गुजरात में 16 हजार हेक्टेयर से ज्यादा वनभूमि गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए दे दी गयी

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— नवनीश कुमार —

21 अगस्त। गुजरात में 16 हजार हेक्टेयर से ज्यादा वनभूमि को ‘गैरवनीय उद्देश्यों’ यानी ‘विकास’ के लिए डायवर्ट कर दिया गया। 7 अगस्त, 2023 को बीजेपी सांसद वरुण गांधी द्वारा लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में पर्यावरण मंत्री, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने ये डेटा दिया कि जिन वनक्षेत्रों पर आदिवासियों ने अपना पहला अधिकार जताया है उनमें से 16,071 हेक्टेयर भूमि को वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत विभिन्न विकास उद्देश्यों के लिए स्थानांतरित किया गया। दूसरी ओर, गुजरात में वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत पट्टों/अधिकारों के लिए 1,82,869 आदिवासी दावों में से 57,054 दावों को प्रशासन द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है।

आठ अगस्त को कांग्रेस सांसद अमी याग्निक ने वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत भूमि पट्टों के लिए आदिवासियों के दावों के बारे में राज्यसभा में सवाल उठाया था। जिस पर सरकार ने अपने जवाब में कहा कि 30 नवंबर, 2022 तक राज्य से कुल 1,82,869 व्यक्तिगत दावे प्राप्त हुए, जबकि उस अवधि तक 57,054 व्यक्तिगत दावे खारिज कर दिए गए। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पार्थिव राज कठवाडिया ने सरकार पर राज्य के 91,183 आदिवासियों को वनभूमि अधिकार से वंचित करने का आरोप लगाया। कठवाडिया ने कहा कि इसका मतलब यह होगा कि जंगल भूमि अधिनियम के तहत लाभ के लिए आवेदन करने वाले 49.8 प्रतिशत आदिवासियों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया।

कठवाडिया ने आरोप लगाया, “भाजपा आदिवासियों के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है लेकिन जब वास्तव में उन्हें उनके अधिकार देने की बात आती है तो भाजपा सरकार पीछे हट जाती है।” दावे अस्वीकृति के कारण बताते हुए सरकार ने राज्यसभा में कहा कि “राज्य सरकारों द्वारा बताए गए दावों को अस्वीकार करने के सामान्य कारणों में 13 दिसंबर, 2005 से पहले वनभूमि पर कब्जा न करना, कई दावे और पर्याप्त दस्तावेजी सबूतों की कमी शामिल है।”

इससे पूर्व बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने लोकसभा में उन परियोजनाओं के बारे में कई प्रश्न पूछे, जिनके लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत राजस्व और वन विभाग से वनभूमि प्राप्त की गई थी। जवाब में पर्यावरण मंत्री, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने पूरे देश के लिए डेटा दिया। जिसके मुताबिक, पिछले 15 वर्षों में कुल 16,070.58 हेक्टेयर भूमि को प्रतिपूरक वनरोपण (सीए) के तहत विभिन्न श्रेणियों के ‘विकास’ के लिए डायवर्ट किया गया है। सरकार ने कहा है कि उपयोग की गई वनभूमि की तुलना में 2008 से 2022-23 तक प्रतिपूरक वनरोपण के तहत 10,832.3 हेक्टेयर भूमि दी गई है। जो दर्शाता है कि सरकार ने पिछले 15 वर्षों में वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत गुजरात में विभिन्न विकास कार्यों के लिए 16,070.58 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया है।

वन अधिकार अधिनियम 2006 और आदिवासी

भारत सरकार के वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधान, आदिवासी समुदायों को अपनी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना हक का अधिकार देते हैं। इस अधिनियम के तहत भारत सरकार ने वनक्षेत्रों में रहने वाले उन आदिवासी समुदाय के किसानों को जंगल की जमीन पर खेती करने का अधिकार दिया जिनकी संस्कृति और आजीविका जंगल पर निर्भर करती है। इस अधिनियम के पारित होने के बाद गुजरात सरकार को इसके कार्यान्वयन के लिए नीतियां और नियम बनाने के अधिकार दिए गए थे। गुजरात सरकार ने ये नीतियां साल 2007 में बनाईं।

इस कानून के मुताबिक, देश भर में 13 दिसंबर, 2005 से पहले जमीन को जोतने वाला आदिवासी समुदाय राजस्व पावती जैसे किसी भी प्रमाण के आधार पर उस जमीन के मालिकाना हक के लिए अर्जी दे सकता है और सरकार को उस जमीन का अधिकार आदिवासी समुदाय को हस्तांतरित करना होगा। हालांकि जमीन हस्तांतरण के इस प्रावधान में अक्सर कई गड़बड़ियां पाई जाती हैं जिसके चलते गुजरात का आदिवासी समुदाय और सरकार सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

