— डॉ सुनीलम —
आज से 89 वर्ष पहले, 17 मई 1934 को सौ समाजवादियों ने मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था। असल में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की नींव नासिक जेल में ही पड़ गई थी। जहां कांग्रेस के भीतर सक्रिय समाजवादियों ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाने का निर्णय लिया था। इतिहास के मुताबिक सोशलिस्टों ने दो-तीन वर्ष पहले ही बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं अन्य राज्यों में संगठित समूह के तौर पर कार्य करना शुरू कर दिया था।
आज जब भारत में समाजवादियों की पहले संगठित राजनीतिक राष्ट्रीय दल के गठित होने के बाद 89 वर्ष हो रहे हैं, तब यह जरूरी है कि यह मूल्यांकन किया जाए कि समाजवादी विचार को आगे बढ़ाने में गांधी, आचार्य नरेंद्र देव, जेपी, लोहिया, यूसुफ मेहर अली, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, फरीदुल अंसारी, सत्यवती, अरुणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन से लेकर कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीज, राजनारायण, मधु दंडवते, एसएम जोशी, मृणाल गोरे आदि समाजवादी नेताओं की विरासत को संभालने वाले कहां पहुंचे हैं।
स्वर्णिम विरासत
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन के बाद समाजवादियों ने केवल कांग्रेस पार्टी को वैचारिक दिशा ही नहीं तमाम समाजवादी कार्यक्रम भी दिए। इतिहास यह बताता है कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय बैठकों और राज्य इकाइयों में जो प्रस्ताव पारित होते थे, उन पर कांग्रेस पार्टी में गंभीर चर्चा हुआ करती थी तथा तमाम महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकार कर लिये जाते थे।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की आजादी के आंदोलन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन को सफल बनाने में रही। 8 अगस्त 1942 को गांधी जी द्वारा ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का जो नारा दिया था उसे मुंबई के तत्कालीन मेयर युसूफ मेहर अली ने गढ़ा था। महात्मा गांधी सहित सभी वरिष्ठ कांग्रेसियों को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिये जाने के बाद समाजवादियों ने भूमिगत आंदोलन चलाने का निर्णय लिया था। 9 अगस्त को समाजवादी नेत्री अरुणा आसफ अली ने ग्वालिया टैंक (आज के आजाद मैदान) मुंबई में तिरंगा फहराया था। यह कौन भूल सकता है कि जेपी ने इसी आंदोलन के दौरान हजारीबाग की जेल से भागकर भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व किया होगा।
दुनिया के इतिहास में 1942 का आंदोलन सबसे बड़ा जन आंदोलन माना जाता है। क्योंकि इस आंदोलन में पचास हजार से ज्यादा आंदोलनकारी शहीद हुए तथा सजाएं हुई थीं।
डॉ लोहिया और जेपी को लाहौर की जेल में रखा गया था। अंग्रेजों ने डॉ लोहिया को लाहौर की उसी जेल में रखा था जहां से भगतसिंह को फांसी दी गई थी। टॉर्चर करने के कारण लोहिया का स्वास्थ्य बिगड़ गया था।
जब यह साफ हो गया था कि अंग्रेज सत्ता का हस्तांतरण करेंगे, तब कांग्रेस के सभी नेताओं को छोड़ दिया गया, लेकिन सबसे आखिर में, गांधीजी के हस्तक्षेप के बाद जेपी-लोहिया को रिहा किया गया।
गोवा मुक्ति आंदोलन में सर्वाधिक कुर्बानियां समाजवादियों ने दी थीं
