9 जून। एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में जिस तरह से और जिस तरह के फेरबदल किये गए हैं वे शायद ही किसी के गले उतरें, चाहे वह इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में किया गया फेरबदल हो, या राजनीति विज्ञान, या विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में। यही कारण है कि एनसीईआरटी के इस कृत्य के खिलाफ अकादमिक, बौद्धिक जगत से बराबर आवाज उठ रही है। विरोध का ताजा वाकया प्रोफेसर सुहास पलशीकर और योगेन्द्र यादव का वह पत्र है जो उन्होंने एनसीईआरटी निदेशक को लिखा है। इस पत्र में दोनों जाने-माने राजनीति विज्ञानियों ने एनसीईआरटी निदेशक से गुजारिश की है कि कक्षा 9 से 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से मुख्य सलाहकार के तौर पर उनके नाम हटा दिए जाएं।
पत्र में कहा गया है कि पाठ्यक्रम को तर्कसंगत बनाने के नाम पर जो कुछ किया गया उसका कोई शैक्षिक तर्क नहीं है। ये फेरबदल करने से पहले न तो उनकी राय ली गयी न ही उन्हें सूचित किया गया।
पत्र में दोनों राजनीति विज्ञानियों ने कहा है कि पाठ्यपुस्तकों में इस तरह से फेरबदल नहीं किये जाने चाहिए कि विद्यार्थियों में जिज्ञासा, प्रश्नाकुलता और आलोचनात्मक समझ का गला घोंट दें। राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों को जैसा बना दिया गया है उससे न तो विद्यार्थी राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों को जान पाएंगे और न ही राजनीतिक गतिशीलता की व्यापक कार्यप्रणाली को समझने में उन्हें मदद मिलेगी।
पत्र में दोनों राजनीति विज्ञानियों ने कहा है कि ये पाठ्यपुस्तकें अब अकादमिक रूप से किसी काम की नहीं रह गयी हैं। लिहाजा, हम इस बात से शर्मिंदा महसूस करते हैं कि इन पाठ्यपुस्तकों में मुख्य सलाहकार के रूप में हमारे नाम का जिक्र जारी रहे। इसलिए हम एनसीईआरटी से अनुरोध करते हैं कि कक्षा 9,10,11 और 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में हम दोनों के नाम हटा दिए जाएं।