— डॉ सुनीलम —
समाजवादी चिंतक एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मधु दंडवते जी का जन्म शताब्दी वर्ष दिल्ली स्थित नए महाराष्ट्र सदन में विभिन्न पार्टियों के नेताओं कीमत उपस्थिति में शुरू हो चुका है। मुंबई में समाजवादियों द्वारा भी इस अवसर पर गरिमामय कार्यक्रम आयोजित किया गया। मधु दंडवते जी के जन्म शताब्दी समारोह मनाने के लिए अरुण श्रीवास्तव की अध्यक्षता में ‘मधु दंडवते जन्म शताब्दी समारोह समिति’ का गठन किया गया है।
समारोह समिति के माध्यम से देश भर में 50 से अधिक कार्यक्रम आयोजित करने की रूपरेखा बनाई गई है। जिसमें से 30 से अधिक कार्यक्रम हो चुके हैं। हाल ही में इंदौर, रायपुर और रीवा में कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह अद्भुत संयोग है कि मधु दंडवते जी का जन्म 1924 में उस दिन हुआ जिस दिन रूस के क्रांतिकारी नेता लेनिन का देहांत हुआ था, यानी 21 जनवरी को। मधु जी के पिता रामचंद्र दंडवते अपने पिता बलवंत हिवरगांवकर की तरह मराठी साहित्य के साथ जुड़े व्यक्ति थे। मधु जी की मां का देहांत उस समय हो गया जब वे 2 वर्ष के थे। सौतेली मां सिंधुताई ने पाला-पोसा, जो बाल न्यायालय में मजिस्ट्रेट थी।
मधु जी बचपन से ही पोंगापंथ एवं रूढ़िवादिता के खिलाफ थे। एक बार जब स्कूल में उनसे पूछा गया कि रामायण और महाभारत में उन्हें कौन से पात्र पसंद हैं, तब उन्होंने राम और द्रोणाचार्य की जगह सीता और एकलव्य का नाम लिया, जिसके चलते उनकी तगड़ी पिटाई हुई। मधु जी बचपन से ही अंधविश्वास के खिलाफ थे। उनके साथ पढ़ने वाले बच्चे भूत-प्रेत की बात किया करते थे तथा कहते थे कि श्मशान में भूत रहते हैं। मधु जी ने 12 वर्ष की उम्र में रात भर श्मशान में बिताकर अपने दोस्तों को यह बतला दिया कि भूत-प्रेत जैसा कुछ होता नहीं है।
मधु जी ने 26 जनवरी 1937 को 13 वर्ष की उम्र में अहमदनगर के अपने स्कूल में तिरंगा फहराकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। 1942 में भूमिगत गतिविधियों में शामिल रहे, जिनमें अहमदनगर मजिस्ट्रेट कोर्ट को क्रांतिकारियों द्वारा जला दिया गया था। 18 फरवरी 1946 में जब रॉयल इंडियन नेवी ने विद्रोह किया था तब विद्रोह के समर्थन में उन्होंने मुंबई में प्रदर्शन किया, प्रदर्शनकारियों पर गोलीचालन किया गया। गोली चालन में मधु जी तो बच गए लेकिन बगल में खड़ा उनका साथी शहीद हो गया।
मधु जी जब 1940 में मुंबई पढ़ने के लिए आए थे तभी वे जयप्रकाश नारायण और उनके साथियों के हजारीबाग जेल से निकल भागने की घटना से प्रभावित होकर समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए। हालांकि भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने डॉ बी आर आंबेडकर द्वारा शुरू किए गए सिद्धार्थ कॉलेज में 25 वर्ष तक नौकरी की। नौकरी के दौरान ही गोवा मुक्ति आंदोलन से जुड़ गए तथा इस आंदोलन की मदद के लिए बनी कमेटी की मुंबई शाखा के सचिव बने। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी द्वारा यह तय किया गया कि मधु दंडवते के नेतृत्व में मुंबई के 1200 कार्यकर्ता गोवा जाएंगे। 13 अगस्त 1955 को मुंबई से गोवा जाने के लिए जब वे निकले तब उन्हें सिद्धार्थ कॉलेज के सैकड़ों छात्र-छात्राएं छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे। गोवा में सत्याग्रह करने के लिए जब पहला जत्था पहुंचा तब पुर्तगाली सैनिकों द्वारा गोलीचालन कर सभी सत्याग्रहियों को मौत के घाट उतार दिया गया। ऐसी स्थिति में दूसरे जत्थे में मधु दंडवते ना जाएं इसके प्रयास शुरू हो गए। साथियों ने मधु जी को समझाने के लिए राष्ट्र सेवा दल में सक्रिय प्रमिला दंडवते जी से संपर्क किया लेकिन पत्नी प्रमिला जी ने कहा कि मधु जी को सत्याग्रह में जाना ही चाहिए।
