- — सूर्यनाथ सिंह —
आधुनिक दुनिया में, अधिकतर वैचारिक आंदोलनों की पृष्ठभूमि में, ललित कलाओं के क्षेत्र में उभरे आंदोलनों की भूमिका ही प्रमुख रही है। इसमें पश्चिम ही अगुआ दीखता है। वजह साफ है। आधुनिकता का जन्मदाता पश्चिम ही है।उसी ने विचारों की कोटियां तय कीं और प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक दायरे बनाए। आधुनिकता की बुनियाद मशीन के विकास पर टिकी है। मशीनें आईं तो माना गया कि आधुनिकता भी आ गई। मगर विवाद की बुनियाद भी यहीं बनी। आधुनिकता का शाब्दिक अर्थ यह बना कि जो बिलकुल नया है, बिलकुल अभी का है, जो अपने से पहले की सारी रूढ़ियों को ध्वस्त करता है, वही आधुनिक है। मगर जिसे आधुनिकता कहा गया, दरअसल वह वास्तव में पूरी तरह विचारों में नएपन की पहचान बन नहीं पाया। यह भी कह सकते हैं कि ऐसी पहचान वह अपनी बना नहीं पाया। इसीलिए बौद्धिकों का एक बड़ा वर्ग आधुनिकता और आधुनिकीकरण या फिर आधुनिकतावाद में फर्क करने लगा।
मशीनों के आने से आधुनिकता नहीं बल्कि आधुनिकीकरण और आधुनिकतावाद आया। इसका दरअसल, मनुष्य की वास्तविक जिंदगी से कोई सीधा संबंध नहीं था, अलबत्ता इसने आधुनिक होने का भ्रम रच डाला। मगर सही मायने में विचारों में आधुनिकता की बुनियाद किसी ने डाली तो वह ललित कलाओं के क्षेत्र में शुरू हुए आंदोलन ही थे। इन्होंने ही सामाजिक पुनर्जागरण का आधार तैयार किया। वास्तव में रूढ़ विचारों का ध्वस्तीकरण इन्हीं आंदोलनों ने किया। न सिर्फ सारे पुराने प्रतीकों और प्रतिमानों का प्रतिकार किया, बल्कि उनके बरक्स अपने समय की हकीकत को रखना शुरू किया। सही अर्थों में आधुनिकता का उद्भव आदर्श के बरक्स यथार्थ का उदय ही है। अतींद्रिय जगत के बरक्स भौतिक दुनिया के दुख-दर्द, उसकी पीड़ा और संघर्ष ही वास्तविक रचनात्मक वस्तु के रूप में प्रतिष्ठापित हुए। यहीं से प्रगतिशीलता का जन्म हुआ, जिसे आधुनिकता की कोख से जनमा मान लिया जाता है।
कहने का आशय यह कि ललित कलाओं के आंदोलनों को केवल ललित कलाओं तक सीमित न रखकर व्यापक दायरे में देखने की जरूरत है। इस जरूरत को संजीदगी से समझा है ज्योतिष जोशी ने। उन्होंने दुनिया भर के कला आंदोलनों की पड़ताल करते हुए उनके बुनियादी विचारों को रेखांकित करने का उद्यम किया है, अपनी पुस्तक आधुनिक कला आंदोलन में। वे इस प्रयास में आधुनिक काल से थोड़ा पीछे जाकर भी टटोलने का प्रयास करते हैं कि आंदोलनों की पृष्ठभूमि क्या है। यही तरीका भी होना चाहिए, क्योंकि कोई भी आंदोलन एकदम से नहीं फूट पड़ता। उसके पीछे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, वैचारिक आदि स्थितियां भी जाहिर तौर पर काम कर रही होती हैं। जोशी कहते हैं कि ‘आधुनिक कला के संकेत हमें 1400 ईसवी में मिलने लगते हैं, जब यूरोप में पुनर्जागरण की प्रक्रिया शुरू होती है और चर्च तथा धर्म की हदबंदियों से कला को थोड़ी-बहुत निजात मिलनी शुरू होती है।’ इस तरह ज्योतिष जोशी ने इस कालखंड से लेकर अब तक की ललित कलाओं की गति और वैचारिक उथल-पुथल को विश्लेषित करने का प्रयास किया है।
