— कौशल किशोर —
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के तेरहवें दिन 19 सितंबर को गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री बलवंतराय मेहता शहीद हुए थे। दिन ढ़लने से पहले पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय वायु क्षेत्र में प्रवेश कर एक सिविलियन विमान (बीचक्राफ्ट मॉडल 18) को हवा में उड़ा दिया। इस हादसे में मेहता दम्पत्ति समेत कुल आठ लोगों की मौत हुई। युद्ध और बलिदान का स्वतंत्र भारत में रचित इतिहास दो शहीद का नाम स्वर्णाक्षरों में लिख रखा है: बलवंतराय मेहता (1900 – 1965) और लाल बहादुर शास्त्री (1904 – 1966)। दोनों ही राजनेताओं ने सार्वजनिक जीवन में कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल कायम किया है। इन विभूतियों का असामयिक निधन देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ था।
लाहौर में लाला लाजपत राय ने राष्ट्र निर्माण के लिए लोक सेवकों को गढ़ने का संकल्प ले रखा था। इसी लोक सेवा की परंपरा में उन्होंने सर्वस्व अर्पित किया। उनकी शहादत के 36 साल बाद मेहताजी ने बलिदान दिया। उन्होंने 20 साल की अवस्था में ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में योगदान देकर जीवन की शुरुआत किया। स्वतंत्रता संग्राम को धार देने के लिए 1921 में भावनगर प्रजा मंडल शुरु किया। बारदोली सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक उन्होंने खासी सक्रियता का परिचय दिया। इस बीच सात साल अंग्रेजों के जेल में ही बिता दिए थे। उन्होंने गांधीजी के सुझाव पर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और सर्वेंट्स आफ दी पीपल सोसाइटी में शामिल हुए। 1957 के लोक सभा चुनाव में भावनगर (गोहिलवाड) सीट से कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर चुने गए। साथ ही जवाहर लाल नेहरु जब कांग्रेस से अध्यक्ष बने तो महासचिव बने। जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर के विलय में सरदार पटेल के साथ के.एम. मुंशी की तरह ही ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाते हैं।
साठ के दशक का वह बेहद चर्चित मामला है। आज कम लोग इस विषय में बराबर जानकारी रखते हैं। दूसरे युद्धों की अपेक्षा 1965 युद्ध के विषय में पब्लिक डोमेन में जानकारी भी कम है। हैरान करने वाली बात है कि दोनों देशों में लोग जीत का जश्न मनाते हैं। वैश्विक पटल पर इस युद्ध के बाद भारत की साख बढ़ी थी। दक्षिण एशिया में महाशक्ति बनकर उभरा था। इस जंग में चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, तत्कालीन सोवियत युनियन और संयुक्त राष्ट्र संघ अहम भूमिका निभाती। युद्ध का नतीजा और ताशकंद में हुआ समझौता लाल बहादूर शास्त्री के अंत की कहानी कहती है। यह कैसा दुर्योग है कि इस समझौते के बाद शास्त्रीजी की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी। इस मामले में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री के प्रश्नों पर लंबे समय तक सरकार ने गौर नहीं किया।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जब नेताजी से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने की पहल करते तो उनके छोटे पुत्र अनिल शास्त्री इस रहस्यमय मौत की फाइलों को सार्वजनिक करने का आग्रह कर चुके हैं। पता नहीं कब तक इस विषय में आग्रह करने का सिलसिला चलेगा? इस क्रम में एक बार फिर बलवंतराय मेहता के बलिदान पर जेपी और शास्त्री जैसे करीबियों की बातों पर ध्यान देना जरुरी है। मेहताजी की शहादत के चौथे दिन ही सीज फायर घोषित हुआ और समझौता वार्ता की रात में दूसरी त्रासदी भी घटित हुई थी।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस जंग में तोपों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ था। 1962 में चीन से हारने के बाद भ्रामक स्थिति कायम हो गई। पाकिस्तान में बेहतर अमेरिकी हथियारों के बूते भारत को युद्ध में हराने का भ्रम पनपने लगा था। गरमी शुरु होते ही पाकिस्तानी सेना ने पहले पश्चिमी छोर पर कच्छ में और फिर कश्मीर घाटी में घुसपैठ किया। यह अभियान पाकिस्तानी अभिलेखों में आज भी आपरेशन डेजर्ट-हॉक, जिब्राल्टर और ग्रैंड स्लैम के नाम से दर्ज है।
