— कृष्णकांत —
विंस्टन चर्चिल गांधी को ‘अधनंगा फकीर’ कहकर मजाक उड़ाता था तो उसके पास वजह थी। जिस आंदोलन की वजह से ब्रिटेन का साम्राज्य स्थापित ढह रहा था, उसका मजाक वे उड़ा सकते थे। लेकिन आजादी के सत्तर साल बाद भी देश की सत्ता में बैठकर हृदय नारायण दीक्षित जैसे लोग या दूसरे संघी गांधी के बारे में अनाप-शनाप क्यों बकते हैं?
विलायत से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे गांधी के सूटबूट उतार फेंकने, धोती धारण करने और महात्मा बनने की यात्रा काफी लंबी है। इसे न समझने वाले लोग भारत के बारे में कुछ भी नहीं जानते। गांधी के निर्वस्त्र होने का मजाक उड़ाने का मतलब भारत के भीषण संघर्ष, गरीबी और गुलामी से जूझते करोड़ों लोगों का मजाक उड़ाना है।
गांधी ने सूटबूट त्याग कर धोती क्यों धारण की?
चंपारण में नील की खेती करने के लिए अंग्रेज किसानों पर अत्याचार करते थे। गांधी यहां आए तो लोगों ने उन्हें अंग्रेजी अत्याचार की अनंत गाथाएं सुनाईं। जब गांधी को बताया गया कि नील फैक्ट्रियों के मालिक कथित निचली जाति के औरतों और मर्दों को जूते नहीं पहनने देते तो उसी दिन से गांधी ने जूते पहनने बंद कर दिए।
8 नवंबर 1917 को सत्याग्रह का दूसरा चरण शुरू हुआ।उनके साथ गए लोगों में कस्तूरबा समेत छह महिलाएं भी थीं। यहां पर लड़कियों के लिए तीन स्कूल शुरू हुए। लोगों को बुनाई का काम सिखाया गया। कुओं और नालियों को साफ-सुथरा रखने के लिए प्रशिक्षण दिया गया।
गांधी ने कस्तूरबा से कहा कि वे औरतों को हर रोज नहाने और साफ-सुथरा रहने के बारे में समझाएं।कस्तूरबा जब औरतों को समझाने लगीं तो एक औरत ने कहा, “बा, आप मेरे घर की हालत देखिए। आपको कोई बक्सा या अलमारी दिखता है जो कपड़ों से भरा हुआ हो? मेरे पास केवल एक यही एक साड़ी है जो मैंने पहन रखी है। आप ही बताओ, मैं कैसे इसे साफ करूं और इसे साफ करने के बाद मैं क्या पहनूंगी? आप महात्मा जी से कहो कि मुझे दूसरी साड़ी दिलवा दे ताकि मैं हर रोज इसे धो सकूं।”
यह बात सुनकर गांधी ने अपना चोगा बा को दिया कि उस औरत को दे आओ। इसके बाद से ही उन्होंने चोगा ओढ़ना बंद कर दिया।
1918 में गांधी अहमदाबाद में करखाना मजदूरों की लड़ाई में शामिल हुए। वहां उन्होंने महसूस किया कि उनकी पगड़ी में जितना कपड़ा लगता है, उसमें ‘कम से कम चार लोगों का तन ढंका जा सकता है।’ इसके बाद उन्होंने पगड़ी पहनना छोड़ दिया।
31 अगस्त, 1920 को खेड़ा सत्याग्रह के दौरान गांधी ने प्रण किया था कि “आज के बाद से मैं ज़िंदगी भर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करूंगा।”
1921 में गांधी मद्रास से मदुरै जाती हुई ट्रेन में भीड़ से मुखातिब होते हुए। गांधी के शब्दों में ही, “उस भीड़ में बिना किसी अपवाद के हर कोई विदेशी कपड़ों में मौजूद था। मैंने उनसे खादी पहनने का आग्रह किया। उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा कि हम इतने गरीब है कि खादी नहीं खरीद पाएंगे।”
गांधी ने लिखा है, “मैंने इस तर्क के पीछे की सच्चाई को महसूस किया। मेरे पास बनियान, टोपी और नीचे तक धोती थी। ये पहनावा अधूरी सच्चाई बयां करती थी जहां लाखों लोग निर्वस्त्र रहने के लिए मजबूर थे। चार इंच की लंगोट के लिए जद्दोजहद करने वाले लोगों की नंगी पिंडलियां कठोर सच्चाई बयां कर रही थीं। मैं उन्हें क्या जवाब दे सकता था जब तक कि मैं खुद उनकी पंक्ति में आकर नहीं खड़ा हो सकता हूं तो। मदुरै में हुई सभा के बाद अगली सुबह से कपड़े छोड़कर मैंने खुद को उनके साथ खड़ा किया।”
चंपारण सत्याग्रह से अपने वस्त्रों पर खर्च कम करने का यह प्रयोग करीब चार साल तक चला और अंतत: गांधी गांव के उस अंतिम आदमी की तरह रहने लगे जिसके तन पर सिर्फ एक धोती रहती थी।
गांधी गरीब जनता का नेता था। गांधी का निर्वस्त्र शरीर विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए हो रहे सत्याग्रह का प्रतीक बन गया, क्योंकि देश का शरीर भी निर्वस्त्र था।
खादी इन गरीबों का निर्वस्त्र शरीर ढंकने के लिए थी, जिसे जनता खुद बना सकती थी। चरखा लोगों के लिए अपना कपड़ा और अपनी रोटी का इंतजाम करने के लिए रोजगार का साधन था। चरखा गरीबी से लड़ने का एक हथियार था। चरखा और खादी स्वावलंबन का हथियार था, यह बात समझना क्या कठिन है?