किताब दो हिस्सों में विभाजित है- पश्चिमी कला और भारतीय कला। पहले पश्चिम में उभरे कला आंदोलनों का ऐतिहासिक विवरण, विश्लेषण है और फिर उसके प्रभाव में भारत में चले कला-आंदोलनों का सिलसिलेवार, विभिन्न प्रमुख समूहों के आधार पर विश्लेषण है। पहले खंड में पुनर्जागरणकालीन कला, बारोक कला, रोकको कला, नवशास्त्रवाद, स्वच्छंदतावाद, यथार्थवाद, प्रभाववाद, नव-प्रभाववाद, उत्तर प्रभाववाद, प्रतीकवाद, फाववाद, अभिव्यंजनावाद, घनवाद, भविष्यवाद, अमूर्त कला, दादावाद, अति यथार्थवाद और फिर आधुनिकता से समकालीनता की यात्रा का विश्लेषण है। दूसरे खंड में भारतीय कला में आधुनिकतावाद की शुरुआत से लेकर, जिसमें राजा रवि वर्मा से लेकर समकालीन कला के तमाम आंदोलनों का विश्लेषण है। इसमें बंगाल कला आंदोलन, आधुनिक कला की आरंभिक स्थिति, कलकत्ता कलाकार समूह, प्रगतिशील कलाकार समूह, मुंबई काकार समूह, दिल्ली शिल्पी चक्र, चोलामंडल कलाकार ग्राम, श्रीनगर प्रगतिशील कलाकार समूह, समूह 1090 की वैचारिक यात्राओं का वर्णन है। इनके साथ ही कला अकादमियों के गठन और कला आंदोलनों में उनकी भूमिका पर भी विश्लेषणात्मक अध्याय अलग से है। इस तरह भारतीय ललित कलाओं में लगभग सभी प्रमुख हस्ताक्षरों के काम पर परिचयात्मक टिप्पणियां हैं।
यह श्रमसाध्य काम ज्योतिष जोशी इसलिए कर पाए, क्योंकि वे लंबे समय तक ललित कला अकादेमी से जुड़े रहे हैं और उसकी पत्रिका का सुरुचिपूर्ण संपादन किया है। उनके पास ललित कलाओं के बारे में गहन अध्ययन और प्रचुर सामग्री है। उन्होंने ललित कलाओं के तमाम आधुनिक रूपों को नजदीक से देखा और उन पर विभिन्न विमर्शों को समझा है। ऐसा अनुभव और अध्ययन बहुतों के पास हो सकता है, मगर बड़ी बात है कि आधुनिक ललित कलाओं के इतने बड़े संसार को समेट कर एक पुस्तक में भर देने का साहस और संकल्प केवल ज्योतिष जोशी ने दिखाया। इस तरह के दस्तावेजीकरण से प्रायः लोग जी चुराते ही देखे जाते हैं। मगर ज्योतिष जोशी ने यह काम करके न सिर्फ कला के विद्यार्थियों बल्कि कलानुरागियों के लिए भी एक दस्तावेजी ग्रंथ प्रस्तुत किया है।
इस किताब की विशेषता केवल इस बात में नहीं है कि इससे दुनिया भर के आधुनिक कला आंदोलनों का परिचय मिलता है, बल्कि इससे दुनिया भर के प्रतिष्ठित कलाकारों के कामों और उनके पीछे उनकी वैचारिक धरातल का भी पता चलता है। यह पुस्तक आधुनिक ललित कला का इतिहास तो है ही, कला-आलोचना भी है। इस तरह ललित कला के क्षेत्र में उठे वैचारिक आंदोलनों के सूत्र पकड़ कर साहित्य और संस्कृति के अन्य क्षेत्रों के वैचारिक आंदोलनों का भी सफर तय होता है।
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किताब : आधुनिक कला आंदोलन
लेखक : ज्योतिष जोशी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली;
मूल्य : 495 रुपए