ढाई दिन की बादशाहत

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— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

जी हां, हिंदुस्तान के मध्यकालीन इतिहास में एक ऐसा भी बादशाह हुआ है, जिसको ढाई दिन की बादशाहत करने का मौका मिला था। बक्सर के मैदान में हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच घमासान युद्ध हुआ, लड़ाई में अपनी हार देखते हुए हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए युद्ध के मैदान से भागकर गंगा के किनारे पहुंचकर पार जाने की फिराक मैं था। इसी वक्त निजाम भिश्ती अपनी मस्क में पानी भरने के लिए गंगा के किनारे आया। निजाम भिश्ती ने हुमायूं को अपनी मस्क पर लिटाया, वह खुद एक बड़ा तैराक था। उसने हुमायूं को गंगा पार कराकर उसकी जान बचा दी। बादशाह हुमायूं ने उस एहसान के बदले बड़े इनाम देने का वायदा उससे किया। कुछ समय के बाद हुमायूं ने उसको ढूंढ़वाया तथा कहा, जो चाहते हो वह मांगो, मैं तुम्हें दूंगा। निजाम भिश्ती ने कहा हुजूर, मुझे ढाई दिन, सल्तनत पर राज करने का अख्तियार दिया जाए। बादशाह ने कबूल कर लिया।

बादशाहत हाथ में आने के बाद निजाम भिश्ती सबसे पहले सरकारी टकसाल में गया, और उसने हुक्म दिया कि धातु के सिक्कों को बंद कर दिया जाए, नए सिक्के चमड़े के बनाए जाएं। ढाई दिन तक सरकारी टकसाल में चमड़े के सिक्के बनाए गए। इस तरह चौसा का वह निजाम भिश्ती तवारीख में सक्का बक्का के नाम से दर्ज हो गया।

परसों लाल किले के परकोटे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान कर दिया, अगली बार भी मैं ही झंडा फहराऊंगा।

बहुत खूब, माइक आपके हाथ में है, जो चाहो कह सकते हो।

पर इतिहास किसी एक इंसान की चाहत या सनकीपन से अपनी इबारत नहीं लिखता।

आज हमारे प्रधानमंत्री छाती पर हाथ मार कर हिंदुस्तान की संसद में मद में डूबकर कहते हैं, ‘एक अकेला सब पर भारी’। गद्दीनशीन होने के कारण 15 अगस्त के इस मौके पर उन्होंने सबसे बड़ा काम ‘जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम लाइब्रेरी’ का नाम बदलकर ‘प्राइम मिनिस्टर म्यूजियम लाइब्रेरी’ कर दिया।

सही है, मोदी जी आपका नाम भी उसमें जुड़ गया। परंतु आप जंगे आजादी के उस सिपहसालार, जिसने ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जवानी के 9 साल (3259 दिन) जेल के सींखचों के पीछे बिताये थे, पासंग भी नहीं ठहरते। इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास करने वाला, मोतीलाल नेहरू का यह बेटा चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुआ था। परंतु महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर खादी का बाना पहनकर, आनंद भवन को छोड़कर हिंदुस्तान के गांव देहात सुदूर पर्वतों जंगलों में रहने वाले हिंदुस्तानियों के बीच आजादी की जंग में शामिल होने के लिए कभी पैदल, कभी साइकिल, कभी बैलगाड़ी, कभी रेलगाड़ी, कभी घोड़े पर सवार होकर गांव गांव में गया था। उसके त्याग और ज्ञान, ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ जैसी किताब को अहमदनगर फोर्ट जेल में मौलाना अबुल कलाम आजाद, सोशलिस्ट आचार्य नरेंद्र देव की संगत का लाभ उठाकर उन्होंने लिखी थी। ‘ग्लिंपसीस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ उन्होंने जेल में लिखी थी। मोदी जी कहां कहां से आप नेहरू का नाम मिटाओगे? लफ्फाजी, जुमलेबाजी, तकरीर की कलाबाजी से इतिहास को बदला नहीं जा सकता, छोटी रेखा के सामने बड़ी रेखा खींचकर ही वह संभव होता है, रेखा को मिटाकर नहीं।

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