हुगली इमामबाड़े में मोहर्रम के साझा जश्न ने पेश की एकता की मिसाल

0
Hugli

# बंगाल के सबसे बड़े इमामबाड़े में मिल-जुल कर मातम मनाने के रिवाज ने पूरे हिंदुस्तान को एकता का संदेश दिया है।

रिपोर्ट : द्वारा सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस

25 सितंबर। मोहर्रम यानी करबला में हज़रत मोहम्मद साहब के परिवार की शहादत के ग़म का त्योहार ! हिंदुस्तान की ज़मीन पर ये सामूहिक मातम सब धर्मों की भागीदारी के साथ और भी विस्तृत हो जाता है। कोलकाता के नजदीक मुर्शिदाबाद में मौजूद हुगली इमामबाड़ा एक ऐसा ही इमामबाड़ा है जहां 10 दिनों तक चलने वाले मोहर्रम में हिंदू समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यह इमामबाड़ा बंगाल का सबसे बड़ा इमामबाड़ा है जिसे हाजी मोहम्मद मोहसिन नामक एक व्यापारी ने 1841 में बनवाना शुरू किया था। इस विशाल योजना पर काम करने में पूरे 20 सालों का समय लगा और आख़िरकार 1861 में ये इमारत पूरे वैभव के साथ बनकर तैयार हो गई। आज तक हुगली नदी के किनारे पर खड़ी इस खूबसूरत इमारत ने न सिर्फ धार्मिक भेदों को दूर किया है, बल्कि इससे इस्लाम के भीतर भी शिया-सुन्नी संप्रदाय के आपसी अंतर मिट रहे हैं।

एक मातम जिसमें गिरती है मज़हब की दीवार

मुहर्रम में मातम मनाने के लिए ताज़िया के साथ अद्भुत झांकी भी निकाली जाती है। हुगली इमामबाड़े में ये जलूस मोहर्र्म के सातवें दिन आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी तादाद में गैरमुस्लिम लोग भी शिरकत करते हैं। कुछ को यहां मन्नतें और दुआएं खींच लाती हैं तो कुछ को इस जलूस की खूबसूरती। आवाज़, द वॉइस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दिन अलग अलग तबकों से आने वाले करीब 50,000 लोग यहां मौजूदगी दर्ज कराते हैं। यहां तक कि इस आयोजन के इंतजाम में भी गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलक मिलती है।

इमामबाड़े की देखभाल करने वाले मोहम्मद रिज़वान कहते हैं- ‘यहां का जलूस इराक़ के करबला के जलूस की तरह होता है। मातम का वक्त भी करबला के वक्त से मेल खाता है।’

सच भी है कि खुशी बांटने से खुशी बढ़ती है लेकिन दुख बांटने से दुख कम हो या ना हो लोगों के बीच आपसी प्यार, एकता और भरोसा जरूर मजबूत होता है।

इमारत के इतिहास में सद्भावना का पैगाम

हाजी मोहम्म्द मोहसिन एक उदार शख्सियत के मालिक थे। बंगाल में भुखमरी के दौरान भी उन्होंने काफी लोगों की मदद की थी। मुश्किल हालात में उनसे मदद पाने वालों में सभी धर्मों के लोग थे। उन्होंने हुगली इमामबाड़े के अलावा एक मदरसा, कॉलेज और अस्पताल भी बनावाया जिसके चलते लोगों में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई।

शिक्षा, स्वास्थ्य और मजहब से परे सभी की सेवा का ये इतिहास आज इमामबाड़े में मिली-जुली तहजीब और एकता का अध्याय है जो बंगाल की मिट्टी से देशभर के लिए एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रहा है। आज नफरत और अलगाव पैदा करने वाली राजनीति के दौर में ऐसी कहानी और उदाहरण और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

तालीम, तहज़ीब और आपसी प्रेम की जागीर

इसके साथ ही हुगली इमामबाड़ा अपने ऊंचे, नायाब क्लॉक टॉवर के कारण भी मशहूर है जहां से हुगली नदी को भी बहते हुए देखा जा सकता है। इस इमामबाड़े की शेल्फ़ में हदीस की दुर्लभ किताबें महफ़ूज़ हैं लेकिन इन सभी विशेषताओं से ऊपर यकीनन लोगों में त्योहर को लेकर भाईचारे की भावना सर्वोपरि है। इस जज़्बे का ही नतीजा है कि ग़म की घड़ी भी यहां शांति के संदेश में घुल-मिल जाती है। ऐसी परंपराएं जो लोगों में सद्भावना जगाती हों असल मायनों में समाज और देश की हिफाजत करती हैं।


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment