— रामधीरज —
29 अगस्त। वाराणसी में हुई G-20 समूह की बैठक में सभी सदस्य देशों ने मिलकर अपनी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को बचाने, ऐतिहासिक चिह्नों की सुरक्षा करने, जीवित धरोहरों की रक्षा करने का संकल्प व्यक्त किया है और इसके लिए एक समिति बनाने पर सहमत हुए हैं। काशी कल्चर पाथवे नाम से 300 पेज का दस्तावेज भी तैयार किया गया है। यह खुशी की बात है।
सरकार एक तरफ तो विरासत को बचाने का संकल्प ले रही है, ड्राफ्ट बना रही है लेकिन दूसरी तरफ जो काशी की जीवंत विरासत थी, जो विनोबा और जयप्रकाश जी ने बनाया था, जो आज भी बनारस के लोगों और दुनिया के लोगों के दिलो-दिमाग में जीवित है, उस धरोहर को सरकार ने बुलडोज कर दिया।
जिस सर्वोदय साधना केंद्र को विनोबा भावे ने भारत के नव निर्माण एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के नैतिक व आध्यात्मिक विकास के लिए बनाया था, जयप्रकाश नारायण ने भारत के ऑक्सफोर्ड के रूप में गांधी विद्या संस्थान को विकसित किया। जहां नोबेल पुरस्कार प्राप्त ई एफ शुमाखर और 1942 क्रांति के नायक अच्युत पटवर्धन रहे, जिस जगह पर भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री, चंद्रशेखर जी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, नेपाल के प्रधानमंत्री बीपी कोइराला, समाजवादी नेता रेलमंत्री जॉर्ज फर्नांडीज, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव आदि न जाने कितनी बार यहां आए और रहे।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शंकरराव देव, दादा धर्माधिकारी, धीरेंद्र मजुमदार, सिद्धराज ढड्ढा, ठाकुरदास बंग, मनमोहन चौधरी, कृष्णराज मेहता, राधाकृष्ण बजाज, रवींद्र उपाध्याय, भगवान काका, तेज सिंह भाई, पंचदेव तिवारी, गांधीजी के सचिव महादेव भाई देसाई के बेटे नारायण देसाई जिस मकान में रहते थे, उन सबको विरासत बचाने की बात करने वाली सरकार ने ढहा दिया।
महान संत बाबा राघव दास, साध्वी विमला ठकार, स्वामी कृष्णानंद, बिजना रियासत के लोकेंद्र भाई, प्रथम ग्रामदानी गांव के नायक दीवान शत्रुघ्न सिंह, चुन्नी भाई वैद्य, कृष्ण कुमार खन्ना, सांसद निर्मला देशपांडे जैसे दुनिया के जाने-माने संत समाजसेवी यहां आकर रहे थे, साधना की थी, उन ऐतिहासिक भवनों, धरोहरों को भी गिरा दिया गया।
जिस सभा भवन में विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, लालबहादुर शास्त्री, आचार्य कृपलानी, डॉ संपूर्णानंद ने लोगों को संबोधित किया था। प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी, पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, दुनिया में एकता का संदेश देने वाले एस एन सुब्बाराव, शांति-सद्भाव-नैतिक राजनीति के लिए सतत प्रयास करने वाले राजमोहन गांधी व तुषार गांधी, पानी के लिए काम करने वाले जलपुरुष राजेंद्र सिंह एवं अनुपम मिश्र, जापान का प्रसिद्ध शांति पुरस्कार पानेवाले पीवी राजगोपाल, चर्चित वकील प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार पाने वाले संदीप पांडे, समाजसेवी अन्ना हजारे, चर्चित गीतकार कुमार विश्वास, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राज्यसभा सांसद संजय सिंह, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, समाजवादी नेता रघु ठाकुर, प्रोफेसर आनंद कुमार, किसान नेता योगेंद्र यादव, डा सुनीलम, राज्यसभा के सभापति भाई हरिवंश नारायण, पत्रकार श्रवण कुमार गर्ग, रामदत्त त्रिपाठी आदि सैकड़ों हजारों की संख्या में सांसद, विधायक और पत्रकार यहां से सीख कर, प्रशिक्षित होकर दुनिया में गांधी विचार का प्रचार-प्रसार करते रहे हैं।
एक ऐसा केंद्र जहां से सैकड़ों नहीं, हजारों की संख्या में कार्यकर्ता तैयार हुए बल्कि शीर्ष के नेता तैयार हुए। ऐसी ऐतिहासिक जगह को सरकार ने धराशायी कर दिया।
यह कोई आतंकवादी केंद्र नहीं था, यहां से कोई तस्करी का माल भी नहीं पकड़ा गया था, यहां से कोई दंगे की योजना भी नहीं बनाई जाती थी, मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि आखिर गिराया क्यों?
