— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
आजाद हिंदुस्तान में समय-समय पर मुख्तलिफ नामों से बनी सोशलिस्ट पार्टियों की जननी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का जन्म 17 मई 1934 को काशी विद्यापीठ के आचार्य नरेंद्र देव की सदारत में पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में, मुल्क भर से आए सौ लोगों के सम्मेलन में हुआ। हालांकि इससे पहले भी कई सूबों में स्थानीय स्तर पर इसकी शुरुआत हो चुकी थी।
सवाल पैदा होता है कि महात्मा गांधी की रहनुमाई तथा कांग्रेस पार्टी के झंडे के नीचे, ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ आजादी के लिए जब लड़ाई जारी थी, कांग्रेस को ही अपना नेता, पार्टी मानते हुए सोशलिस्टों ने कांग्रेस के अंदर ही सोशलिस्ट पार्टी क्यों बनाई? सवाल वाजिब है। इसका कारण 1930 का दंडी मार्च और 1932 का सविनय अवज्ञा आंदोलन खत्म होने के बाद गांधीजी भी निराश होने लगे थे। आंदोलन न होने की वजह से लोगों में निराशा भर रही थी। कांग्रेस में उस समय दो विचार के लोग थे। नरमपंथी बनाम गरमपंथी, नरमपंथी जी हजूरी करके स्वराज चाहते थे। पुरानी स्वराज्य पार्टी को दोबारा जिंदा कर चुनाव लड़ने और काउंसिल में प्रवेश का भी प्रयास हो रहा था। ऐसे हालात में सोशलिस्ट खयालात के विदेशी तालीमयाफ्ता नौजवान, जयप्रकाश नारायण, युसूफ मेहर अली, डॉ राममनोहर लोहिया, फरीदुल हक अंसारी, कमला देवी चट्टोपाध्याय जैसे नेताओं ने तय किया कि अब वक्त आ गया है कि कांग्रेस में आजादी की लड़ाई को तेज करने के साथ-साथ इसकी सामाजिक-आर्थिक नीतियों पर भी दबाव बनाया जाए, मजदूरों, किसानों के हकों, राजा -महाराजा, नवाबों, रजवाड़ों, जमींदारों पर रोक लगाने के लिए हमें संगठित रूप से कांग्रेस के अंदर रहकर, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाकर संघर्ष करना है।
स्वागत समिति के सदर अब्दुल बारी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा ‘मुल्क के सामने वास्तविक समस्या, स्वराज तथा उसे कैसे पाया जाए है। परंतु यह राजनीतिक आजादी बेमतलब है, जब तक आर्थिक बंदिशें लगाकर इंसानों का इंसानों द्वारा शोषण खत्म न किया जाए। आज मुल्क में एक छोटा सा तपका अक्सिरियत का शोषण कर रहा है।’ उन्होंने सवाल दागा! कि क्या स्वराज इस हालात को बदलेगा?
इजलास की सदारत करते हुए आचार्य नरेंद्र देव ने कहा ‘आजादी मिलने के साथ ही हमारे मुल्क में समाजवाद की स्थापना हो जाए या नहीं, इस बात का कोई यकीनन पक्का उत्तर नहीं दिया जा सकता। परंतु हम सोशलिस्ट राष्ट्रीय आंदोलन को समाजवादी दिशा देने की लगातार, बिना रुके, कोशिश करेंगे। एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें पार्टी के कार्यक्रमों, नीतियों, मांगों का खुलासा किया गया।
1. सारी ताकत जो पैदावार करता है उसको मिले।
2. मुल्क के आर्थिक जीवन के मुतालिक बनने वाली नीतियां तथा नियंत्रण राज्य के हाथ में हो।
3. बुनियादी तथा जरूरी इंडस्ट्री जैसे कपास (सूती कपड़े), जूट, रेलवे, जहाजरानी, खनन, बैंक, आमलोगों की चीजों का समाजीकरण किया जाए। जिससे कि उनको बनाने से लेकर, लेन देन, व्यापार वगैरह की सभी विधियों पर तरक्की पसंद समाजीकरण हो सके।
4. बाहरी मुल्कों के साथ व्यापार पर राज्य का एकाधिकार।
5. राजाओं, जमींदारों तथा अन्य शोषक तबकों का बिना मुआवजे खात्मा।
6. किसानों में जमीन का बंटवारा।
7. मुल्क की तमाम खेती के समाजीकरण का लक्ष्य प्राप्त हो सके, इस मकसद से सहकारिता तथा सामूहिक खेती को मदद तथा बढ़ावा।
8. मजदूरों और किसानों के कर्जों का खात्मा।
9. बालिग मताधिकार।
सोशलिस्टों के सम्मेलन में पास प्रस्ताव को अगले दिन ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सम्मेलन में रखा गया, परंतु प्रस्ताव पराजित हो गया। मुख्तसर रूप से कहने का मकसद है कि सोशलिस्ट शुरुआत से ही कांग्रेस में दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे। आजादी, राजा-महाराजा, नवाबों, जमींदारों के अधिकारों का खात्मा तथा मजदूर, किसान, कामगारों, सामान्यजन जनों के हकों का निर्माण, और उसकी रक्षा के पक्षधर थे।
गांधी जी का उस समय एक ही निशाना था, राजनीतिक आजादी। उनकी निगाह में दूसरे सवाल आजादी मिलने के बाद हल होंगे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनने पर गांधी जी की प्रतिक्रिया थी :
“मैं कांग्रेस में समाजवादी दल के गठन का स्वागत करता हूं। परंतु मैं यह नहीं कह सकता कि इनके कार्यक्रम को पसंद करता हूं। मुझे ऐसा लगता है यह भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना बनाया गया है।’ —— आपके छपे हुए कार्यक्रम पर सरसरी निगाह डालने पर यह कुछ विचार मेरे मन में आते है।”
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन का स्वागत करते हुए लिखा :
“मैं कांग्रेस के सिद्धांत और देश को प्रभावित करने के लिए कांग्रेस के अंदर सोशलिस्ट ग्रुप के गठन का स्वागत करूंगा।’ ——– मुझे उम्मीद है कि आप जिस सोशलिस्ट ग्रुप का सुझाव दे रहे हैं वह सामान्य रूप से कर्म और विचार दोनों में हिस्सा लेगा और संघर्ष की अगुवाई में शामिल होगा। मैं सम्मेलन उसके सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं एवं सद्भावना भेजना चाहता हूं। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का मतलब, कांग्रेस और सोशलिस्ट दोनों है।—- मेरे बहुत से पुराने साथी जिनकी राय की मैं कद्र करता हूं अब कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में हैं।”
यह दास्तान, सोशलिस्ट पुरखों द्वारा सोशलिस्ट पार्टी की तामीर की छोटी सी झलक भर है।