डॉ लोहिया इलाज कराने गोवा पहुंचे थे लेकिन जब उन्हें गोवा के स्थानीय नागरिकों ने पुर्तगाली शासकों के अत्याचारों की व्यथा सुनाई तब डॉ लोहिया ने पहली बार पुर्तगाली शासकों को ललकारा। बाद में 1948 में सोशलिस्ट पार्टी के कांग्रेस से अलग हो जाने के बाद समाजवादियों ने मधु लिमये, एसएम जोशी, एनजी गोरे, मधु दंडवते के नेतृत्व में सतत आंदोलन चलाकर 15 वर्ष बाद गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने में सफलता हासिल की थी।
कांग्रेस से अलग हुए समाजवादी
आजादी मिलने के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी देश को समाजवाद की दिशा में जिन कार्यक्रमों को लागू कर देश का राष्ट्र निर्माण कर आगे ले जाना चाहती थी, उसके लिए कांग्रेस पार्टी और सरकार तैयार नहीं थी। कांग्रेस का दक्षिणपंथी समूह चाहता था कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी या तो कांग्रेस में विलय करें या समाजवादी, कांग्रेस पार्टी से अलग हो जाएं। इस मुद्दे पर समाजवादियों ने 1948 में कानपुर सम्मेलन में विस्तृत चर्चा की। चर्चा करने के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से कांग्रेस शब्द हटाने का निर्णय लिया ताकि कांग्रेस सरकार पर दबाव डालकर उसे समाजवादी रास्ते पर ले जाया जा सके।
अलग होने का एक कारण यह भी था कि उस समय देश में कांग्रेस और सोशलिस्टों के अलावा कम्युनिस्टों और हिंदू महासभाइयों की वैचारिक धारा मजबूत थी। हालांकि ईएस नंबूदिरीपाद जैसे कम्युनिस्ट कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में ही थे। परंतु 1934 से 1948 के 14 वर्षों के अनुभव और हिंसा, केंद्रीकरण, रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के भारत के कम्युनिस्टों के फैसलों पर प्रभाव एवं रूसी क्रांति के बाद के अनुभव के साथ-साथ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्टों की भूमिका आदि प्रश्नों पर समाजवादियों और वामपंथियों में मतभेद थे।
समाजवादी चाहते थे कि कांग्रेस का विपक्ष भी लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी रहे, इस कारण सत्ता छोड़कर समाजवादियों ने विपक्ष में रहकर राष्ट्र निर्माण का मोर्चा सम्हाला।
कांग्रेस के साथ समाजवादियों का समझौता नहीं हो सका
प्रधानमंत्री बन जाने के बाद जवाहरलाल जी चाहते थे कि समाजवादी कांग्रेस का संगठन सम्हालें। परंतु डॉ लोहिया ने शर्त लगा दी कि स्वयं प्रधानमंत्री और मंत्रियों का संगठन में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए तथा जरूरत पड़ने पर संगठन को सरकार के खिलाफ खड़ा होने का अधिकार होना चाहिए। बाद में जेपी ने भी 14 सूत्री पत्र दिया, जिसे कांग्रेस ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इतिहास गवाह है 1934 से अब तक अनेक समाजवादी नेता घूम-फिर कर कांग्रेस में शामिल होते रहे हैं।
पहला आम चुनाव
1952 में पहला आम चुनाव सोशलिस्ट पार्टी ने जोर-शोर से लड़ा लेकिन उसे केवल 10% वोट ही प्राप्त हुए क्योंकि देश के मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को ही आजादी दिलाने वाली पार्टी के तौर पर स्वीकार किया।
जेपी के मन में कुछ निराशा पैदा हुई। उन्होंने विनोबा जी के साथ सर्वोदय का नया रास्ता अपनाया। आम चुनाव के बाद किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नेता आचार्य कृपलानी, जो कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे, एमएन रॉय और सुभाष चंद्र बोस के अनेक समर्थक समूहों ने सोशलिस्ट पार्टी के साथ विलय कर सोशलिस्ट पार्टी को नई ऊर्जा दी।
