23 मई। जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए एक अध्ययन में यह दावा किया गया है कि अगर सभी देश उत्सर्जन में कटौती के अपने वादे को पूरा कर भी लें, तब भी भारत की 60 करोड़ से अधिक आबादी समेत दुनिया भर में 200 करोड़ से अधिक लोगों को खतरनाक रूप से भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। यह गर्मी इतनी भयानक होगी, कि अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जाएगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है, कि वैश्विक स्तर पर 3.5 व्यक्ति या केवल 1.2 अमेरिकी अपने जीवन में जितना उत्सर्जन करते हैं, वह भविष्य में पैदा होने वाले प्रत्येक एक व्यक्ति को भीषण गर्मी की चपेट में लाने का कारण बनता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, सदी के अंत की अनुमानित आबादी(950 करोड़) का 22 फीसदी से 39 फीसदी हिस्सा खतरनाक गर्मी की चपेट में होगा। उन्होंने कहा कि तापमान को 2.7 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 1.5 डिग्री सेल्सियस करने में अनुमानित आबादी में पाँच गुना कमी करनी होगी। वहीं तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर सबसे ज्यादा भारत की 60 करोड़ से अधिक की आबादी प्रभावित होगी। दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला देश नाइजीरिया होगा, जहाँ ऐसे लोगों की संख्या 30 करोड़ से अधिक होगी।