— अनुपम —
यह वक्त है जब प्रधानमंत्री को मणिपुर की जनता से संवाद करना चाहिए था, इस कठिन घड़ी में उनका भरोसा और ढाढ़स बॅंधाना चाहिए था।
लेकिन वो संवाद कर रहे हैं दिल्ली मेट्रो की जनता से। मणिपुर उनके मन से ही नहीं, मैसेजिंग से भी गायब है। ऐसा क्यों?
दरअसल, यही उनका राजनीतिक सिद्धांत है – चुनौतियों और असफलतों से खुद को दूर रखने का और सफलताओं का सेहरा अपने सर लेने का। इस मामले में भी वो ‘सब चंगा सी’ का संदेश देना चाहते हैं।
हमेशा की तरह वो दिखाना चाहते हैं कि यह अमृत काल है, सच्चाई चाहे कुछ भी हो। इसके लिए चाहे बड़े से बड़े संकट की तरफ आँख ही क्यों न मूँदना पड़े।
तभी तो यह खबर बनवायी गयी कि अमरीका से लौटते ही दिल्ली हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री ने भाजपा अध्यक्ष नड्डा जी से पूछा, “देश में सब कैसा चल रहा है?” नड्डा ने जवाब दिया कि सब बढ़िया है। यह बातचीत वो दोनों आपस में नहीं, हमको और आपको मैसेज देने के लिए कर रहे थे। यह दिखाने के लिए कि मणिपुर में लगी आग कोई चिंता का विषय नहीं। उसपर हम लोग ज्यादा ध्यान न दें। सब कुछ ठीक है।
भारत का गोदी मीडिया भी ढोल नगाड़ा लेकर मोदी जी के पीछे पीछे घूमता रहता है। बड़ी खबर उसी को मानता और बताता है जिसमें वो खुद हों। खबरों का जनता से नहीं, सिर्फ सरकार से सरोकार होता है।
मोदी जी एकतरफा संवाद के एक्सपर्ट हैं। किसी सवाल का सामना नहीं करते। वरना अब तक सैकड़ों बार पूछा जा चुका होता कि मणिपुर की जिम्मेदारी उनकी है भी या नहीं। लेकिन वो तो करते हैं अपने मन की बात। जनता के मन की बात करते तो मणिपुर की बात करनी पड़ती।
असल में उनकी यह मेट्रो की यात्रा भी मणिपुर की व्यथा से ध्यान हटाने के अलावा कुछ खास नहीं था। ऐसे स्टंट वो विशेष तौर पर तभी करते हैं जब कहीं किसी और खबर से देश का ध्यान भटकाना हो।