भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापारिक साझेदारी का बढ़ता कारवॉं

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— समीर शेखर —

मकालीन दुनिया में एक व्यापारिक साझेदार के रूप में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के संबंधों का अपना एक विशेष महत्त्व है। वर्तमान में यूएई भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। आर्थिक साझेदारी ने यूएई के साथ सांस्कृतिक, शैक्षिक, सामरिक व कला के क्षेत्र में भी एक दूसरे के प्रति सहयोग एवं विश्वास का भाव विकसित करने में मदद की है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती देने के लिए 1975 में एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किया गया था ताकि कला, शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण आयामों का आदान प्रदान संभव हो सके और इसके माध्यम से दोनों देशों में इन क्षेत्रों सहित विज्ञान, तकनीकी, खेल, लोक-स्वास्थ्य एवं संचार व मीडिया के क्षेत्र में मजबूती स्थापित की जा सके। 1990 से पहले भारत की बंद एवं नियंत्रित आर्थिक नीतियों ने दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को सीमित कर रखा था। यही कारण है कि भारत और यूएई के बीच आर्थिक व्यापारिक क्षेत्र में गतिशीलता 1990 के दशक के दूसरे चरण में देखी गई। तब से लेकर अब तक कई प्रकार के सार्थक समझौते दोनों देशों के बीच हुए हैं।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा हाल में जारी किये गए आंकड़े के अनुसार भारत अपने वैश्विक निर्यात का 7% हिस्सा यूएई को निर्यात करता है जो भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिका (17.41%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश है। वहीं दूसरी तरफ आयात के दृष्टिकोण से भी भारत कुल वैश्विक आयात का 7.4% हिस्सा यूएई से आयात करता है जो चीन (13.79%) के बाद सबसे ज्यादा है। आयात एवं निर्यात दोनों में यूएई का दूसरे स्थान पर होना यह बतलाता है कि भारत का यूएई के साथ व्यापार को बढ़ावा देना कितना आवश्यक हो जाता है। पिछले कुछ दशकों में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूती देने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाये जाते रहे हैं। जहाँ यूएई को भारत श्रम आधारित उत्पाद जैसे अनाज, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जवाहरात एवं आभूषण आदि का निर्यात कर रहा है वहीं यूएई से पेट्रोलियम, मिनरल आयल, रक्षा सौदा, हीरे एवं सोना जैसी कीमती वस्तुओं के साथ न्यूक्लियर रिएक्टर, रासायनिक पदार्थ, शिप आदि का आयात करता है।

भारतीय आयात एवं निर्यात के माध्यम से अर्थव्यवस्था में यूएई का जो स्थान है उसे देखते हुए भारत के यूएई के साथ व्यापारिक समझौते बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इसी क्रम में वैश्विक पटल पर बेहतर संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 2017 में जब यूएई के तत्कालीन राजकुमार एवं वर्तमान राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायेद अल नहयान जनवरी 2017 में भारत की यात्रा पर आए उस दौरान व्यापक रणनीतिक साझेदारी के तहत 13 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए थे जिनमें रक्षा उद्योग, समुद्री परिवहन, साइबर सुरक्षा, शिपिंग और परिवहन के क्षेत्र में साझेदारी शामिल थी। इसके बाद भारत- यूएई के बीच व्यापार परिमाण (वॉल्यूम) में निरंतर तेजी आई है। इसी क्रम में दोनों देशों द्वारा की गई प्रगति को तीव्रता से आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक समझौते को आगे बढ़ाते हुए एवं द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूती प्रदान करने के लिए 18 फरवरी 2022 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संयुक्त अरब अमीरात के महामहिम राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक, महामहिम शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के बीच एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन के आयोजन के दौरान भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए – CEPA) पर हस्ताक्षर हुए और इसका क्रियान्वयन 1 मई 2022 को हुआ। सीईपीए के अस्तित्व में आने के बाद से भारत और यूएई के बीच व्यापार प्रवाह में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।

पिछले एक वित्तवर्ष के दौरान इस समझौते का दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। वित्तवर्ष 2021-22 (अप्रैल 21-मार्च 2022) के दौरान दोनों देशों के बीच का कुल व्यापार मूल्य 72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वित्तवर्ष 2022-23 (अप्रैल 22 – मार्च 2023) के दौरान बढ़कर 84.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। पिछले वर्ष की तुलना में बीते वर्ष व्यापार में 16% की वृद्धि दर्ज की गई। अगर बात सीईपीए के कार्यान्वयन अवधि की की जाए तो मई, 2022 से मार्च, 2023 के दौरान, द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 67.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 76.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जो 14% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।

सीईपीए के बाद भारत-यूएई के बीच व्यापार प्रवाह में वृद्धि के कारणों पर गौर किया जाए तो इस समझौते ने भारत और यूएई के बीच आने-जाने वाले सामानों पर 80% टैरिफ कम करने के प्रावधान के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया कि आगामी दस वर्षों के भीतर सभी टैरिफ को समाप्त कर दिया जाएगा। सीईपीए के तहत दोनों देशों के लघु एवं माध्यम उद्योग (SME) को 11 सेवा क्षेत्रों और 100 से अधिक उप-क्षेत्रों में सीमापार व्यापार में भागीदारी सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान किया गया है जिनमें स्वास्थ्य सेवा, निर्माण, शिक्षा, परिवहन, धातु, प्रसंस्कृत खाद्य जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। निश्चय ही इसने संभावित निर्यातकों को वास्तविक निर्यातक में बदलने में प्रमुख भूमिका निभायी है।