मधु जी अहमदनगर से 1940 में क्रिकेट की ट्रेनिंग के लिए मुंबई आए थे। पढ़ाई के दौरान ही समाजवादी आंदोलन में सक्रिय हुए, साथ ही 1946-71 के बीच 25 वर्षों तक उन्होंने सिद्धार्थ कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। 22 वर्ष की उम्र में ही वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की मुंबई शाखा के सचिव बना दिए गए। उन्होंने अशोक मेहता, यूसुफ मेहरअली, पीटर अल्वारिस, डॉ जी जी परीख, बब्बन डिसूजा, राम जोशी, प्रभाकर कुंटे, केशव गोरे और वी एन गाडगिल जैसे साथियों के साथ लंबे समय तक कार्य किया। पहली बार वे महाराष्ट्र विधान परिषद में मुंबई ग्रेजुएट कंसल्टेंसी बार सांसद रहे।
बैरिस्टर नाथ पाई का 18 जनवरी 1971 को देहांत हो गया। पार्टी ने मधु दंडवते को चुनाव लड़ाया। 1971 का वह समय था जब महाराष्ट्र में सभी सीटें कांग्रेस पार्टी जीत गई लेकिन संपूर्ण विपक्ष के पास 48 में से केवल एक राजापुर की सीट आई। जिसके बाद वे लगातार 1971 से 1990 तक 5 बार सांसद रहे। वह संसद में प्रखर वक्ता के तौर पर पूरे देश में माने गए। मधु जी का नजदीकी संबंध जेपी से हुआ।
संसद में मधु दंडवते लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ हमला बोलते रहे। इस बीच 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। मधु दंडवते को बेंगलुरु जेल में रखा गया और उनकी पत्नी प्रमिला दंडवते को यरवदा जेल में। मधु दंडवते 18 माह तक बेंगलुरु की जेल में रहे जहां उन्होंने ‘मार्क्स एंड गांधी’ नाम की किताब लिखी। मधु जी ने जेल से मृणाल गोरे की अकोला जेल में तथा जॉर्ज फर्नांडिस के भाई लॉरेंस फर्नांडिस की बर्बर तरीके से प्रताड़ना के मुद्दे को लेकर इंदिरा गांधी को पत्र लिखा। इतना सब होने के बावजूद जब इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या हुई तब उन्होंने संसद में कहा कि देश ने अपना प्रधानमंत्री खोया है और राजीव ने अपनी मां को खोया है। उन्होंने कहा कि मां के प्यार और स्नेह की जगह कोई नहीं ले सकता। मधु दंडवते जी के इस भाषण को संसद में 50 वर्षों में दिए गए सर्वश्रेष्ठ भाषणों में गिना गया। इस भाषण को लेकर राजीव गांधी ने कहा कि जिस तरह हमें मां की मौत ने अंदर तक हिला दिया था उसी तरह मधु दंडवते जी के भाषण ने हमें भावविह्वल कर दिया।
जब मधु दंडवते जी को जेल में रहते हुए यह खबर मिली कि जेपी को 12 नवंबर 1975 को चंडीगढ़ जेल से इसलिए छोड़ दिया कि उनकी किडनी खराब हो गई है तथा उनकी मौत का अंदेशा है तब मधु जी ने अपनी किडनी जेपी को देने की पेशकश की।
मधु दंडवते 1977-97 के बीच जनता पार्टी के शासनकाल में रेलमंत्री रहे। रेलवे हड़ताल में बर्खास्त किए गए 26 हजार रेलकर्मियों को उन्होंने वापस नौकरी पर लगाया। 21 फरवरी 1978 को उन्होंने रेलवे के थर्ड क्लास कंपार्टमेंट को स्लीपर क्लास में बदल दिया तथा सीटों को गद्दीदार बनाने की घोषणा की। इसी तरह उन्होंने तमाम ऐसी ट्रेनें शुरू कीं जिनमें कोई फर्स्ट, सेकंड या थर्ड क्लास नहीं होता था। तमाम सारे अस्थायी कर्मचारियों को उन्होंने नियमित किया।
