झांसी में पानी की किल्लत से प्रभावित होती स्कूली पढ़ाई

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Jhansi

5 जुलाई। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 300 किलोमीटर दूर ज‍िला झांसी के कटेरा देहात में रहने वालीं आंकाक्षा अकेली ऐसा करने वाली नहीं है। उसके जैसी कई छात्राओं को प्रत‍िदिन स्‍कूल जाने से पहले घर पर पानी की व्‍यवस्‍था करने के लिए कई क‍िमी का सफर तय करना पड़ता है, और इस सब का असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ता है। स्‍टील के बर्तन में स‍िर पर पानी लेकर जाते हुए कक्षा 12वीं की छात्रा नेहा ने नाराजगी जताते हुए कहा कि स्‍कूल जाने से पहले उन्‍हें तीन से चार क‍िमी दूर पानी के लिए जाना पड़ता है। ज्‍यादातर हैंडपंप खराब हैं। ज‍िसमें पानी आता है वह दूर है, और वहाँ लंबी लाइन लगती है। कई बार देर हो जाती है, तो स्‍कूल में प्रवेश नहीं म‍िलता। लेकिन हमारे सामने दूसरा कोई चारा भी तो नहीं है।

झांसी मध्‍य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैले बुंदेलखंड के 13 ज‍िलों में से एक है। बुंदेलखंड भारत का वह क्षेत्र है, जो पानी की कमी और सूखे के लिए जाना जाता है। सरकार इस समस्‍या से न‍िजात द‍िलाने के ल‍िए कई तरह के पैकेज और योजनाओं का ऐलान समय-समय पर करती है। प्रत्येक ग्रामीण इलाके के हर घर में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू हुई केंद्र सरकार की हर घर जल योजना के तहत झांसी के घरों में नल कनेक्‍शन देने की प्रक्र‍िया शुरू है, लेकिन आंकड़ों के मुताबिक, योजना के शुरू होने से अब तक ज‍िले के 63.94 फीसदी(1 जुलाई 2023 तक) घरों तक ही नल कनेक्‍शन पहुँच पाए हैं।

वर्ष 2016 की यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सूखा-प्रभावित राज्यों में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में 22 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। इसी र‍िपोर्ट में बताया गया, कि करीब 54 फीसद ग्रामीण महिलाओं के साथ किशोर लड़कियां हर दिन पानी इकट्ठा करने के लिए 35 मिनट खर्च करती हैं, जो 27 दिनों की मजदूरी के बराबर है। एक दूसरी रिपोर्ट बताती है, कि दुनिया भर में बच्चे प्रतिदिन 200 मिलियन घंटे पानी इकट्ठा करने में बिताते हैं।

(‘इंडिया स्पेंड’ से साभार)

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