वाराणसी में हुआ जन प्रतिरोध सम्मेलन, प्रेरणा स्थलों को मिटाने की साजिश नाकाम करने का आह्वान

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9 अगस्त। सर्व सेवा संघ के वाराणसी परिसर पर सरकार के अवैध कब्जे के खिलाफ, भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के अवसर पर सर्व सेवा संघ और लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान की तरफ से दो दिवसीय जन प्रतिरोध अभियान 9 अगस्त को शुरू हुआ। इस अभियान के तहत पहले दिन मैदागिन स्थित पराड़कर भवन में आयोजित जन प्रतिरोध सम्मेलन में बोलते हुए सत्र की अध्यक्षता कर रहे सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने कहा कि आज से 130 साल पहले दक्षिण अफ्रीका में गांधी को रेलवे ने ट्रेन से बाहर फेंक दिया था, उसी तरह आज एक बार फिर भारत के रेलवे ने गांधी साहित्य को उठाकर बाहर फेंक दिया है। इतिहास खुद को दोहरा रहा है। आज देश की धर्मनिरपेक्ष और सज्जन शक्तियों को जागने की जरूरत है। देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर जो आघात किये जा रहे हैं, उससे चिंतित होने की जरूरत है। जिस विनोबा ने 48 लाख एकड़ जमीन मांगकर दान में बाँट दिया, उस विनोबा पर 13 एकड़ जमीन के लिए बेईमानी करने का आरोप लगाया जा रहा है। ये स्थान हमारे लिए प्रेरणा स्थल की तरह हैं।

इस अवसर पर लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान के अध्यक्ष प्रो आंनद कुमार ने कहा कि हम हुकूमत के सामने खड़े लोग हैं। हमें भारत के मूल्यों के खिलाफ काम करने वाली सरकार के प्रति सजग और चिंतित रहने की जरूरत है। हमारे खिलाफ जो हमला है, वह सबके सामने है। हम पहली बार देख रहे हैं कि सिस्टम का हर हिस्सा हमारे खिलाफ काम कर रहा है। हमारी तैयारियों से सरकार में भी घबराहट है। मीडिया भी हम पर हमलावर है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लालबहादुर शास्त्री, विनोबा, जेपी जैसों पर बेईमानी का आरोप लगाने वाले ये कौन हरिश्चंद्र पैदा हो गए हैं! तीसरा हमला सत्ताधारी राजनीतिक दल की तरफ से भी हो रहा है। पांचजन्य जैसी पत्रिकाओं में झूठ का पुलिंदा छप रहा है। मैं कांग्रेस, समाजवादी और आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों को सर्व सेवा संघ का साथ देने के लिए बधाई देता हूँ।

सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की अध्यक्ष आशा बोथरा ने कहा कि अन्यायपूर्ण हमले का प्रतिरोध करना हमारा संस्कार है। यह जो लड़ाई चल रही है, उसको आपका समर्थन देखकर हौसला होता है। हमलों की इस प्रवृत्ति को समझना होगा। हम संकल्पशील लोग हैं। हमें अपनी जीत के प्रति आश्वस्त होना चाहिए। यह अगस्त क्रांति का अवसर है। इस दिन की पवित्रता और इसके महत्व को एक बार फिर से स्थापित करने की जरूरत है।

ओड़िशा से आए लोहिया अकादमी के अध्यक्ष प्रफुल्ल सामंतरा ने कहा कि इस सत्याग्रह को जारी रखना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। आज की सरकार देश को कॉरपोरेट नियंत्रित बनाना चाहती है। इस साजिश को समझना जरूरी है। एक तरफ फासीवादी ताकतें हैं, दूसरी तरफ सामाजिक आंदोलनों की शक्ति है। देश को कारपोरेट हाथों में देने के लिए नए नए कानून बनाए जा रहे हैं। देश के प्राकृतिक संसाधनों तक को कारपोरेट के हाथों सौंपने की प्रक्रिया चल रही है।