मधु दंडवते ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर कोंकण रेलवे को मूर्त रूप दिया, जिसके चलते महाराष्ट्र का कोंकण इलाका स्थायी रूप से रेलवे से जुड़ गया। कोंकण रेलवे की परियोजना की शुरुआत 1977 में उन्होंने की थी लेकिन 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिरी तब केवल मुंबई से रोहा तक ही कार्य आगे बढ़ सका। अगले 10 वर्षों तक कांग्रेस ने इस कार्य को रोक दिया लेकिन जब वीपी सिंह की सरकार 1989 में बनी तब मधु दंडवते ने वित्तमंत्री और जॉर्ज फर्नाडीज ने रेलमंत्री के तौर पर कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन के माध्यम से इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा किया।
जनता पार्टी के रेलवे मंत्री के तौर पर उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी के साथ जेपी ने यह कह कर सराहा कि मुझे तुम पर गर्व है। यहां तक कि इंदिरा गांधी ने कहा कि आपने मंत्री के तौर पर जो कार्य किए हैं वे अद्वितीय हैं लेकिन यह मेरा दुर्भाग्य है कि आप मेरी कैबिनेट में नहीं हैं।
मधु दंडवते जब देश के वित्तमंत्री बने तब उन्होंने अमीरों पर वेल्थ टैक्स लगाने तथा कैपिटल ग्रेट टैक्स तथा कस्टम ड्यूटी लगाने का काम किया। उन्होंने किसानों का 10 हजार रुपए तक का कर्जा माफ किया। वे रोजगार के अधिकार को मूलभूत अधिकार बनाने के पक्ष में थे। उन्होंने इस दिशा में प्रयास भी किया था। उन्होंने पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष केंद्रीय सहायता देने की शुरुआत की। एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल जैसे प्रधानमंत्रियों के साथ वे 1996 से 1998 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने सभी को खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा देने के साथ-साथ आवास के अधिकार और आत्मनिर्भरता की दिशा में तमाम योजनाएं बनाईं।
मई 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई उसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार ने 35 वर्ष के बाद सहानुभूति लहर के चलते मधु दंडवते को राजापुर से हरा दिया। मधु जी की हार की तुलना विंस्टन चर्चिल की द्वितीय विश्वयुद्ध जीतने के बावजूद हुई चुनावी हार से की गई।
मधु दंडवते ने सादगी, पारदर्शिता, जवाबदेही और समाजवादी सिद्धांतों के साथ जीवन जिया। जो लोग यह कहते हैं कि चुनावी राजनीति काजल की कोठरी होती है उन्हें मधु दंडवते, मधु लिमये, रवि राय, कर्पूरी ठाकुर, पुरुषोत्तम कौशिक, सुरेंद्र मोहन जैसे समाजवादियों के उदाहरण से यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि चुनावी राजनीति ईमानदारी से की जा सकती है। मधु दंडवते जी ने वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के दौर में घुटने नहीं टेके। दंडवते जी अपने जीवन में जो कुछ भी कर पाए उसमें उनकी पत्नी प्रमिला दंडवते जी की बहुत बड़ी भूमिका रही। प्रमिला जी के देहांत के बाद वे टूट गए। 12 नवंबर 2005 को कैंसर के चलते 81 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई। दंडवते जी ने अपना देहदान मुंबई के जे जे अस्पताल को किया।
उन्हें सादगी, ईमानदारी, पारदर्शिता और समाजवादी सिद्धांतों के साथ-साथ राजनीति करने के लिए सदा याद किया जाएगा।
देश के ऐसे नागरिक जो राजनीति में शुचिता, सिद्धांतवादिता, सादगी और पारदर्शिता के पक्षधर हैं वे बढ़-चढ़ कर मधु दंडवते जी के जन्म शताब्दी वर्ष में भागीदारी कर रहे हैं।
मधु लिमये, मधु दंडवते, कर्पूरी ठाकुर जैसे प्रखर समाजवादियों की जन्मशताब्दी मनाकर हम देश के युवाओं को राजनीति के लिए आकर्षित करना चाहते हैं। हम उनको यह बतलाना चाहते हैं कि राजनीति में साफ-सुथरे बुद्धिजीवी भी उच्च पदों पर पहुंच सकते हैं। राजनीति में आगे बढ़ने के लिए भ्रष्ट, जातिवादी, हिंसक और दलाल होने की अनिवार्यता नहीं है जैसा कि लोग मानते हैं।