पांच वर्षों में 90,001.5 हेक्टेयर वनभूमि के डायवर्जन को मंजूरी 

भारतीय वन सर्वेक्षण की ‘स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021’ के अनुसार, देश का वनक्षेत्र 71.37 मिलियन हेक्टेयर है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया है कि जनवरी 2018 और अप्रैल 2023 के बीच विकास परियोजनाओं के लिए लगभग 90,000 हेक्टेयर वनभूमि के डायवर्जन को मंजूरी दी गई थी। सबसे अधिक मध्यप्रदेश में 19730.36 हेक्टेयर, इसके बाद ओड़िशा 13304 हेक्टेयर, अरुणाचल प्रदेश 7448.34 हेक्टेयर और गुजरात 8064.76 हेक्टेयर, यहां तक ​​कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और मणिपुर जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में भी 100 हेक्टेयर और 603.75 हेक्टेयर का डायवर्जन दर्ज किया गया। भारत के कुल वनक्षेत्र की तुलना में पांच वर्षों में परिवर्तित क्षेत्र का अनुपात बहुत कम लग सकता है, इसका मुख्य कारण भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा उपयोग की जाने वाली वनों की अस्पष्ट परिभाषा है।

अप्रैल में राज्यसभा में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के जवाब का हवाला देते हुए एचटी ने 7 अप्रैल को रिपोर्ट दी कि मुंबई उपनगरीय जिले के दोगुने आकार के वनक्षेत्र को पिछले पांच वर्षों में विभिन्न बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए डायवर्ट किया गया था। अप्रैल में, मंत्रालय ने कहा, पिछले पांच वर्षों में 88,903.80 हेक्टेयर (889.03 वर्ग किमी) वन क्षेत्र को ज्यादातर सड़क परियोजनाओं (194.24 वर्ग किमी) और उसके बाद खनन (188.47 वर्ग किमी) के लिए डायवर्ट किया गया था। वह संख्या अब बढ़कर 90,001.15 हेक्टेयर हो गई है।

15 वर्षों में भारत में 3 लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि को गैर-वानिकी उपयोग के लिए किया गया डायवर्ट 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने लोकसभा को बताया कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत पिछले 15 वर्षों में भारत में तीन लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि को गैर-वानिकी उपयोग के लिए डायवर्ट किया गया है। सदन में प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब में 61,318 हेक्टेयर वनभूमि, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक है, 2008-09 के बाद से गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए उपयोग की गई है। वर्तमान में पंजाब में कुल वनक्षेत्र 1,84,700 हेक्टेयर है।

मध्य प्रदेश में 40,627 हेक्टेयर वनभूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए स्थानांतरित किया गया, इसके बाद ओड़िशा में 28,320 हेक्टेयर, तेलंगाना में 19,419 हेक्टेयर और गुजरात में 16,070 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया गया। झारखंड (15,691 हेक्टेयर), छत्तीसगढ़ (15,082 हेक्टेयर), उत्तराखंड (14,141 हेक्टेयर), महाराष्ट्र (13,297 हेक्टेयर), राजस्थान (12,877 हेक्टेयर), अरुणाचल प्रदेश (12,778 हेक्टेयर) और आंध्र प्रदेश (11,093 हेक्टेयर) में भी महत्वपूर्ण वनक्षेत्र का विचलन देखा गया।

आंकड़ों से पता चला कि डायवर्जन के प्रमुख उद्देश्यों में खनन (58,282 हेक्टेयर), सड़क निर्माण (45,326 हेक्टेयर), सिंचाई (36,620 हेक्टेयर), ट्रांसमिशन लाइनें (26,124 हेक्टेयर), रक्षा (24,337 हेक्टेयर), जल विद्युत परियोजनाएं (13,136 हेक्टेयर), रेलवे (9,307 हेक्टेयर), थर्मल पावर (4,101 हेक्टेयर) और पवन ऊर्जा बुनियादी ढांचा (2,181 हेक्टेयर) शामिल हैं।

मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि इस अवधि के दौरान 514 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण किया गया। सरकार ने 2022-23 में 17,381 हेक्टेयर, 2021-22 में 16,785 हेक्टेयर, 2020-21 में 18,314 हेक्टेयर, 2019-20 में 17,392 हेक्टेयर, 2018-19 में 19,359 हेक्टेयर और 2017-18 में 19,592 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन को मंजूरी दी। आंकड़ों से पता चलता है कि 2016-17 में 7,467 हेक्टेयर वन भूमि, 2015-16 में 15,241 हेक्टेयर, 2014-15 में 13,045 हेक्टेयर, 2013-14 में 20,045 हेक्टेयर, 2012-13 में 13,978 हेक्टेयर, 2011-12 में 14,841 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग किया गया। 2010-11 में 23,117 हेक्टेयर, 2009-10 में 76,743 हेक्टेयर – पिछले 15 वर्षों में अधिकतम – और 2008-09 में 12,701 हेक्टेयर।

भारत का कुल वनक्षेत्र 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71 प्रतिशत है। वन (संरक्षण) अधिनियम (एफसीए) 1980, भारत में वनों और जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसमें किसी भी परियोजना या गतिविधि के लिए केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है जिसमें वनभूमि को साफ करना शामिल है। यह अधिनियम वन संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करके विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है।

(सबरंग हिंदी से साभार)

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