आलोचना से क्यों डरती है सरकार

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— गोपाल राठी —

ई “भगत लोग” मुझसे पूछते है कि आप हमेशा मोदी और भाजपा की आलोचना वाली पोस्ट क्यों डालते हो? कभी राहुल गांधी या कांग्रेस की आलोचना क्यों नहीं करते? आपकी पोस्ट एकतरफा होती हैं। निष्पक्ष नहीं होतीं।

मेरा उन सब बन्धु-बांधवों से विनम्र अनुरोध है कि आलोचना सिर्फ उसकी हो सकती है जिसके हाथ में जनता का अच्छा या बुरा करने का अधिकार हो। कानून बनाने का या रद्द करने का अधिकार हो। महंगाई को नियंत्रित करने और भ्रष्टाचार को रोकने का कानूनी अधिकार हो। देश की स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था संचालित करने व नीति बनाने का अधिकार हो, देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाये रखने व संविधान के प्रावधानों को लागू करने का दायित्व हो। अब यह बताने की कृपा करें कि पिछले नौ सालों से राहुल गांधी या उनकी पार्टी के पास ऐसा कौन सा दायित्व या अधिकार है कि उनकी आलोचना की जाए।

हर नागरिक के खाते में 15 लाख जमा करने और अच्छे दिन आने की बात राहुल ने नहीं मोदी ने की थी। हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार देने का वायदा राहुल ने नहीं मोदी ने किया था। विदेशों में जमा काला धन 100 दिन में वापिस लाने और महंगाई कम करने का वायदा खुले मंच पर मोदी ने किया था राहुल ने नहीं। चीन को लाल लाल आंखें दिखाने और पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने का भरोसा राहुल ने नहीं मोदी ने दिलाया था। टैक्स के सरलीकरण और इंस्पेक्टर राज के खात्मे की बात भाजपा हमेशा कहती रही है। गैस डीजल, पेट्रोल के दामों को लेकर भाजपा हमेशा मुखर रही है।

आप ही बताइए 400 रुपये का गैस सिलेंडर 1100 रुपये होने के लिए क्या राहुल की निंदा की जाए? 70 रुपये का पेट्रोल 120 होने के लिए क्या नेहरू जी को कठघरे में खड़ा करें? भारतीय सीमा में चीन द्वारा गांव बसाने या चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश को चीन के नक्शे में दिखाने के लिए क्या इंदिरा गांधी को दोषी माना जाए?

मान्यवर सरकार में जो होता है आलोचना उसी की होती है, विपक्ष की नहीं। भाजपा के जिन लोगों ने हमें कांग्रेस राज में आंदोलन और विरोध प्रदर्शन करते हुए देखा हो उन्हें अच्छी तरह याद होगा कि हम उस समय कांग्रेस का ही विरोध करते थे भाजपा का नहीं। निशाना सत्ता और उसकी नीतियां और नीयत होती है, विपक्ष कैसे हो सकता है?

जब हम सत्ताधारी कांग्रेस का विरोध करते थे तब कांग्रेसी हमें भाजपा का एजेंट कहते थे और जब आज सत्ताधारी भाजपा हमारे निशाने पर है तो कमअक्ल संघी हमें कांग्रेस का पक्षधर या एजेंट कहते हैं। जो सत्ता में होता है उसे लगता है सब उसके गुण गाएं, उसे आलोचना और आलोचकों से बड़ी दिक्कत होती है। जबकि आलोचना सत्ता को राह दिखाने और उस पर अंकुश लगाने के लिए अत्यंत जरूरी है। यह सब लोकतांत्रिक प्रणाली में ही सम्भव है। जो आलोचना से विचलित होकर अनाप-शनाप प्रलाप करते हैं वे लोकतंत्र के विरोधी हैं।

कांग्रेस में कौन अध्यक्ष बने या न बने इसकी चिंता कांग्रेसियों से ज्यादा भाजपाइयों को रहती है। किसी पार्टी में अध्यक्ष कैसे चुना जाता है या मनोनीत होता है यह उस पार्टी का अंदरूनी मामला है जिसमें हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है। भाजपा में नड्डा अध्यक्ष बनें या खड्डा, कांग्रेस में अध्यक्ष अमर अकबर बनें या एंथोनी, इससे जनता का न भला हो रहा है न बुरा। यह उस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता जानें कि उनकी पार्टी में नेतृत्व करने के लिए कौन उपयुक्त है?

आपकी निगाह में राहुल गांधी भले ही पप्पू हों लेकिन संघी सबसे ज्यादा राहुल गांधी से ही डरते हैं। राहुल के एक बयान से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में हलचल मच जाती है। राहुल गांधी के बयान का जवाब देने के लिए एक दर्जन मंत्री, दो दर्जन सांसद, हर राज्य के दो दर्जन विधायक, सारे मुख्यमंत्री, राज्यों के मंत्री, सारे केंद्रीय और राज्य के महासचिव प्रवक्ता, आईटी सेल, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी, गोदी मीडिया मैदान में उतर जाते हैं। राहुल द्वारा संसद और संसद के बाहर उठाये जा रहे सवालों को कोई ठोस जवाब सरकार और भाजपा के पास नही हैं। इसलिए उन्हें निरन्तर ट्रोल किया जाता है, उन्हें पप्पू बताया जाता है। बोलते बोलते अगर गलती से किलो को लीटर बोल दिया तो उसी को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया जाता है। संसद में उनका माइक बन्द कर दिया जाता है, उन्हें लोकसभा से दूर रखने के लिए कानूनी जाल बिछाया जाता है।

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी अब तक देश या विदेश में एक भी पत्रकार वार्ता का सामना करने का साहस नहीं जुटा पाए हैं जबकि राहुल समय-समय पर पत्रकारों से रूबरू होते रहते हैं और बिना घबराए पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हैं। गप्पू मंच पर तो शेर की तरह दहाड़ता है लेकिन पत्रकार वार्ता का नाम सुनकर पप्पू बन जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि जो गप्पू है वही असली पप्पू है। जब आपके पास ही पप्पू है तो बाहर खोजने की क्या जरूरत है?

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