— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
अगर मैं यह कहूं कि सबसे ज्यादा मैं मरहूम कृष्णानंद जी को जानता था, और रिश्ता रहा है, तो सहकर्मी साथी मेरी इस गुस्ताखी को माफ कर दें। 1969‐70 में मैंने रामजस कॉलेज में एम.ए.(हिस्ट्री) में दाखिला लिया था। तथा कॉलेज हॉस्टल का हॉस्टलर भी बन गया था। छात्र राजनीति में सक्रिय भागीदारी वह भी धरना, प्रदर्शन, घेराव, जलसे जुलूस, जेल जाने वाली, होने के कारण रामजस कॉलेज में दाखिला लेने से पहले ही कृष्णानंद जी मुझे पहचानने लगे थे। क्योंकि अक्सर हमारा मोर्चा मौरिस नगर के चौक पर ही लगता था।
कॉलेज के शैक्षणिक ब्लॉक के प्रवेश द्वार पर जहां अब गर्ल्स कॉमन रूम है, वहां पर प्रिंसिपल का रूम हुआ करता था। प्रिंसिपल मरहूम पीडी गुप्ता साहब थे। प्रिंसिपल के रूम के बाहर एक चिक टॅंगी रहती थी, बाहर कुर्सी पर कृष्णानंद जी विराजमान रहते थे। एक मायने में उनका कर्फ्यू वहां लगा रहता था, वहां से गुजरने वाले छात्र को जरा तेज आवाज में बोलते ही कृष्णानंद जी मुंह पर उंगली रखकर हल्की सी सीटी से खबरदार करते रहते थे। कॉलेज के स्टाफ क्वार्टर में ही उनका निवास था, अक्सर वे मुझसे बतियाते रहते थे।
कृष्णानंद जी अकेले ऐसी वाहिद शख्सियत रहे हैं जिनका छात्र, अध्यापक, प्रिंसिपल, गवर्नर बॉडी के सदस्य और चेयरमैन यहां तक कि यूजीसी का वह विभाग जहां से ग्रांट आती है, उन सबसे उनका बड़ा खुलूस का मजेदार रिश्ता बना रहता था। गवर्निंग बॉडी के पास कॉलेज के कागज वे ही लेकर जाते थे। शहर के पुराने खानदानी रईस गवर्निंग बॉडी के सदस्य, चेयरमैन बनते थे। उनकी आदत चकल्लस, गप, तानाकशी तथा काम करने से पहले नखरा दिखाने की रहती थी। इसके लिए कृष्णानंद जी उनकी पहली पसंद बने रहते थे। उनके घर-दफ्तर से वे तभी लौटते थे, जब फाइल पर दस्तखत हो चुके होते थे।
अब सवाल पैदा होता है कि एक सामान्य श्रेणी के कॉलेज कर्मचारी का इतना सम्मान क्यों था? दरअसल कृष्णानंद जी का कॉलेज में बर्ताव एक अभिभावक के रूप में रहता था, कई ऐसी मिसाल मेरे जहन में उभर रही है। स्टाफ रूम की जिम्मेदारी कृष्णानंद जी की थी। मैंने कई बार देखा कि बिना स्नान-ध्यान के वे स्टाफ रूप में सुबह 6:00 बजे ही पहुंच जाते थे। पूरे स्टाफ रूम की सफाई, चाय के बर्तनों की ऐसी मंजाई जैसे कि अपने घर के बर्तनों की कोई करता है। केतली में गर्म पानी, दूध को उबालना वगैरह। एक दिन मैंने उनसे पूछा कि आप इतनी सुबह क्यों जाते हो, तो उनका कहना था कि सुबह की क्लास 8:15 पर शुरू हो जाती है, सुबह की क्लास लेने के लिए शिक्षक अपने घरों से पहले ही चल देते हैं। सर्दी के दिनों में अगर एक गर्म चाय ना मिले तो फिर मेरा क्या फायदा? उसके बाद ही अपने घर वापस जाकर तैयार होकर कॉलेज लौटते थे।
उनकी याददाश्त जबरदस्त थी, उन्हें पता रहता था कि अब अमुक शिक्षक की क्लास का समय है, चाय में किसको वरीयता मिलनी चाहिए। वे ट्रे में चाय के प्याले तैयार करके स्टाफ रूम की ओर बढ़ते, अगर किसी ने हाथ बढ़ाकर चाय लेने की हिमाकत की तो उसे कृष्णानंद जी की अंग्रेजी में मनाही सुनने के लिए तैयार रहना पड़ता था। कृष्णानंद जी व्यस्तता के दबाव में कई बार शिक्षकों को अपनी प्यारी अंग्रेजी में सीख देने में भी कोताही नहीं करते थे।
कई बार मैंने उनको हॉस्टल के विद्यार्थियों को वक्ती मदद के लिए शिक्षकों से निवेदन करते हुए भी देखा। उनकी कार्यप्रणाली, अपनी जिम्मेदारी को पूरी शिद्दत के साथ निभाना, सबसे खुलूस और प्यार का रिश्ता जिसमें अदब तथा हल्की झाड़ एक कर्मचारी की नहीं, घर के उम्रदराज की सरपरस्ती टपकती थी। इसी कारण रिटायरमेंट के बावजूद स्टाफ एसोसिएशन का प्रयास था कि वे स्टाफ रूम से जुड़े रहें।
मैं अपने श्रद्धा सुमन उनकी स्मृति में अर्पित करता हूं।