुसार अनिवार्य सामाजिक अंकेक्षण बंद हो गया है। तुरंत निष्पक्ष सामाजिक अंकेक्षण सुनिश्चित किया जाए।
धरने में अमृता उरांव, अम्बिका यादव, अफज़ल अनीस, अर्पणा बारा, बुधनी उरांव, बलराम, देवंती, जेम्स हेरेंज, जयप्रकाश टोप्पो, जयंती मेलगंडी, हेलेन सुंडी, कौशल्या हेम्ब्रम, लाल बिहारी सिंह, मनोज भुइयां, मुन्नी देवी, मुग़ले आज़म, मखलदेव सिंह, नन्द किशोर गंझु, , रामचंद्र माझी, रामदेव भुइयां, सनियारी, शीला देवी, सबिता एक्का, संदीप प्रधान, टॉम कावला समेत कई वक्ताओं ने बात रखी।