— जयंत जिज्ञासु —
आज दिन भर उदासी में अपने अध्यापक प्रफ़ेसर राकेश बटबयाल, प्रो. महालक्ष्मी, पीडी सिंह, आदि के साथ कॉमरेड सीताराम येचुरी और देश व समाज के अंदर आज के हालात पर बातचीत करता रहा। साथ ही, डॉ. लोहिया की अंतिम यात्रा व उसमें शिरकत करने जुटे राष्ट्रीय नेताओं व विद्युत शवदाह गृह के बाहर उसी समय हुई श्रद्धांजलि सभा में उनकी भावांजलि को याद किया जिसकी रपट दिनमान के लिए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने लिखी थी जिसका एक अंश यहां रख रहा हूं:
डॉ. लोहिया गुज़रे तो रमा मित्र, किशन पटनायक, विनय कुमार, रामसेवक यादव, कृष्णनाथ उनके पास मौजूद थे। गुज़रने से तीन दिन पहले डॉ. लोहिया ने कहा था, “अपने देश में जो हाल राजनीति का है, वही डॉक्टरी का भी!”
निधन की ख़बर पाते ही जयप्रकाश नारायण व प्रभावती जी व मोरारजी देसाई विलिंगटन हॉस्पिटल पहुंचे। वहां से दो बजे रात में उनके आवास 7, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड पर उनका पार्थिव शरीर लाया गया। रात के तीन बजे उनका दर्शन करने आचार्य कृपलानी, केरल के मुख्यमंत्री नंबूदरीपाद, बिहार के उपमुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष एस एम जोशी, मधु लिमए, राज नारायण, जेएच पटेल, कृष्ण मेनन, अरुणा आसफ़ अली, उमानाथ, गोपालन, गंगाशरण सिंह, तुलसी वोड़ा दम्पती, आदि पहुंचे।
अगले दिन दोपहर तक गृहमंत्री यशवन्त राव चव्हाण, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिंह, अशोक मेहता, डॉ. रामसुभग सिंह, डॉ. चंद्रशेखर, डॉ. त्रिगुण सेन, शेख़ अब्दुल्ला, कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज आदि अपनी भावांजलि देने पहुंचे।
लोहिया की अर्थी अपने कंधे पर लिए जा रहे थे मोरारजी देसाई, यशवन्त चव्हाण, रामसेवक यादव, आचार्य कृपलानी, मनीराम बागड़ी और अति निकटस्थ मित्र बालकृष्ण गुप्त।
यमुना किनारे गांधी, नेहरू व शास्त्री की समाधि के पास जो विद्युत शवदाह गृह है, उसके बरामदे पर उनका शव रखा गया और वहां मौजूद जनसैलाब द्वारा अंतिम दर्शन के बाद उनका पार्थिव शरीर शवदाह गृह के अंदर चला गया और एक लपट-सी निकली जिसने डॉ. लोहिया के शरीर को आत्मसात कर लिया।
लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी के शब्दों में, “जो आदमी समूची सल्तनत को आग लगाने की क्षमता रखता था, आज अग्नि ने उसे अपना ग्रास बना लिया”।
जयप्रकाश नारायण का कंठ रुंधा हुआ था, दो मिनट तक वह बोल ही नहीं पाए। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बहती रही। फिर किसी तरह अपने को संयत करने का प्रयत्न करते हुए भर्राये गले से उन्होंने कहा, “राममनोहर मुझसे आठ बरस छोटे थे – उचित तो यह था कि वह मेरी जगह पर होते और मैं उनकी जगह पर होता; लेकिन परमात्मा को यह स्वीकार नहीं था। राममनोहर लोहिया का सारा जीवन आपके और दुनिया के सामने एक खुली हुई किताब है। ऐसा त्यागी और बलिदानी जीवन किसी ही किसी को मयस्सर होता है। वह आज़ादी की लड़ाई के नौजवान थे। उनके करतब इतिहास में अमिट हैं। वह पहले नेता थे जिन्होंने आज़ादी के बाद भारत के भावी स्वरूप की कल्पना की।
उन्होंने समाजवादी आंदोलन को बल दिया, विप्लव दिया, आंधी दी। उन्होंने भारत में समाजवादी आंदोलन को प्रतिष्ठित किया। वह ग़रीबों के मसीहा तो थे ही, भारत की परिस्थितियों के अनुकूल उन्होंने सामाजिक विषमता को समाप्त करने के लिए अपना बलिदान किया। आज यह सारा संघर्षमय जीवन नहीं रहा। भविष्य-द्रष्टा डॉ. लोहिया ने दस साल पहले ही समझ लिया था कि हिन्दुस्तान किधर जा रहा है। उन्होंने जो तस्वीर खींची थी, वह कितनी सच्ची थी, इसका प्रमाण भारत का चौथा आम चुनाव है, जो ख़ुद डॉ. लोहिया की एक क्रांतिकारी यादगार है। इस ज्योति-पुंज, इस अद्वितीय प्रतिभा, इस विप्लवकारी आत्मा को प्रणाम।”
