विकास की गिद्ध दृष्टि

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Sarva Seva Sangh

— केशव शरण —

निरन्तर गरीब होते जा रहे मुल्क में विकास की धूम मची है। गरीब मुल्क की सांस्कृतिक राजधानी काशी में कुछ ज्यादा ही, जहाँ चप्पा-चप्पा किसी न किसी स्थापत्य से आच्छादित है। विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर सघन गलियों में था। वहाँ तक अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को दर्शनार्थ बड़ी असुविधा होती थी। सैकड़ों मकानों और धरोहरों को ध्वस्त कर काशी विश्वनाथ धाम का विकास और विस्तार तथा सौंदर्यीकरण किया गया। आज वहाँ पर्यटकों की भीड़ रहती है और सुना जा रहा है कि इसमें लगी लागत भी निकल आई है। यह अर्जन महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन इसके पीछे बनारस ने जो गँवाया है वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं था।

घाटों-घाट चला यह विकास जब कच्चे खिड़किया घाट पहुँचा तो वहाँ भी पचासों झुग्गियाँ तोड़ी गईं और पर्यटन की दृष्टि से भव्य नमो घाट अस्तित्व में आया। यहाँ से विकास ने नजर दौड़ाई तो उसे नमो घाट के ऊपर गांधी और विनोबा की विरासत एक जीवित संस्थान सर्व सेवा संघ दिखाई पड़ा और उसे अर्जित करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति पर चल पड़ा। काशी का यह पूर्वी छोर हरियाली से भरपूर है। उसी हरियाली का सौंदर्य सर्व सेवा संघ के परिसर में भी है जिसके नीचे भारत के मानचित्र के आकार में वरुणा नदी बहती है। यह कछारी भू-सौंदर्य देखने और सराहने योग्य है और जैसा है वैसा ही छोड़े रखने योग्य है। सर्व सेवा संघ के निचले हिस्से में गांधी विद्या संस्थान है। अपने हिस्से की यह जमीन सर्व सेवा संघ ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण को गांधी विचार-दर्शन और उसकी व्यावहारिकता संबंधी शोध के लिए तीस वर्षों की लीज पर दी है जबकि सर्व सेवा संघ ने अपनी जमीन रेल विभाग से उन्नीस सौ साठ में खरीदी है। उसके दस्तावेज आज भी सर्व सेवा संघ के पास हैं। लेकिन वाराणसी का रेल दफ्तर कहता है कि यह उसकी जमीन है जिस पर सर्व सेवा संघ ने कूटतापूर्वक अतिक्रमण कर रखा है।

अंध विकास का पिट्ठू बनारस जिला प्रशासन ने दाखिल -खारिज में किसी कमी के आधार पर रेलवे के दावे को उचित ठहराया। इसके बाद रेलवे ने अवैध बताकर परिसर स्थित सभी भवनों पर गिराने का नोटिस चस्पा कर दिया। इन भवनों के बीच एक भवन में भारत सरकार का एक उपडाकघर भी है जिसका नाम है सर्व सेवा संघ उपडाकघर। क्या यह डाकघर भी अवैध है?

इसी परिसर में अखिल भारतीय सर्व सेवा संघ का प्रकाशन गृह है जहाँ से अब तक पन्द्रह सौ किताबें जिनमें गांधी-विनोबा की किताबें, गांधी-विनोबा के बारे में किताबें, स्वाधीनता संग्राम और स्वतंत्रता-सेनानियों के बारे में किताबें, भारत के इतिहास-भूगोल-संस्कृति के बारे में किताबें, बाल विकास के लिए बच्चों की किताबें लाखों की संख्या में प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा यहाँ से सर्वोदय जगत नाम की एक पाक्षिक विचार पत्रिका भी निकलती है। इन पुस्तकों और इस पत्रिका की बिक्री मुख्यत: रेलवे-स्टेशनों पर स्थित सर्वोदय बुक स्टालों से होती है। इससे पता चलता है कि दोनों में पुराना और अच्छा संबंध रहा है। और ऐसा एक सोच के चलते था जिसका देश के विकास और गांधीवाद से गहरा संबंध था।

