— विवेकानंद माथने —
प्राकृतिक आपदा के कारण खेती में फसलों को हर साल बड़ा नुकसान होता है। ऐसी स्थिति में फसलों के नुकसान के लिए किसानों को मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी है। मुआवजे के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कृषि बजट में हर साल लगभग 20 से 25 हजार करोड़ रुपयों का प्रावधान करती हैं।
सरकार को चाहिए था कि वह टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसी पारदर्शी योजना बनाती जिससे सभी प्रभावित किसानों को सीधा लाभ मिल सकता, लेकिन सरकार ने मुआवजा देने के लिए ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ नाम से एक ऐसी योजना बनाई जिससे किसानों को नहीं, बीमा कंपनियों को लाभ मिल रहा है। जिन कंपनियों का खेती से दूर-दूर तक संबंध नहीं है, ऐसी कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिए बड़ा लाभ पहुंचाया जा रहा है। जो किसानों का हक है, उसे फसल बीमा कंपनियों के हवाले किया जा रहा है।
फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा देने के लिए सात साल में किसानों का 28,847 करोड़ रुपया, केंद्र व राज्य सरकारों का 1 लाख 96 हजार 228 करोड़ रुपया फसल बीमा कंपनियों को सौंपा गया जिसमें से स्वीकृत दावों के अनुसार किसानों को 1 लाख 36 हजार 154 करोड़ रुपये मुआवजा दिया गया। फसल बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिए सात साल में 60 हजार 73 करोड़ रुपये मिले हैं।
इन सालों में 46.92 करोड़ किसान ‘फसल बीमा योजना’ में शामिल हुए थे, जिनमें से केवल 12.98 करोड़ किसानों को मुआवजा मिला है। इसमें करोड़ों किसानों को बहुत कम मुआवजा मिला। 33.94 करोड़ किसानों को कुछ भी नहीं मिला, उलटा इन किसानों को हर साल जमा की गई बीमे के प्रीमियम की रकम का नुकसान उठाना पड़ा है।
‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ की शुरुआत 2016 में हुई थी। वर्ष 2016-17 से 2022-23 के उपलब्ध सरकारी आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि फसल बीमा कंपनियों ने प्रतिवर्ष 8 से 10 हजार करोड़ रुपये के हिसाब से 7 साल में 60 हजार करोड़ रुपये लूटे हैं। महाराष्ट्र से 12,484 करोड़ रुपये, राजस्थान से 10,524 करोड़ रुपये, मध्यप्रदेश से 9,777 करोड़ रुपये और गुजरात से 6,628 करोड़ रुपये लूटे गये हैं।
ऐसा दिखाई देता है कि इस बड़ी लूट के लिए फसल बीमा कंपनियां किसान मतदाताओं को प्रभावित करने के इरादे से चुनाव में सरकार को लाभ पहुंचाने का काम करती हैं।केवल चुनावी सालों में मुआवजा बांटने का काम किया जाता है।
मध्यप्रदेश में वर्ष 2017-18 में 5,894 करोड़ रुपये, वर्ष 2019-20 में 5,812 करोड़ रुपये और वर्ष 2020-21 में 7,791 करोड़ रुपये मुआवजा दिया गया है। जो उस वर्ष में कंपनियों को प्राप्त प्रीमियम से ज्यादा है।
मध्यप्रदेश में नवम्बर 2018 में विधानसभा चुनाव हुए, मई 2019 में लोकसभा के चुनाव हुए और नवम्बर 2020 में 28 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुए हैं, जबकि मध्यप्रदेश में कुल 6 सालों में कंपनियों को 35,506 करोड़ रुपये बीमा प्रीमियम प्राप्त हुआ। इसमें से किसानों को 25,729 करोड़ रुपये मुआवजा दिया गया और कंपनियों ने 9,777 करोड़ रुपये लूटे। इसका अर्थ यह भी है कि दूसरे सालों में मुआवजा नहीं के बराबर मिला।
अब महाराष्ट्र सरकार एक रुपये में फसल बीमा योजना शुरू कर रही है। इसमें भले ही किसानों का लाभ दिखाई देता है, लेकिन यहां किसानों का बीमा प्रीमियम कृषि बजट में कटौती करके ही कंपनियों को दिया जाना है। इसलिए इससे भी किसानों को अंतत: नुकसान ही होगा।
सरकार भले ही दावा करती है कि वह किसानों को लूटने वाले दलालों को हटाना चाहती है, लेकिन यहां सरकार ने खुद कारपोरेट दलाल पैदा किये हैं जो केवल मुआवजा बांटने के लिए हर साल 10 हजार करोड़ रुपये कमाते हैं। इस लूट में भी निजी बीमा कंपनियां अग्रसर हैं।पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल ने पहले ही खुद को योजना से बाहर किया है। अब दावों के कम भुगतान के कारण आंध्रप्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने भी इस योजना को बंद किया है।
सरकार की किसान विरोधी नीतियों के चलते खेती में पहले से ही किसानों का शोषण हो रहा है। फसलों को न्यायपूर्ण दाम देने और लागत खर्च में कंपनियों द्वारा होने वाली लूट रोकने के लिए सरकार ने कोई उपाय नहीं किये, बल्कि किसानों का शोषण करने के लिए उद्योगपतियों और व्यापारियों को लूट की खुली छूट दी गई है। अब प्राकृतिक आपदा में नुकसान भरपाई देने का काम कंपनियों को सौंपकर केंद्र सरकार बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है।
सैद्धांतिक रूप से नुकसान भरपाई देने के लिए बीमा योजना लागू करना गलत है। जिसके कारण कृषि बजट का बड़ा हिस्सा हर साल कंपनियों को मिलता है और किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। मुआवजा बांटने के लिए बीमा कंपनियों को एजेंट बनाने की बजाय कृषि विभाग की मदद से सीधा तरीका अपनाया होता तो देश के किसानों को 60 हजार करोड़ रुपये ज्यादा मिल सकते थे, बशर्ते कृषि विभाग के भ्रष्टाचार को दूर रखा गया होता। (सप्रेस)