डॉ लोहिया ने सोशलिस्टों की पहली बार केरल में बनी सरकार द्वारा गोलीचालन के बाद खुद ही चुनौती दे डाली। जिसके बाद पार्टी में पहला बड़ा बिखराव हो गया।
यही जुड़ने और टूटने का सिलसिला समाजवादियों के बीच लगातार चलता रहा।
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी समाजवादियों के बड़े समूह के तौर पर कार्य करती रही तथा डॉ लोहिया के नेतृत्व में समाजवादी संघर्ष करते रहे। बाद में दोनों दल फिर एकसाथ आए फिर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनी। इस बीच डॉ लोहिया ने कांग्रेस को हराने के लिए गैरकांग्रेसवाद की रणनीति बनाई। जिसके चलते पहली बार 7 राज्यों में गैरकांग्रेसी पार्टियों की संयुक्त सरकारें बनीं, जो ज्यादा समय नहीं टिक सकीं।
1974 का छात्र आंदोलन
महंगाई के सवाल को लेकर छात्रों ने गुजरात और बिहार में आंदोलन शुरू किया। जो राज्य सरकारों के खिलाफ तेजी से आगे बढ़ा। जिसका नेतृत्व युवाओं द्वारा समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण को सौंपा गया।
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन द्वारा जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेल हड़ताल हुई, इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया गया। उन्होंने देश में आपातकाल लागू किया। 19 महीने तक संपूर्ण विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल दिया गया। समाजवादी भूमिगत रहकर तथा देश और विदेश में अलग-अलग तरीकों से इंदिरा गांधी की तानाशाही को चुनौती देते रहे। उसी समय बड़ौदा डायनामाइट कांड में जॉर्ज फर्नाडिस एवं अन्य साथियों को पकड़ा गया। अंततः चुनाव का ऐलान हुआ। समाजवादी नेता जेपी की प्रेरणा से जनता पार्टी का गठन हुआ, जिसने देश में लोकतंत्र बहाल किया।
1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार ढाई साल ही चल सकी। जनता पार्टी भी बिखर गई लेकिन सोशलिस्टों ने सोशलिस्ट पार्टी के नाम से कोई पार्टी नहीं बनाई। समाजवादी जनता पार्टी, दमकिपा (दलित, मजदूर किसान पार्टी), लोक दल एवं अन्य छोटी-छोटी पार्टियां बनाकर कार्य करने लगे। 1989 में फिर समाजवादियों ने अगुवाई कर जनता दल का गठन किया। वीपी सिंह के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी। लेकिन वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। इंद्र कुमार गुजराल, एचडी देवेगौड़ा और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने परंतु जनता दल बिखर गया। 1992 में मुलायम सिंह ने फिर समाजवादी पार्टी का गठन किया, जो आज तक भारतीय राजनीति में अपना दखल बनाए हुए है लेकिन उसका प्रभाव उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है। लालू यादव के नेतृत्व में 1997 में राष्ट्रीय जनता दल का गठन हुआ। शरद यादव के नेतृत्व में जनता दल (यू) का गठन 2003 में हुआ तथा 1999 में जनता दल (सेकुलर) का गठन देवेगौड़ा के नेतृत्व में हुआ।
उत्तर प्रदेश और बिहार आज भी समाजवादियों का गढ़ बना हुआ है। आज भी जनता परिवार के नाम से जानी जानेवाली पार्टियां एकजुट होकर एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बनाकर ठोस विकल्प देने की स्थिति में हैं।
इसके अलावा देश में सोशलिस्ट फ्रंट, समाजवादी जन परिषद, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी, समाजवादी समागम आदि कई समाजवादी समूह कई राष्ट्रीय स्तर पर कई क्षेत्रीय दल कार्य कर रहे हैं। केरल में दोनों यानी वामपंथी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रदेश स्तरीय गठबंधनों में समाजवादियों का कोई न कोई धड़ा सरकार में शामिल रहता है।
