1 जून। संयुक्त किसान मोर्चा की विस्तारित समन्वय समिति की 29 मई को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि महिला पहलवानों के समर्थन में और यौन उत्पीड़न के आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर देश भर में जिला और तहसील स्तर पर प्रदर्शन आयोजित किये जाएंगे।
गौरतलब है कि एसकेएम की यह बैठक 28 को जंतर मंतर पर महिला पहलवानों पर पुलिसिया कहर ढाए जाने के दूसरे ही रोज हुई थी। उस दिन (28 मई) किसानों को, जिनमें काफी संख्या में महिलाएं भी थीं, दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए दिल्ली की सरहदों पर पुलिस की भारी तैनाती की गयी थी। हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत से किसान नेताओं के घर पर ही पुलिस ने घेरा डाल दिया और उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया। यह सब मोदी सरकार तथा हरियाणा और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने इसलिए किया ताकि महिला पहलवानों के समर्थन में होने वाली महिला सम्मान महापंचायत न हो सके। यही नहीं, आंदोलन को पूरी तरह कुचल देने के इरादे से अत्यधिक बल प्रयोग करके जंतर मंतर खाली कराया गया।
इस सबसे यही लगता है कि मोदी सरकार विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार का गला घोंट देना चाहती है। संयुक्त किसान मोर्चा ने 1 जून को विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान महिला पहलवानों के प्रति समर्थन का इजहार व बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को और बल देने के साथ ही सभी तबकों के लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में आवाज बुलंद करने के लिए किया था। आह्वान का असर भी देखा गया। तमाम जिलों से महिला पहलवानों के समर्थन में तथा उनके आंदोलन के प्रति सरकार के रवैये के विरोध में प्रदर्शन की खबरें आयी हैं। उन सबको अलग अलग दे पाना संभव नहीं है। लिहाजा पेश हैं कुछ झलकियाँ-
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“किसान जो धरती की सेवा करता है वही तो सच्चा पृथ्वीपति है उसे सरकार से क्यों डरना है।“
“गांधी जी की दृष्टि में किसान और हिंदुस्तान एक दूसरे के पर्याय हैं। अहिंसा और निर्भयता किसान का मूल स्वभाव हैं और शोषण तथा दमन के विरुद्ध सत्याग्रह उनका बुनियादी अधिकार।
(लेखक ~स्व. डॉ राजू पाण्डेय~ छत्तीसगढ़ के रायगढ़ स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार, गांधीवादी चिंतक थे।)