कोई सांसद नहीं बोल रहा है, कोई पत्रकार भी नहीं लिख रहा है, देश के सभी बड़े नेता गूंगे हो गए हैं और केंद्र में बैठी हुई सरकार विरासत को गिरा करके विरासत बचाने की बात कर रही है।
अगर लिख सकें तो इतिहासकार लिखें। इमारत तो गिर गई लेकिन इतिहास बचा है। यहां का इतिहास लोगों के दिलो-दिमाग में है। आज भी अभी हजारों लोग जीवित हैं, जो यहां के इतिहास के गवाह हैं। उनसे पूछ कर, उनसे मिल करके देखिए, क्या था यहां का इतिहास?
श्रवण गर्ग, कुमार प्रशांत, रमेश ओझा, हेमंत शाह, चिन्मय मिश्र, हरिवंश नारायण, रामदत्त त्रिपाठी, के विक्रम राव, अशोक अवस्थी, कमालुद्दीन शेख, डीएम दिवाकर, सतीश राय, रामप्रकाश द्विवेदी, फादर आनंद, प्रो आनंद कुमार, विजय नारायण, आशा पटेल, मोहन प्रकाश आदि सैकड़ों लोग हैं, लिखें, बोले।
देश का दुर्भाग्य है, इतिहास बनाने वाले मौन हैं, मिटाने वाले मुखर हैं। कल मिटाने वालों का इतिहास होगा, बनाने वाले इतिहास में दफन हो जाएंगे।
देश के एक शानदार इतिहास को मिटाकर सरकार धरोहर बचाने की बात कर रही है ।
प्रधानमंत्री जी आपने 300 पेज का दस्तावेज तैयार किया है। अगर केवल सर्व सेवा संघ के इतिहास को भी आप लिखवाने की कोशिश करेंगे अपने इतिहासकारों से तो 3000 से ज्यादा पेज बन जाएंगे।
मैं उन सभी सांसदों, विधायकों, पत्रकारों, मंत्रियों से निवेदन करना चाहता हूं कि भले यहां की इमारतें गिरा दी गई हैं लेकिन इतिहास बचा है, बचा लीजिए। सवार लीजिए।
आजाद भारत में शायद ही कोई ऐसी जगह होगी, जिसका इतना जीवंत इतिहास होगा। गलती हो गई तो गलती को सुधारा जा सकता है।
अभी भी सरकार इस जगह से अपने कदम वापस करे और देश-दुनिया के गांधीवादी मिलकर इस जगह को बना लेंगे। फिर से इतिहास जीवंत बन जाएगा।
इसलिए जो लोग यहां आकर के रहे हैं, सीखे हैं। यहां का अन्न, जल ग्रहण किया है, उन सब साथियों से निवेदन है, आप पत्रकार हैं, सत्ता या विपक्ष की बड़ी कुर्सियों पर बैठे हुए हैं, अगर आप चाहें तो आज भी इतिहास को बचा सकते हैं क्योंकि जब कल यहां कोई मॉल या सितारा होटल खड़ा हो जाएगा, जिसके लिए यह सरकार आमादा है, तो हमेशा हमेशा के लिए यह इतिहास समाप्त हो जाएगा।
अभी बचा है, बचा लीजिए। इतिहास आपका आभारी रहेगा।
G-20 के देशों से भी अपील करता हूं कि भारत में अहिंसा का, शांति का, सर्वोदय का इतिहास यहां मौजूद है, इसको बचा लीजिए। यह केवल भारत के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर है। जहां महापुरुषों ने बैठकर इतिहास लिखा भी है और गढ़ा भी है।