मणिपुर त्रासदी पर ऑनलाइन चर्चा

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16 जून। लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान हर महीने की 15 तारीख की रात एक ज्वलंत सामयिक विषय पर चर्चा करता है। 15 जून 2023 की चर्चा का विषय था : मणिपुर की त्रासदी : संकट के कारक और समाधान की रणनीति। इस विषय पर प्रमुख वक्तव्य गुवाहाटी के वरिष्ठ पत्रकार मनोज आनन्द और मणिपुर के प्रभारी रहे काॅंग्रेस के नेता भक्तचरण दास ने रखा। संक्षिप्त टिप्पणी करनेवालों में रणधीर गौतम, रामशरण, अशोक श्रीमाली, जीतेश कांत और मंथन शामिल रहे ।

वक्ताओं ने बड़े स्पष्ट स्वर में यह बात रखी कि मणिपुर में दो समुदायों के बीच के ऐतिहासिक अलगाव और तनाव को हाईकोर्ट के अनुचित फैसले और प्रांतीय सरकार के साम्प्रदायिक यानी ईसाई और कुकी विरोधी आक्रामक रवैये ने ज्यादा दिनों तक चलने वाली लूटपाट और मारकाट में बदल दिया है। सरकार हिन्दू साम्प्रदायिक भूमिका में उतर आयी है। मणिपुर प्रकरण का उपयोग भाजपा पूरे देश में हिन्दू के नाम पर मत ध्रुवीकरण की रणनीति के तहत कर रही है। अलगाववादी भारत विरोधी उग्र समूहों और अफीम की खेती और तस्करी के नाम पर कुकी बहुल पर्वतीय क्षेत्र में जो प्रशासनिक दमन चल रहा है वह भी साम्प्रदायिक नजरिये से संचालित है। देशविरोधी उग्रवादी समूह और अफीम की खेती और तस्करी अपेक्षाकृत बहुत ही छोटे पैमाने पर है। सरकार का एक इरादा पूरे क्षेत्र को तनावक्षेत्र बताते हुए छठी अनुसूची के प्रावधानों को कमजोर करने या खत्म करने का भी हो सकता है।

यह तथ्य खुलकर आ चुका है कि भाजपा ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए उग्रवादी कुकी समूहों से सौदा किया। यानी उग्रवाद से उसे कोई परहेज नहीं है। भाजपा की केन्द्र सरकार असंवेदनशील और अक्षम है या इस हिंसा की सचेत साझेदार है। प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से लेना, मणिपुर जाना जरूरी नहीं समझा है। जब तनाव हिंसक हो रहा था उस वक्त प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कर्नाटक के चुनाव प्रचार में सिमटे हुए थे।

वक्ताओं ने इस परिस्थिति पर चिंता जाहिर की कि जारी हिंसा और गहरा आपसी अविश्वास और तनाव कम होने की संभावना फिलहाल नजर नहीं आ रही। राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रश्न पर सरोकारी नागरिकों की कोई प्रभावी सामूहिक पहलकदमी भी उभरती नहीं दीख रही। इस कारण इस संदर्भ में बार-बार सोचना और बोलना काफी जरूरी है।

इस चर्चा में रामशरण, रणधीर गौतम, पीएम एंथोनी, टॉम कावला, किरण निशांत, अशोक उन्नाव, अशोक श्रीमाली, राजेश मिश्रा, अतुल श्रीवास्तव, भाषाण मांझी, डीएनएस आनन्द, ज्ञानेन्द्र कुमार, ईश्वर अहिरे, जगनारायण जगत, जयंत दिवाण, मनोज आनन्द, मंथन, मिथिलेश कुमार दांगी, रुस्तम अंसारी, बागेश्वर बागी, जीतेश कांत, कुमार दिलीप, शाहिद कमाल, शैला सावंत, सुखचन्द्र झा, सुमन बाल्मिकी, तुकाराम मटकुरे, विनीता बाला, वीरेन्द्र कुमार, गणेश रवि, सुरेश खैरनार, सियाशरण शर्मा, सुनीता कुमारी, कुंजबिहारी, वासंती दिघे, मनोज कुमार, भक्तचरण दास, असीम पांडे, असित सिंहा, अंतस पलाश आदि सहभागी बने।

– मंथन

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