लोकसभाध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी ने कहा, “इस देश में अनेक नेता हुए, लेकिन लोहिया केवल एक हुआ”।
कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने कहा, “लोहिया ग़रीबों और कुचले हुए लोगों के नेता थे”।
गृहमंत्री चव्हाण ने कहा, “डॉ. लोहिया पददलितों के प्रवक्ता थे। वे भारतीय राजनीति के ‘क्रुद्ध नवयुवक’ थे, लेकिन उनका क्रोध व्यक्तिगत द्वेष पर आधारित नहीं था। उसके पीछे वह करुणा थी जो देश की ग़रीबी के प्रति संवेदनशील लोगों के मन में पैदा होती है। संसद में हम उनके क्रोध को सहन करते थे – कर्त्तव्यवश उनका उत्तर भी देना पड़ता था। अब ख़याल आएगा कि वह दबंग आवाज़ कहां है। संसद में एक जगह ख़ाली रहेगी, जो दिल को चुभेगी। लोकसभा उनके बिना सूनी रहेगी”।
कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता प्रो. हीरेन मुखर्जी ने कहा, “डॉ. लोहिया भारतीय राजनीति के सबसे विवादास्पद व्यक्ति थे – मगर इससे क्या फर्क पड़ता है! उनका उज्ज्वल चरित्र, उनकी मेधावी प्रतिभा और उनके भीतर की आग, ये सब ऐसी चीज़ें हैं जो एक असाधारण व्यक्ति में ही होती हैं। उनके निधन से आज सारा देश शोक में डूब गया”।
उनकी पुरानी सहयोगी अरुणा आसफ़ अली ने 1942 के आंदोलन की यादों को ताज़ा करते हुए कहा, “डॉ. लोहिया का हंसता हुआ चेहरा कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज हमारे लम्बे सफ़र के साथी राममनोहर, जो कि तमाम दुश्वारियों के बीच अडिग रहना जानते थे, नहीं रहे। मुड़ कर देखने पर आज मैं पाती हूं कि डॉ. लोहिया के आदर्शों से हमारा कभी कोई मतभेद नहीं रहा। आज भारत के उन तमाम घरों में अंधेरा है जहां राममनोहर लोहिया की आवाज़ गूंजती थी। उनका गुस्सा, उनकी झुंझलाहट कभी नहीं भूलेगी”।
आचार्य कृपलानी ने डॉ. लोहिया को अपने परिवार का एक सदस्य संबोधित करते हुए कहा, “आज मैं अकेला हो गया हूं। लोहिया की वाणी में गुस्सा था, लेकिन यह गुस्सा अकारण नहीं था। डॉ. लोहिया में जितना आवेश था, उतनी ही कोमलता थी। उनके कोमल स्वभाव को हम लोग समझते थे”।
तारकेश्वरी सिन्हा ने मधुर स्मृतियों को ताज़ा करते हुए कहा, “लोकसभा में उनके साथ डॉ. लोहिया की मीठी झड़पें बराबर हुआ करती थीं। न केवल लोकसभा, बल्कि सारा देश आज सूना लगता है”।
इन तमाम श्रद्धांजलियों का सिलसिला समाप्त होने के पहले ही डॉ. लोहिया का इहलौकिक शरीर अग्नि में स्वाहा हो चुका था। दूर जमुना पर एक नाव आती नज़र आई, जिसमें लेकर डॉ. लोहिया की भस्म अनंत काल से बहती आई पवित्र सरिता में अनंत काल के लिए प्रवाहित कर दी गई। भारतीय इतिहास के विलक्षण इतिहास-पुरुष राममनोहर लोहिया का वह लीलामय जीवन समाप्त हो गया जो सत्ताधारियों को बेचैन करता था, शोषितों और पीड़ितों को हौसला देता था, बुद्धिजीवियों को आकर्षित करता था और देश की बेजुबान जनता को वाणी देता था।
– सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, दिनमान, 22.10.1967
हम उम्मीद करें कि गांधी, नेहरू, मौलाना आज़ाद, अम्बेडकर, डॉ. लोहिया, जयप्रकाश, किशन पटनायक, एस एम जोशी, आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेन्द्र देव, अरुणा आसफ़ अली ने जिस सेक्युलर मुल्क का ख़ाब देखा था, उसे हम धरातल पर उतारेंगे और जम्हूरियत में इंसानियत को केंद्र में रख कर काम करेंगे व व्यक्ति की गरिमा को सर्वोपरि रखेंगे।
ज्योति क़ायम रहे!