विपक्षी गठबंधन के नाम से बौखलाए प्रधानमंत्री

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— गोपाल राठी —

भोपाल में न्यू मार्केट वाला इलाका टी.टी.नगर कहलाता है। जबकि उसका पूरा नाम तात्या टोपे नगर है। जबकि इसी तरह एमपी नगर का पूरा नाम महाराणा प्रताप नगर है । अधिकांश लोग इन स्थानों को उनके संक्षिप्त नाम से ही जानते हैं। साइनबोर्ड और पते में भी यही संक्षिप्त नाम उपयोग किए जाते हैं। अब तो शायद भोपाल के लोग ही पूरा नाम भूल गए। भोपाल में सार्वजनिक क्षेत्र का एक बहुत बड़ा संस्थान है जिसका पूरा नाम Bharat Heavy Electricals Limited है। इस संस्थान का संक्षिप्त नाम BHEL चलन में है। BHEL को हिंदी में भेल लिखा जाता है। अखबारों में भी भेल ही प्रचलित है। जबकि भेल नाम किसी ने रखा नहीं है। डॉ. आंबेडकर की जन्मस्थली का प्रचलित नाम महू है। जबकि इस स्थान का पूरा नाम Military headquarters of War ( MHOW महू) है।

बताने का उद्देश्य यह है कि किसी भी संस्था के संक्षिप्त नाम नहीं रखे जाते। लोग अपनी सुविधा के लिए उन्हें इस्तेमाल करते हैं। विपक्षी गठबंधन के संक्षिप्त नाम को एक आतंकवादी संगठन या ईस्ट इंडिया कम्पनी से जोड़ना प्रधानमंत्री की बौखलाहट को ही दर्शाता है।

18 जुलाई को भाजपा विरोधी 26 दलों का गठबंधन अस्तित्व में आया। गठबंधन का पूरा नाम भारतीय राष्ट्रीय विकासमूलक समावेशी गठबंधन अर्थात्, Indian National Developmental Inclusive Alliance (INDIA) है । जबकि इसी दिन सत्तापक्ष समर्थक 38 दलों ने अपने गठबंधन की मीटिंग की जिसका नाम National Democratic Alliance (NDA) है।

भाजपा के नेतृत्व में 1998 में National Democratic Alliance (NDA) बनाया गया था। इस गठबंधन की सरकार के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी थे। NDA के संयोजक जार्ज फर्नांडिस थे और उनके निधन के बाद शरद यादव। उस समय NDA में जनता दल यू, तृणमूल कांग्रेस, तेदेपा, नेशनल कांफ्रेंस, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी आदि पार्टियां शामिल थीं और सत्ता में भी भागीदार थीं।

2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में 10 पार्टियों ने मिलकर United Progressive Alliance ( UPA) बनाया था। जिसने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दस साल तक राज किया।

राजनीतिक गठबंधन बनाना कोई नई बात नहीं है। गठबंधन का पहला लक्ष्य होता है विरोधी वोटों को विभाजित होने से रोकना। 1967 में जब डॉ. लोहिया ने गैरकांग्रेसवाद का नारा दिया तो उनका उद्देश्य कांग्रेस-विरोधी मतों को बॅंटने से रोकना था। उनकी इस रणनीति का असर यह हुआ कि अनेक प्रान्तों में गैरकांग्रेसी संयुक्त सरकारें बनीं। गैरकांग्रेसी दलों में कोई सैद्धांतिक एकरूपता नहीं थी, वे सिर्फ कांग्रेस को हटाने के नाम पर सहमत हुए थे। 1977 में तो गठबंधन से आगे जाकर कांग्रेस विरोधी पार्टियों ने आपस में विलय करके जनता पार्टी का गठन किया था और केंद्र में पहली बार कांग्रेस को अपदस्थ कर गैरकांग्रेसी सरकार बनाई गई थी।

राजनीतिक जरूरत के हिसाब से गठबंधन बनते और बिगड़ते रहे हैं। परिस्थितियों के अनुसार दो, तीन या चार गठबंधन हो सकते हैं। देवेगौड़ा और गुजराल संयुक्त मोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री बने थे जिसमें गैरकांग्रेसी और गैरभाजपाई दल शामिल थे। वीपी सिंह के नेतृत्व में जन मोर्चा बना और जन मोर्चा में अन्य दल शामिल होने से जनता दल बना। जनता दल की पहल पर राष्ट्रीय मोर्चा का गठबंधन बना। वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा गठबंधन समर्थित प्रधानमंत्री थे। इस सरकार को भाजपा का समर्थन था। लेकिन साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य से निकाली गई आडवाणी की रथयात्रा को रोकने और गिरफ्तारी के कारण भाजपा ने वीपी सिंह को दिया गया अपना समर्थन वापिस ले लिया था।

गठबंधन एक राजनीतिक गोलबंदी है जिसका आधार सैद्धांतिक भी हो सकता है और व्यावहारिक भी। गठबंधन न्यूनतम सैद्धांतिक आधार (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम) तय कर अपनी राजनीतिक दिशा तय करता है। भाजपा विरोधी गठबंधन की न्यूनतम सैद्धांतिक समझ तो कुछ कुछ नजर आती है लेकिन भाजपा समर्थक गठबंधन का क्या आधार है यह स्पष्ट नहीं है। सत्ता और सिर्फ सत्ता ही एकमात्र एजेंडा है उनका ।

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद NDA का विशेष महत्त्व नहीं बचा। 2014 और 2019 में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने के बाद भाजपा की इस पर निर्भरता नहीं रही। NDA का ढीला-ढाला ढांचा कायम रहा लेकिन न कभी उसकी मीटिंग हुई और न शरद यादव के बाद कोई उसका संयोजक बना। राज्यों में सरकार बनाने के लिए छोटे-छोटे दलों को फांसने के लिए उन्हें केंद्र सरकार में भागीदार बनाया गया। जो भाजपा के जाल में फॅंस गए वे सब NDA में हैं। सीबीआई और ईडी के शस्त्र से आक्रांत नेता अपना अपना दल लेकर NDA का हिस्सा बन गए। ओमप्रकाश राजभर, जीतनराम मांझी, चिराग पासवान टाइप के नेता और उनकी जाति की पार्टी राजनीतिक सौदेबाजी के तहत NDA में आ गए। 18 जुलाई को दिल्ली में हुई NDA की मीटिंग में 38 दल और उनके नेता शामिल हुए। मीटिंग में इन सब पार्टियों के नेतानरेंद्र मोदी का भाषण सुनने और ताली बजाने के लिए बुलाए गए थे। किसी को भाषण देने का मौका नहीं मिला। NDA के मंच पर पृष्ठभूमि में सिर्फ नरेंद्र मोदी की फोटो थी ।

भाजपा विरोधी दलों के गठबंधन I .N.D.I.A.के सामने आते ही भाजपा में अजीब सी बौखलाहट देखी जा रही है। ऐसा लगता है खतरे की घंटी बज गई है। विरोध करने की कोई वजह न होने से INDIA नाम पर ही खिसिया रहे हैं। जब आपके गठबंधन NDA में 38 पार्टियां हैं तो 26 पार्टियों वाले गठबंधन INDIA से क्यों घबरा रहे हैं साहेब? प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर जो बयान दिया वह बचकाना है। उन्हें गठबंधनों का इतिहास नहीं मालूम? उन्हें गठबंधन के नाम और उसके संक्षिप्त नाम का अंतर नहीं पता?

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