मैग्सेसे अवार्डी संदीप पांडेय ने कहा कि हमारी लड़ाई बहुत साफ है। हमलोगों को बहुत साफ साफ यह समझ लेना चाहिए कि गांधी और संघ के विचार में साफ साफ विभाजन रेखा है। गांधी और संघ की राष्ट्रवाद की अवधारणा में फर्क है। अगर मुसलमान और इस्लाम को हटा दें तो संघ का कोई राष्ट्रवाद बचता ही नहीं। गांधी संस्थाओं पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। दुनिया में देश की पहचान ही गांधी से है। गांधी भी अब बुद्ध की कोटि में पहुंच रहे हैं। यह तय करने की जरूरत है कि देश में गांधी का विचार रहेगा या गोडसे का। अगर यह सरकार नहीं बदली, तो ये तकलीफें बनी ही रहेंगी। मैं मोदी के खिलाफ बनारस से प्रो आंनद कुमार को प्रत्याशी बनाने का आवाहन करता हूँ।

खुदाई खिदमतगार के फैजल ख़ान ने कहा कि आज के विष भरे वातावरण में मुहब्बत और सद्भावना का काम करने की जरूरत है। साधना केंद्र को बचाना कोई बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है विचार के संस्कारों को बचाना। इसके लिए देश में अभियान चलाने की जरूरत है।

डॉ सुनीलम ने कहा कि हमारी विरासत इतनी बड़ी है कि 13 एकड़ की जमीन हमारा लक्ष्य नहीं हो सकती। हमारा लक्ष्य हमारी विरासत ही हो सकती है। ये हमला उसी विचार और विरासत पर है। बनारस की धरती ने दुनिया को अनेक विभूतियां दी हैं। इस धरती ने ऐसे विचार विरोधी आदमी को दो दो बार अपना प्रतिनिधि क्यों चुना, यह बनारस को सोचना पड़ेगा। हमें ये तस्वीरें बनारस के एक एक मतदाता तक पहुंचानी होंगी।

गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि मैं आपके साथ खड़ा होने के लिए आया हूँ। यह लड़ाई तो होनी ही थी। थोड़ा जल्दी हो गयी, अच्छा है। यह सर्व सेवा संघ की नहीं, गांधी विचार की जमीन की लड़ाई है। हमें यह भी देखना होगा कि हम अपनी जमीन पर खड़े हैं कि नहीं। असल में यह दो हिंदुस्तान की लड़ाई है। यह लड़ाई बहुत लंबे समय से चल रही है। मनुस्मृति और हिन्द स्वराज के मूल से निकलने वाले यह दो विचारों की लड़ाई है। बनारस में तो बहुत कुछ टूट गया है। आस्था के केंद्र तोड़ दिए गए और बनारस सड़क पर नहीं उतरा। साबरमती आश्रम और गुजरात विद्यापीठ को बचाने के लिए हम सबने सेवाग्राम से साबरमती तक की यात्रा की थी। लेकिन आज बनारस की लड़ाई दिख इसलिए रही है कि यहाँ लोग खड़े हो रहे हैं।

प्रतिरोध सम्मेलन में प्रो आनंद कुमार (संयोजक, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान) , चंदन पाल (अध्यक्ष सर्व सेवा संघ), आशा बोथरा (अध्यक्ष, सेवाग्राम आश्रम) , संदीप पांडे (आशा संस्था), डॉ सुनीलम (संयुक्त किसान मोर्चा), रामधीरज (अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल), अरविंद अंजुम (संयोजक, सर्व सेवा संघ प्रकाशन), सवाई सिंह (समग्र सेवा संघ, राजस्थान), डॉ सुगन बरंठ (पूर्व अध्यक्ष, नयी तालीम) प्रफुल सामंतरा, अंतरराष्ट्रीय ग्रीन अवार्ड विजेता, डॉ सोमनाथ रोडे (संयोजक, सर्वोदय समाज), रमेश ओझा (गांधीवादी चिंतक, मुंबई) रमेश दाणे (अध्यक्ष, महाराष्ट्र सर्वोदय मंडल), शेख हुसैन (प्रबंधक, ट्रस्टी सर्व सेवा संघ), सुदाम पवार (अध्यक्ष), अविनाश काकडे (मुख्य प्रेरक किसान अधिकार अभियान), अशोक शरण (खादी संयोजक), इस्लाम हुसेन (उत्तराखंड सर्वोदय मंडल), फैजल खान (खुदाई खिदमतगार दिल्ली), रश्मीन रठोड (गुजरात सर्वोदय मंडल), मास्टर नंदलाल, दिनेश प्रियमन, संजीव कुमार श्रीवास्तव, गिरिजेश आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।

सम्मेलन का संचालन अरविंद अंजुम और सुशील कुमार ने संयुक्त रूप से किया। धन्यवाद ज्ञापन संजीव कुमार ने किया।

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