6 मई। सांप्रदायिक राजनीति के उभार के लिए जहां वामपंथी व समाजवादी आंदोलन से जुड़े राजनीतिक दलों की गलतियां जिम्मेदार है वहीं बाबरी विध्वंस को सांप्रदायिक राजनीति का टर्निंग प्वाइंट मानने के बजाय शाहबानो प्रकरण को टर्निंग प्वाइंट माना जाना चाहिए। यदि उस वक्त कांग्रेस सहित तमाम धर्मनिरपेक्ष दल गलतियां नहीं करते तो संभव था कि आज भाजपा और अन्य सांप्रदायिक संगठन जिस ताकत में पहुंचे हैं, उसमें नहीं पहुंचते। यह विचार समाजवादी चिंतक और राष्ट्र सेवा दल के पूर्व अध्यक्ष डॉ सुरेश खैरनार ने इंदौर में अपने प्रभावी व्याख्यान में व्यक्त किए।
डॉ सुरेश खैरनार शनिवार को इंदौर में डॉ राममनोहर लोहिया सामाजिक समिति द्वारा आयोजित सांप्रदायिक राजनीति के खतरे और वामपंथी-समाजवादी कार्यकर्ताओं का कर्तव्य विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज सबसे ज्यादा खतरा सांप्रदायिकता और धर्मान्धता का है और इसका मुकाबला धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ता ही कर सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद कल्याण जैन ने की।विशेष अतिथि इंटक नेता श्यामसुंदर यादव और समाजवादी नेता रामबाबू अग्रवाल थे। विषय प्रवर्तन सुभाष रानाडे ने किया। संचालन जीवन मंडलेचा और अतिथि परिचय रामस्वरूप मंत्री ने दिया। कार्यक्रम की शुरुआत प्रमोद नामदेव और साथियों के क्रांति गीत के साथ हूई। प्रारंभ में अतिथि स्वागत सर्वश्री अरविंद पोरवाल, मिर्जा शमीम बैग, शफी शेख, शशिकांत गुप्ते आदि ने किया।आभार ज्ञापन दिनेश पुराणिक ने किया। स्टेट प्रेस क्लब की ओर से भी अध्यक्ष प्रवीण खारिवाल और वरिष्ठ पत्रकार मनोहर लिंबोदिया ने डॉ खैरनार को पटवस्त्र पहनाकर स्वागत किया।
खैरनार लंबे समय से सांप्रदायिकता के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और भागलपुर से लेकर गुजरात, कश्मीर, मुंबई, सहित देश भर के 60 से ज्यादा दंगाग्रस्त इलाकों में महीनों रहकर शांति स्थापित करने का प्रयास किया है। उन्होंने मधु लिमये और मधु दंडवते की जन्म शताब्दी समापन पर बोलते हुए कहा मधु लिमये एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने समाजवाद को न केवल जिया बल्कि सांप्रदायिक राजनीति के खतरे को आज से 50 साल पहले भी महसूस किया था।
करीब एक घंटे के अपने प्रभावी व्याख्यान में डॉ खैरनार ने कई किताबों के उद्धरण देते हुए जहां वामपंथी समाजवादी आंदोलन की गलतियों को रेखांकित किया, वहीं आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाई जा रही सांप्रदायिक राजनीति की भी बखिया उधेड़ी। डॉ खैरनार ने मधु लिमये की पुस्तक के कई अंशों का उल्लेख करते हुए कहा कि मधु लिमये ने अपनी किताब सांप्रदायिकता और धर्मांधता में स्पष्ट रूप से आरएसएस की देशविरोधी और धर्मविरोधी राजनीति के खतरे को बताया था और देश को इससे आगाह किया था ।
आपने पश्चिमी बंगाल में वामपंथी दलों के रसातल में जाने सहित समाजवादी वामपंथी दलों की कमियों को उजागर करते हुए कहा कि अभी भी यदि नहीं सुधरे तो हालात और चिंताजनक होंगे। आपने कहा कि 1925 में ही आरएसएस बना और तभी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई लेकिन आज वे कहां हैं, और हम कहां हैं इस बात को हमें सोचना चाहिए। यदि अभी भी हमने अपने आचरण और रणनीति में सुधार नहीं किया तो स्थिति और भयावह हो सकती है ।
आपने कहा कि 2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की पराजय के लिए जरूरी है कि सभी धर्मनिरपेक्ष दल एक मंच पर आएं। कर्नाटक के चुनाव परिणाम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति का जवाब होंगे और वहीं से देश की राजनीति फिर करवट लेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व सांसद कल्याण जैन ने कहा कि वामपंथी समाजवादी कार्यकर्ताओं को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि नरेंद्र मोदी की सरकार को किस तरह से हटाया जाए। आज कांग्रेस की गलतियों को भूल कर हमें मोदी को हटाने पर विचार करना चाहिए ।
कार्यक्रम में प्रमुख रुप से गीतेश शाह, मिर्जा शमीम बेग, शरद कटारिया, रुद्रपाल यादव, दिलीप कौल, घनश्याम पाल, मृदुला देवी शर्मा, जयप्रकाश गुगरी, हरनाम सिंह, प्रवीण मल्होत्रा, प्रमोद बागड़ी आलोक खरे, मुनीर खान, विश्वास रावली, धीरज दुबे, अनिल त्रिवेदी, मनोज हार्डिया, मुकेश चोधरी, मोहम्मद अली सिद्दीकी, कैलाश यादव, योगेश दुबे, नरेंद्र सिंह बाफना, सखाराम जाटकर, चुन्नीलाल वाधवानी, मुनीर अहमद खान, अशोक व्यास, श्रीधर बर्वे, अजय लागू, सुमित्रा डिसोजा सहित बड़ी संख्या में वामपंथी समाजवादी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार और शहर के प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।
– रामस्वरूप मंत्री