— श्रवण गर्ग —
कर्नाटक के परिणामों की नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के अलावा जो एक तीसरा व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रतीक्षा कर रहा होगा उसका नाम सुधीर मिश्रा हो सकता है! इस व्यक्ति को अपनी फिल्म ‘अफ़वाह’ की सफलता/असफलता से ज्यादा चिंता शायद इस बात की होगी कि कर्नाटक के मतदाता अफवाहों को परास्त करेंगे कि ‘द केरला स्टोरी’ के कथित झूठ को भी नतीजों में तब्दील कर देंगे?
‘अफ़वाह’ सुधीर मिश्रा की नई राजनीतिक फिल्म का नाम है। दोनों ही फिल्मों के कथानकों में भाजपा और कांग्रेस के चुनावी पात्रों के चेहरे और प्रचार के क्लायमेक्स तलाशे जा सकते हैं ! ‘द केरला स्टोरी’ का प्रधानमंत्री द्वारा अपनी चुनावी सभा में किए गए उल्लेख और भाजपा-शासित राज्यों द्वारा उसे दी गई मनोरंजन कर की छूट में हम आने वाले दिनों की पदचाप सुन सकते हैं!
कांग्रेस-शासित राज्य चूँकि आपसी झगड़ों में ही व्यस्त हैं इसलिए न तो ‘द केरल स्टोरी’ पर प्रतिबंध लगाने और न ही ‘अफ़वाह’ को करों से छूट देने के सवाल पर कोई फैसला नहीं ले पा रहे होंगे ! यह भी मुमकिन है कि वे ऐसा करने से खौफ खा रहे हों ! (गौर किया जा सकता है कि ‘द केरला स्टोरी’ को गैर-कांग्रेसी राज्य पश्चिम बंगाल में प्रतिबंधित कर दिया गया है और तमिलनाडु में थिएटरों से उतार लिया गया है।)
मामला सिर्फ दो फिल्मों की सफलता-असफलता का नहीं है ! कर्नाटक चुनावों के जरिए स्थापित यह होने वाला है कि भाजपा-शासित राज्यों में आगे कौन सी विचारधारा चलने दी जाएगी। वही विचारधारा फिर आगे फिल्में, थिएटर और दर्शकों की भीड़ भी तय करेगी !
नरेंद्र मोदी की किसी जीवनी में इस बात का विस्तार से उल्लेख होना अभी बाकी है कि पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों (यथा पंडित जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी, आदि) की तरह उनकी भी फिल्मों और कला-संस्कृति से जुड़े विषयों में रुचि कितनी गहरी है ! इतनी जानकारी तो सार्वजनिक है कि साल 2014 में गुजरात से दिल्ली आने के बाद उन्होंने दो फिल्मों पर उनका नाम लेकर टिप्पणियाँ की हैं।
प्रधानमंत्री ने पहली टिप्पणी विवादास्पद फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर की थी। फिल्म के पिछले साल मार्च में रिलीज होने के चार-पाँच दिन बाद हुई भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में मोदी ने फिल्म पर और कई बातों की चर्चा के साथ-साथ यह भी पूछा था : ‘भारत विभाजन की वास्तविकता पर क्या कभी कोई फिल्म बनी? अब इसलिए आपने देखा होगा कि इन दिनों जो नई फिल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ आई है उसकी चर्चा चल रही है। जो लोग फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के झंडे बुलंद किए रहते हैं वह पूरी जमात बौखलाई हुई है ! बीते पाँच-छह दिनों से इस फिल्म की तथ्यों और बाकी चीजों के आधार पर विवेचना करने के बजाय उसके खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं।’
‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद पीएम ने दूसरी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी पिछले दिनों अपने चुनाव प्रचार के दौरान बेल्लारी में ‘द केरला स्टोरी’ को लेकर की। पीएम ने कुछ यूँ कहा : ‘फिल्म आतंकी साजिश पर आधारित है। यह आतंकवाद की बदसूरत सच्चाई को दिखाती है और आतंकवादियों के डिजाइन को उजागर करती है। कांग्रेस आतंकवाद पर बनी इस फिल्म का विरोध कर रही है और आतंकी प्रवृत्तियों के साथ खड़ी है। कांग्रेस ने वोट बैंक के लिए आतंकवाद का बचाव किया है।’
‘द केरला स्टोरी’ आख़िर है क्या? फिल्म के यूट्यूब ट्रेलर में कथित तौर पर दावा किया गया था कि बत्तीस हजार हिन्दू-ईसाई महिलाओं को केरल से गायब कर उनका जबरिया या अन्य उपायों से धर्म-परिवर्तन करने के बाद उन्हें इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक़ एंड सीरिया (ISIS) में भर्ती करवा दिया गया। ट्रेलर के आँकड़ों को जब चुनौती दी गई तो फिल्म में केरल से गायब हुई महिलाओं की संख्या को बत्तीस हज़ार से घटाकर सिर्फ तीन पर ला दिया गया पर तब तक काफी देर हो चुकी थी ! केरल की सीमा से लगे कर्नाटक में ट्रेलर का ही भरपूर चुनावी इस्तेमाल कर लिया गया था।
याद किया जा सकता है कि पिछले साल गोवा में संपन्न हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के समापन अवसर पर जब चेयरपर्सन इसराइल के नादव लिपिड ने ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ को एक प्रोपेगंडा फिल्म करार देकर सनसनी पैदा कर दी थी तब सुदीप्तो सेन (‘द केरला स्टोरी’ के निदेशक) पहले ऐसे जूरी सदस्य थे जिन्होंने (नादव की) उक्त टिप्पणी से अपने आपको अलग कर लिया था।
‘द केरला स्टोरी’ को फिल्म ‘अफ़वाह’ से साथ जोड़कर देखना-समझना इसलिए जरूरी है कि सुधीर मिश्रा ने बहुत ही साहसपूर्ण तरीके से लव जेहाद के झूठ के राजनीतिक शोषण का पर्दाफाश किया है। पाँच मई को ही रिलीज़ हुई इस फिल्म में बताया गया है कि एक राजनीतिक दल का नेता पहले तो कैसे अपनी ही रैली पर हमला करवाता है और बाद में सोशल मीडिया (ट्वीटर) पर षड्यंत्रपूर्वक फैलाई गई ‘अफ़वाह’ के ज़रिए लव जेहाद की झूठी घटना को विध्वंसक सांप्रदायिक संघर्ष में तब्दील कर देता है।
इसे संयोग नहीं माना जा सकता कि दोनों ही फिल्में एक ही दिन रिलीज हुईं पर भाजपा ने अपने चुनावी इस्तेमाल के लिए केवल ‘द केरला स्टोरी’ को चुना और पीएम ने भी उसके ही बारे में टिप्पणी की। फिल्म के रिलीज होने के बाद केवल तीन दिन की बॉक्स ऑफिस पर हुई पैंतीस करोड़ की कमाई से उसकी सफलता भी आंकी जा सकती है। इसके विपरीत, ‘अफ़वाह’ की कमाई एक करोड़ से कम की रही। (सिनेमाघर की खिड़की पर ‘अफ़वाह’ के टिकिट खरीदते समय जब मैंने किसी सुविधाजनक सीट का अनुरोध किया तो जवाब मिला -‘कहीं भी बैठ जाइए, पूरा थिएटर ख़ाली पड़ा है !’ फ़िल्म रिलीज़ होने के तीसरे दिन पूरे हॉल में कुल जमा सात दर्शक थे।)
सुधीर मिश्रा इस बात पर दुख प्रकट कर सकते हैं कि तमाम तथाकथित सुधारवादी, उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी सोशल मीडिया पर तो सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ चौबीसों घंटे जुगाली करते रहते हैं पर जब कोई निर्देशक जोखिम मोल लेकर ‘अफ़वाह’ जैसी फिल्म बनाता है तो थिएटरों तक चलने में उनके घुटने टूट जाते हैं। यह भी हो सकता हो कि डर लगता हो ! आश्चर्य नहीं व्यक्त किया जाना चाहिए अगर ‘अफ़वाहों’ के दम पर ‘द केरला स्टोरी’ ‘द कर्नाटक स्टोरी’ बनकर चुनावी बॉक्स ऑफिस पर भाजपा को जिता दे !