इस तरह दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाए जाने की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला एवं वितरण प्रणाली का परिसीमन निर्बाध एवं निरंतर व्यापार सरलीकरण में व्यवधान पैदा कर रहा है। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच ‘ईज ऑफ डूइंग’ बिजनेस को और बेहतर बनाने के लिए मिलकर काम करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है। दोनों देशों के बीच खनिज ईंधन, विद्युत मशीनरी, टेलीफोन उपकरण; रत्न और आभूषण; ऑटोमोबाइल; आवश्यक तेल एवं प्रसाधन सामग्री; चावल; कॉफी/चाय/मसाले; अन्य कृषि उत्पाद; एवं रासायनिक उत्पाद आदि का व्यापार प्रमुख है। इन सभी उत्पादों के लिए विशेषीकृत आपूर्ति श्रृंखला व उपयुक्त रसद प्रक्रिया का होना नितांत आवश्यक है। इस परिप्रेक्ष्य में जिन विशेष बातों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है उनमें पोर्ट प्रबंधन, परिवहन, उन्नत मार्ग, संचार, लदान, प्रेषण सुरक्षा, यथासमय विभिन्न प्रकार की जांच, गुणवत्ता की जांच, उपयुक्त दस्तावेज तैयार करना एवं उसका निर्गमन, टैरिफ प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण विषय हैं। सरकार निरंतर इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कार्य कर रही है और देश में लॉजिस्टिक्स व आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर एवं मजबूत बनाने के लिए विभिन्न प्रयास कर रही है। जैसे वाणिज्य मंत्रालय के लॉजिस्टिक्स विभाग द्वारा भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान की सहायता से उत्पाद क्षेत्र विशेष आधारित लोजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI-S) का विकास करना, गति शक्ति जैसे विशाल परियोजना का क्रियान्वयन आदि।

जो संभावनाएं और अवसर इन दो देशों के बीच हैं उसे पूरी क्षमता के साथ साकार करना इस बात पर निर्भर करेगा कि इनके बीच निर्बाध सीमा पार (अंतरराष्ट्रीय) व्यापार नेटवर्क, भरोसेमंद रसद हितधारक (स्टेकहोल्डर्स) और एक स्वस्थ आपूर्ति श्रृंखला एवं व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र का विकास हो जो लघु व मध्यम उद्योगों को सफल होने की ओर अग्रसर करेगा एवं उसे सशक्त करेगा। द्विपक्षीय व्यापार समृद्धि के लिए रसद प्रणाली का मजबूत बुनियादी ढांचा का होना आवश्यक है। इन आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भारत एवं यूएई के बीच व्यापार परिमाण (वॉल्यूम) को और अधिक तीव्रता से बढाने में सीईपीए की भूमिका प्रमुख हो जाती है।

यह समझौता द्विपक्षीय व्यापार को आगे ले जाने के लिए एक मजबूत रसद उद्योग की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इस समझौते का महत्त्व इसलिए भी बहुत ज्यादा हो जाता है क्योंकि यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य जो समस्त अरब देशों के साथ किये जाने वाला कुल व्यापार के 40% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। रसद प्रक्रिया को अगर आधुनिकतम एवं उपयुक्त तकनीकी व आवश्यक हितकारियों के साथ नियोजित तरीके से विकसित किया जाए तो फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरणों और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में व्यापार भी काफी हद तक बढ़ेगा, जिससे उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्मार्ट और विशेष आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क में अधिक निवेश होगा। एक छोर से दूसरे छोर तक (एंड-टू-एंड) तापमान-नियंत्रित आपूर्ति श्रृंखला जैसी विशेष सेवा, जटिल कागजी प्रक्रिया का सरलीकरण एवं संकुचन, कस्टम निरिक्षण एवं सीमा शुल्क प्रलेखन की प्रक्रिया में शीघ्रता लाने के लिए के लिए डिजिटाइज्ड प्रक्रिया का प्रवर्तन आदि जैसे आवश्यक कदम सीईपीए के प्रमुख उद्देश्य को फलीभूत करने में कारगर साबित होंगे। ऐसे में रसद तंत्र को मजबूत बनाने के लिए इसमें निवेश भारत और संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था व आयात-निर्यात की सफलता के लिए जरूरी हो जाता है।

वर्तमान में भारत का रसद बाज़ार 215 अरब डॉलर के लगभग आँका गया है जिसका वर्ष 2025 तक 10.5 प्रतिशत के सीएजीआर की दर से बढ़ते हुए 380 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। निश्चित रूप से सीईपीए एवं वृहद् रसद निवेश, रसद बुनियादी ढांचे को मजबूत करते हुए तथा मुक्त व्यापार नीति को बढ़ावा देते हुए भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापार संबंधों को और भी मजबूती एवं स्थायित्व प्रदान करेगा।

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