डॉ राममनोहर लोहिया के जन्मशताब्दी समारोह के अवसर पर राष्ट्र सेवा दल, युसूफ मेहर अली सेंटर के 30 युवाओं द्वारा देशभर में “सप्त क्रांति” यात्रा निकालकर समाजवादियों के बीच नई ऊर्जा पैदा की। सभी समाजवादियों को एक मंच पर लाने तथा गांधीवादियों, सर्वोदयियों, वामपंथियों, आंबेडकरवादियों एवं जन आंदोलनकारियों के विभिन्न समूहों को एक मंच ‘समाजवादी समागम’ पर लाने का कार्य देश के वरिष्ठतम समाजवादी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ जी जी पारीख द्वारा किया गया। समाजवादियों ने दिल्ली में सम्मेलन कर हिंद मजदूर सभा के महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू, प्रोफेसर राजकुमार जैन, प्रोफेसर आनंद कुमार, रमाशंकर सिंह, अरुण श्रीवास्तव, मंजू मोहन, संजय कनौजिया आदि समाजवादियों के नेतृत्व में सोशलिस्ट मेनिफेस्टो तैयार किया, जिसे तैयार करने में नीरज जैन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। 1934 के बाद सोशलिस्ट पार्टियों द्वारा अपना घोषणापत्र बनाया जाता रहा और चुनाव लड़े गए। सरकारें भी बनीं। परंतु 1934 के बाद पहली बार समाजवादियों ने एक मेनिफेस्टो सामूहिक तौर पर तैयार किया। देशभर में सक्रिय समाजवादी 50 से अधिक सक्रिय संस्थाओं को एकजुट कर युसूफ मेहर अली सेंटर, एसएम जोशी फाउंडेशन, लोहिया एकेडमी, राष्ट्र सेवा दल आदि 8 संस्थाओं ने मिलकर ‘हम समाजवादी संस्थाएं’ का गठन किया।
समाजवादी साथियों की पहल पर देश में ‘संविधान बचाओ-देश बचाओ’ अभियान चलाया गया, ‘नफरत छोड़ो- संविधान बचाओ’ अभियान की शुरुआत की गई, ईवीएम विरोधी जन आंदोलन शुरू किया गया।
आज भी श्रमिकों की समाजवादी यूनियन हिंद मजदूर सभा 90 लाख कामगारों का प्रतिनिधित्व कर रही है, राष्ट्र सेवा दल, छात्र-छात्राओं के बीच में, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, जन आंदोलनकारियों के बीच में सक्रिय है। अनेक समाजवादी विचार के किसान नेता संयुक्त किसान मोर्चा में भी सक्रिय हैं। आज की सबसे बड़ी जरूरत लोकतंत्र, संविधान और देश को बचाने के लिए एकजुट होने की है। यही समाजवादियों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भी है।
पिछले दिनों मधु लिमये जन्म शताब्दी समारोह समिति और मधु दंडवते जन्म शताब्दी समारोह समिति के कार्यक्रमों के दौरान वामपंथी-समाजवादी एकजुटता की चर्चा भी आगे बढ़ी है।
रमाशंकर सिंह जैसे समाजवादियों ने पिछले कुछ वर्षों में समाजवादी विचार से जुड़ी डॉ लोहिया और मधु लिमये की 25 से अधिक किताबें प्रकाशित कर तथा प्रोफेसर आनंद कुमार ने गत 2 वर्षों से समता मार्ग पोर्टल के माध्यम से समाजवादी विचारों के प्रचार प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। समता मार्ग का प्रकाशन वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र राजन द्वारा किया जा रहा है।
1946 से डॉ जी जी पारीख ‘जनता’ साप्ताहिक पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। ‘लोहिया टुडे’ वेबसाइट रावेला सोमैया के सुपुत्र चला रहे हैं। 30 वर्षों से हिम्मत सेठ जी का ‘समता संदेश’ निकल रहा है।
समाजवादी बुलेटिन समाजवादी पार्टी के द्वारा गठन के बाद से ही नियमित प्रकाशित किया जा रहा है। ‘सामान्य जन’ और ‘सामयिक वार्ता’ से सभी परिचित हैं ही ।
कई भाषाओं में समाजवादी साहित्य का प्रकाशन जारी है।