गांधी के निर्वस्त्र होने की अश्लील तुलना दीक्षित इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके कुनबे की सोच सौ साल पीछे ठहर कर जड़ हो गई थी। वे उसी जड़ता के शिकार हैं।
जब आप दस लाख का सूट पहनने वाले नेता को विष्णु का अवतार बताने लगते हैं तब धोती पहने लाठी लिये एक अधनंगा फकीर आपको मजाक का विषय लगेगा ही।
ऐसा तब होता है जब आपको अपनी जड़ों से उखाड़ दिया जाए। मेरी उम्र करीब तीन दशक की है और मैंने इसी सदी में अपने गांव के बुजुर्गों को गांधी की तरह एक धोती में देखा है। मुझे तो गांधी अपने बाबाओं और दादाओं की तरह लगते हैं। गांधी पर हंसने वाले अहमक किस ग्रह से आन कर लाए गए हैं?
गांधी के निर्वस्त्र रहने, चरखा चलाने और खादी पहनने का मजाक उड़ाने का अर्थ है आजादी के लिए संघर्ष कर रही करोड़ों भूखे और अधनंगे लोगों का अपमान करना। क्या हमारी पीढ़ी को अपने पुरखों को अपमानित करने की नीचता में फॅंसाया जा रहा है?
गांधी निर्वस्त्र हुए क्योंकि हमारा लुटा हुआ देश भूखा और नंगा था। इसीलिए उस बैरिस्टर ने जब अपने आधुनिक लिबास उतार दिए और मात्र एक धोती धारण की तो उस जमाने का हर आदमी उसका मुरीद हो गया। गांधी के महात्मा बनने की यात्रा एक अंतर्यात्रा है। इस अंतर्यात्रा ने गांधी के अंतर्मन को जनता के सामने रख दिया। जनता नतमस्तक हो गई। दुनिया में हम सब सामान्य आत्माएं हैं तो वह महात्मा था, क्योंकि वह असाधारण था।
जनता ने गांधी का नेतृत्व स्वीकार किया तो गांधी ने अपने दो पूंजीपतियों के हाथ देश बेचने का अभियान नहीं चलाया, बल्कि भारत को आजाद और आत्मनिर्भर बनाने का उपाय खोजा।
गांधी की अगुआई में अंग्रेजों से हुकूमत छिनी तो स्वदेशी सरकार बनी। लेकिन हिंदू कट्टरपंथियों ने गांधी की हत्या कर दी। सावरकर और उसका चेला गोडसे दोनों पकड़े गए। सावरकर सबूत के अभाव में छूट गए। सरदार पटेल के शब्दों में, “आरएसएस ने ही वह उन्मादी माहौल तैयार किया जिसमें गांधी की हत्या संभव हो सकी।”
गांधी से नफरत करने वाला यह संघठन और इससे जुड़े लोग आज भी गांधी को लेकर नफरत से भरे हैं। वक्त-बेवक्त वे कुछ न कुछ बकते रहते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? इनके गांधी विरोध या आजादी आंदोलन के विरोध के पीछे नफरत और देशविरोध के सिवा कोई और वजह नहीं दीखती।
बीसवीं सदी की सबसे महान हस्तियों ने गांधी को महापुरुष माना और अब यह दुनिया में स्थापित इतिहास है। जुगनुओं के छटपटाने से चंद्रमा की चांदनी मद्धिम नहीं होती।
नफरती गिरोह के फेर में मत फंसिए। हमें पढ़ने वाले साथियों से हमारी अपील है कि आप अपने बच्चों को गांधी के बारे में बताएं। भगतसिंह जैसे शहीदों के बारे में बताएं। भूखे भारत के उत्कट संघर्षों के बारे में बताएं और इस गिरोह से अपने बच्चों को बचाएं।
महात्मा गांधी के बिना आधुनिक भारत का कोई इतिहास नहीं लिखा जा सकता और न कोई भविष्य हो सकता है।
बहुत शानदार लेख के लिए धन्यवाद।