वह सोच बदल गई है। सत्ता बदल गई है। विचारधारा बदल गई है। और इस सब के साथ रेलवे बदल गया है। वह मुकर रहा है कि उसने अपनी जमीन सर्व सेवा संघ को बेची थी। वही जमीन जिस पर सर्व सेवा संघ बासठ-तिरसठ साल से अपनी वैचारिक और भौतिक गतिविधियाँ चला रहा है। जीटी रोड के उस पार की जमीन पर बसी कच्ची-पक्की बस्ती जो रेलवे के कोयला यार्ड तक फैली थी उसे रेलवे ने ध्वस्त करवा दिया है। उसे अवैध माना जा सकता है। जीटी रोड बहुत पुरानी रोड है। शेरशाह की बनवाई हुई। माना कि रेलवे की जमीन जीटी रोड के इस पार भी थी, पर उसे सर्व सेवा संघ ने उससे खरीदा था। खरीदे भी कितने दशक हो गए। सर्व सेवा संघ इसका कानूनी सबूत दे रहा है। लेकिन रेलवे तुला है बिक्री को अवैध बताकर जमीन वापस लेने पर और उस पर बने भवनों को गिराने पर।

कहा जा रहा है इसके पीछे मोदी जी के सपनों की भूमिका है। बनारस की सूरत बदल देनी है और बदलने की वाह-वाही लूटनी है। बनारस विविधता और एकता की मिसाल रहा है। वह ज्ञान और कला का केंद्र भी रहा है। वह वाणिज्य और धर्म का गतिमान स्वरूप रहा है। और यह सब एक सनातन शैली में। ऐसे बनारस को जान-बूझकर बाजार में बदला जा रहा है जहाँ केवल एक धार्मिक और बौद्धिक जड़तावाद बचेगा, और कुछ नहीं। पैसा, सुविधा, ग्लैमर को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन क्या नागरिक जीवन को इन्हीं से भरा जाएगा और चीजों से खाली करके? मानवीय और सांस्कृतिक रूप से यह एक बड़ा सवाल है लेकिन पैसे और सत्ता के लिए इसे ताक पर रख दिया गया है।

सर्व सेवा संघ गांधीवादियों का वैचारिक गढ़ है। कल अगर यह गढ़ गिरा दिया जाता है तो फिर क्या बचेगा और क्या बनेगा यह भी एक बड़ा प्रश्न है। क्या बनेगा अभी तक स्पष्ट नहीं है। लेकिन बिल्कुल साफ है क्या नहीं बचेगा। गांधी-विनोबा का विचार-प्रसार का एक केंद्र जाएगा। जनविरोधी सत्ताओं के विरुद्ध स्वर उठाने और कार्यक्रम करने का मंचीय स्थल जाएगा। बनारस में वैचारिकी की जगह सिकुड़ेगी। सर्व सेवा संघ ने अपने परिसर में जो हरियाली और भू-दृश्यता बचाकर रखी है वह जाएगी। राष्ट्रीय पंछी विस्थापित होंगे और वह जानवर जो नदी की ढलान चढ़कर परिसर में आ जाते हैं जिनके वयस्क घोड़ों की तरह नजर आते हैं और बच्चे हिरनों की तरह। पर्यावरण का नुकसान और गांधी का अपमान, सच में बहुत चुभेगा।

गांधी का अपमान और पर्यावरण का नुकसान किये बिना बनारस में सुविधाओं और पर्यटन का विस्तार किया जा सकता है। और वह भी सर्व सेवा संघ को छेड़े बिना और उससे सटकर। सर्व सेवा संघ के पश्चिमी तरफ जो एक एकड़ की खाली जमीन, जिसे सर्व सेवा संघ अपनी बताता है और जिस पर प्रशासन ने निर्माण सामग्री रखवाकर घेरवा लिया है और सर्व सेवा संघ को वापस करना नहीं चाहता है उसपर वह एक पब्लिक पार्क बनवा दे। नमो घाट जैसे भव्य पथरीले घाट के पास एक फूल-पत्तों वाले पार्क की बड़ी जरूरत है। शहर के इस कई किलोमीटर के इलाके में एक भी पार्क नहीं है। यदि सरकार ऐसा करती है तो जनकल्याण का बहुत बड़ा काम होगा। वरुणा नदी के इस तट पर आबादी क्षेत्र में पार्क और उस तट के वीरान इलाके में जिसे वरुणा भारत के नक्शे का आकार देती है उस पर वह जंगल लगवा दे और जंगल में हिरण, बारहसिंगे रखवा दे। इस पार पार्क में विहरते और बैठे लोग और बच्चे आराम और आनंद से उस पार उन्हें विहरते और चरते देखते रहें। वन की उत्तरी और पश्चिमी सीमा की जमीन ऊँची कर दें ताकि बाढ़ में वे वहाँ सुरक्षित पनाह लें। जन और पर्यावरण हित में सरकार यही करे। गांधी और विनोबा की विरासत को नष्ट करना एक सोच और संस्कृति को नष्ट करना और समाज में अशांति उत्पन्न करना है।

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