— रणधीर कुमार गौतम और कौशल किशोर —
पश्चिम द्वारा भारतीय सभ्यता और संस्कृति की आलोचनाओं पर जवाब देने वाले दार्शनिक और शिक्षाविद भारत रत्न सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के पहले उप राष्ट्रपति थे। डा. राजेन्द्र प्रसाद के बाद 1962 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर छात्रों ने जन्मदिन का उत्सव मनाने का आग्रह किया। उन्होंने शिक्षक दिवस के तौर पर मार्गदर्शकों के सम्मान का सुझाव दिया था। आज के दिन शिक्षक दिवस मनाने की रवायत इसी वजह से कायम होती है। पं. मदन मोहन मालवीय के बाद वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप कुलपति हुए थे। उन्हें इंग्लैंड और अमरीका में भी पढ़ाने का अवसर मिला। उनकी सीख पर अमल करने वाले देश शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हैं।
गोखले मेमोरियल स्कूल (कोलकाता) में शिक्षिका का कार्य शुरू करने वाली भारत रत्न अरुणा आसफ अली भारत छोड़ो आंदोलन में खूब सक्रिय रहीं। स्वतंत्रता के बाद दिल्ली की पहली मेयर के रूप में जनता का प्रतिनिधित्व कर भी बराबर चर्चित हुईं। शिक्षकों की सावित्रीबाई फुले और फातिमा बेगम शेख से शुरू हुई परंपरा की प्रवक्ता भारत कोकिला सरोजिनी नायडू हैं। नोआखली में दंगों के शिकार अल्पसंख्यक हिंदुओं की सेवा में अग्रणी ज्योतिर्मयी देवी की पुत्री अशोका गुप्ता की मदद करने पहुंचे गांधीजी के साथ सुचेता कृपलानी और मालती चौधरी जैसी शिक्षक खड़ी हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संविधान व इतिहास जैसी विषयों की प्रख्याता रहीं सुचेता कृपलानी संविधान सभा की सदस्य हुईं। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री पद को भी सुशोभित किया। ओड़िशा में गोपबंधु दास, नवकृष्ण चौधरी और मालती चौधरी जैसे लोक शिक्षकों के बिना यह सूची अधूरी है।
पश्चिमी छोर पर गोखले, गांधी और बिनोवा भावे ही नहीं, बाल गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर जैसे शिक्षक भी मौजूद हैं। गुजरात में अरविंद घोष और उनके शिष्य केएम मुंशी कमाल के हैं। भीमराव आम्बेडकर और गुरु गोलवलकर जैसे लोक शिक्षक आजादी के बाद भी राष्ट्र के निर्माण में सक्रियता के लिए जाने जाते हैं। लाहौर (पाकिस्तान) में लाला लाजपत राय और डीएवी काॅलेज ने मिसाल कायम की। लोक शिक्षण व सेवा के लिए सौ साल पहले राजनीति का तिलक स्कूल व लोक सेवक मंडल जैसा केंद्र उन्होंने ही स्थापित किया था। आधुनिक भारत में गुरु शिष्य परंपरा के ये स्मारक महर्षि दयानंद सरस्वती के आर्य समाज और गुरुकुल की सीमा का विस्तार पक्ष है। तिलक स्कूल की कक्षा में लाला फिरोज चंद, पुरुषोत्तम दास टंडन, बलवंतराय मेहता और लालबहादुर शास्त्री जैसी विभूतियां मौजूद हैं।
स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक दौर में अनेक स्थानों पर अंग्रेजों का विरोध करने वाले स्थानीय समूह मिलते हैं। झारखंड में आदिवासी व पंजाब में कूका विद्रोह जैसी घटनाओं की तरह प्रतिकार के प्रयासों की देश में कमी नहीं है। संस्कृत विद्यालयों के शिक्षकों और विद्यार्थियों की आंदोलन में सक्रियता भी सराहनीय है। बंकिम चंद्र चटर्जी का आनंदमठ और स्वामी श्रद्धानंद का गुरुकुल शिक्षण से जुड़े निर्गुण और सगुण पीठ हैं। इस संग्राम के अंतिम चरण में क्रांतिकारियों के बम बंदूक के अतिरिक्त गांधीवादी अहिंसक सत्याग्रह भी खूब व्यापक स्तर पर प्रचलित हुआ था। इन सभी जगह शिक्षकों और गुरुओं का योगदान बराबर देखने को मिलता है। आजादी के बाद भी राष्ट्र निर्माण के कार्य में शिक्षकों ने अहम भूमिका निभाई है। यह परंपरा कायम रहे, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बराबर कोशिश करने की जरूरत है।
काशी और प्रयाग जैसे ठेठ हिन्दी क्षेत्र में मुशी प्रेमचंद और अमरनाथ झा जैसै शिक्षाविद हैं, तो उसी दौर में फिराक गोरखपुरी जैसे व्यक्तित्व भी उभरते हैं। असहयोग आंदोलन से स्वतंत्रता संग्राम में उतरने वाले आचार्य कृपलानी भी शिक्षण क्षेत्र से ही यात्रा शुरू करते हैं। वह मुजफ्फरपुर कालेज में पांच साल तक अंग्रेजी और इतिहास पढ़ाते रहे। आजादी और शिक्षण के सम्बन्ध को सैय्यद अहमद खान, डा जाकिर हुसैन और मास्टर राधामोहन गोकुल जैसै आचार्यों ने अपने-अपने अंदाज में परिभाषित किया। इधर चंद्रशेखर आजाद और भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के मास्टर धन एवं हथियार भी उपलब्ध कराते रहे। अंग्रेज डाकू और वैश्य कुलभूषण लाजपति जैसी किताबें लिखने वाले गोकुल फिरंगियों का खजाना लूटने में समय बर्बाद करने के बदले देश की आजादी के लिए आक्रामक रणनीति पर काम करने की पैरवी करते हैं।
बंगाल में राष्ट्रवाद के प्रवक्ता बिपिन चंद्र पाल जिस काॅलेज में विद्यार्थी रहे वहीं शिक्षक भी हुए। श्यामाप्रसाद मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय में उप कुलपति रहे। पूर्वी बंगाल में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय सूर्य सेन को मास्टर दा ही कहते हैं। क्रांतिकारी कार्यों को अंजाम देने हेतु चटगांव में 12 जनवरी 1934 को फांसी पर झूलने वाले महानायक की पहचान शिक्षकों के आदर्श के तौर पर है। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे ‘भद्र लोक’ का शिक्षा एवं स्वराज में अहम योगदान है।
कोलकाता में कभी तेलुगु भाषी डा. राधाकृष्णन भी पढ़ाने के लिए गए थे। नियोगी ब्राह्मणों के इस कुलभूषण का विचार रहा कि देश में सर्वोत्तम दिमाग वाले लोगों को शिक्षक होना चाहिए। आज की जटिल समस्याओं को हल करने हेतु पहली शर्त इसे जमीन पर उतारने की है। “शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।”
देश के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न महान शिक्षाविद डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उनकी जयंती पर शत-शत नमन।