मुझे मेरे शिक्षकों ने गढ़ा है

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— रवीश कुमार —

शिक्षक मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं। अच्छे शिक्षक तो और भी ज्यादा। इसकी वजह यह रही कि मुझे अच्छे शिक्षकों का साथ मिला है। ऐसा नहीं है कि बुरे शिक्षक जीवन में नहीं आए मगर अच्छे शिक्षक ही याद रह गए और साथ रह गए। उनका ही असर रहा कि बहुत-से हमउम्र दोस्त शिक्षक बने तो उनके काम के प्रति वैसा ही सम्मान रहा। छात्र जीवन में कई शिक्षक दोस्त बने और अब कई सारे दोस्त शिक्षक हैं। किस्मत अच्छी रही कि शिक्षण से जुड़े ज्यादातर दोस्त अपना काम लगन से करते हैं। मैं शिक्षकों के बीच कभी स्कूल और कॉलेज के आधार पर फर्क नहीं करता और न करना चाहिए। शिक्षकों का मुझ पर इतना असर हुआ कि दुनिया में कहीं भी रिसर्च करने या पढ़ाने वाले से टकराता हूँ उनसे अलग सा भावनात्मक संबंध बन जाता है। उन्हें सम्मान देते हुए लगता है कि मैं अपने शिक्षकों का सम्मान कर रहा हूँ।

मुझे मेरे शिक्षकों ने गढ़ा है। उन्हें नहीं लगता होगा पर मुझे यही लगता है। 27 साल पत्रकारिता में रहते हुए पत्रकारों से जितनी दोस्ती नहीं की, उससे कई गुना शिक्षकों से दोस्ती हुई। मुझे पता ही नहीं चलता कि कब किसी शिक्षक की तरफ मुड़ गया या साथ बैठा देखकर उनकी तरफ झुक गया। अच्छे शिक्षकों का अपने विषय को गहराई से जानना, हमेशा हैरान करता है और उनती ही विनम्रता से साझा करना ज्ञान के प्रति आदर का भाव पैदा करता है। मेरे शिक्षक विश्वस्तरीय रहे मगर किसी में कभी अहंकार नहीं दिखा। उन्होंने कभी अपने ज्ञान से मुझे नहीं डराया और न मेरे सहपाठियों को। उनकी सबसे बड़ी खूबी थी कि वे कमजोर छात्रों से ज्यादा विनम्रता से बातें करते थे। इस बात का मजाक नहीं उड़ाया कि उन्हें पता है और छात्र को कुछ भी नहीं। मैंने कभी अपने शिक्षकों को अपनी महंगी और दुर्लभ किताबों, शानदार लाइब्रेरी और बड़े जर्नल में छपे लेखों से डराते नहीं देखा है। उन्होंने कभी अपने लिखे हुए पर या पढ़ाए हुए पर श्रेष्ठता का दावा नहीं किया।

इसी वजह से मैं अपने शिक्षकों के बीच सबसे सुरक्षित महसूस करता हूँ। अपने शिक्षकों का मतलब उन्हीं से नहीं जिन्होंने पढ़ाया है, उनसे भी है जिन्होंने नहीं पढ़ाया है मगर उनके पढ़ाने की शैली और ज्ञान मुझे उन तक खींच ले गया। जिनसे आज भी मैं सीखता हूँ। मुझे मेरे शिक्षकों ने केवल पढ़ाया ही नहीं, प्यार भी दिया है। मैं हर दिन उन्हें याद करता हूँ, उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। उनके संपर्क में रहता हूँ। जब नौकरी से इस्तीफा दिया तो मेरे कई शिक्षकों ने अकाउंट नंबर मांगे कि वे अपनी पेंशन से मदद करना चाहते हैं। मेरा जीवन धन्य हो गया। उन्हें मना करने में पसीने छूट गए मगर उनके आग्रह ने दिल भर दिया। मुझे अपने शिक्षकों पर बहुत गर्व हैं। मैं हमेशा इस याद के साथ अच्छी नींद सोता हूँ कि मेरे शिक्षक मेरी फिक्र कर रहे हैं। मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। इसलिए मैं कहीं भी होता हूँ, कोशिश करता हूँ कि मेरे शिक्षक आसपास रहें। वो कुशल रहें और स्वस्थ रहें।

मैं हमेशा यही दुआ करता हूँ कि भारत के छात्रों को खासकर गरीब इलाकों के छात्रों को वैसे शिक्षक मिलें, जैसे मुझे मिले। जो छात्रों के बीच शायद ही कभी शिक्षक नजर आते थे। मैं आज भी अपने संपर्क के हमउम्र शिक्षकों से हिंदी की वर्तनी से लेकर शब्दों के अर्थ पूछता हूँ। बकायदा फोन करता हूँ और कारण पूछता हूँ। इतिहास के शिक्षकों से पूछना आज तक बंद नहीं किया और उन्होंने भी बताना अभी तक नहीं छोड़ा है। मैंने उनसे यह भी सीखा है कि शिक्षक से पूछते रहना चाहिए। यह पूछना बहुत जरूरी है। खुद के छात्र होने के लिए और किसी के शिक्षक होने के लिए। जानने का पहला मतलब यह नहीं होता कि आप सब जानते हैं। जानने का मतलब यह होता है कि आपको पता है कि आप क्या नहीं जानते हैं। बिना इसके आप किसी से पूछ नहीं सकते, आप छात्र नहीं हो सकते। तो पहला काम है पूछना और वो भी हमेशा अपने शिक्षक से। मैं अपने शिक्षकों और दोस्त शिक्षकों के अलावा उनके जैसे तमाम शिक्षकों को सम्मान और प्यार भेज रहा हूँ। आपका किया हुआ बहुत सार्थक होता है। नमस्कार।

प्रस्तुति : रणधीर कुमार गौतम

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