भारतीय रिकार्ड में इन्हें आपरेशन एब्लेज और रिडल नाम दिया गया। आखिर 6 सितंबर को भारतीय वायु सेना ने आक्रमण किया और इसी के साथ युद्ध शुरु हो गया था। इस दिन के जंग में पाकिस्तानी वायु सेना के स्क्वैड्रन लीडर सरफराज रफीकी की मौत हो गई थी। भारतीय वायु सेना के फ्लाइट लेफ्टिनेंट डीएन राथौड़ की वीरता का यह नतीजा था।
इसके दूसरे ही हफ्ते में पाकिस्तान ने तमाम नियमों को ताक पर रखते हुए यह दुस्साहस किया। गुजरात के कच्छ क्षेत्र में बीस किलो मीटर अंदर भारतीय वायु क्षेत्र में घुस कर ऐसा किया गया। उस समय बीचक्राफ्ट के पायलट जहांगीर इंजीनियर थे। भारतीय वायु सेना की इतिहास के आरंभिक दौर में प्रसिद्ध हुए चार पारसी भाईयों में वह दूसरे हैं। सबसे बड़े भाई एस.पी. मेरवान इंजीनियर युद्ध से एक साल पहले तक वायु सेना के प्रमुख रहे। सबसे छोटे भाई मीनू इंजीनियर सेना के सबसे सजे-धजे योद्धा के रुप में रिटायर हुए थे।
हत्याकांड के समय में भुज स्थित एयर फोर्स युनिट में तैनात स्क्वैड्रन लीडर बीसी राय रडार निरीक्षक थे। उन्होंने घटनाक्रम व परिस्थितियों का अवलोकन कर कहा है कि पाकिस्तान को बलवंतराय मेहता की गतिविधियों के विषय में जानकारी थी और उनके अपहरण की योजना विफल होने पर ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। इसके विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने इंजीनियर भाईयों में से तीसरे रॉनी का विशेष रुप से जिक्र किया है, जो उस दिन वायु सेना के पश्चिमी छोर पर स्थित एक दूसरे केन्द्र पर तैनात भी थे। इस मामले को परत-दर-पर खंगालने से साफ उजागर हो जाता कि किस तरह से पाकिस्तान ने गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री के अपहरण की शाजिस की और असफल होने पर फ्लाइंग आफिसर को एक सिविलियन विमान उड़ाने के लिए विवश भी किया था। भारत पाकिस्तान के इतिहास के घृणित हत्याकांड में इसे पहले ही गिनेंगे।
इस युद्ध से कई अप्रत्याशित घटनाएं जुड़ी हैं। पाकिस्तान में एक युग पहले शोक संदेश और माफीनामा के सवाल पर यह मामला उभरा। दरअसल इस युद्ध के पहले पाकिस्तानी शहीद सरफराज रफीकी के इंतकाल पर शोक व्यक्त करने के उद्देश्य से डीएन राथौड द्वारा ही एयर कोमोडोर कैसर तुफैल से संपर्क किया गया।तुफैल इस युद्ध के एक दशक बाद पाकिस्तानी ऐयर फोर्स में शामिल हुए थे। फिर उन्होंने इस हादसे में पाकिस्तानी विमान उड़ा रहे फ्लाइंग अधिकारी कैज हुसैन से विस्तृत बातचीत की। घटना का व्यौरा डिफेंस जर्नल में प्रकाशित भी हुआ था। इसमें इंसानियत दोनों ओर दिखी।
इसके बाद कैज हुसैन ने भारतीय शहीद के परिजनों से संपर्क कर शोक प्रकट करने का निर्णय लिया और लाहौर के ही एक व्यापारी नावेद रियाज के माध्यम से शहीद पायलट जहांगीर इंजीनियर की बेटी फरीदा सिंह से संपर्क साधने में सफल भी हुए थे। 5 अगस्त 2011 को भेजे गए उनके ईमेल का जवाब फरीदा सिंह ने 10 अगस्त को लिखा है। इन पत्रों में गजब की समझदारी दिखती। वैमनस्य की राजनीति के इस दौर में यह सुखद आश्चर्य का विषय लग रहा था।
क्या सचमुच दोनों देशों के लोगों के बीच ऐसी ही उदारता और आपसी सौहार्द का भाव है? अमन की आशा और आगाज-ए-दोस्ती जैसे कार्यक्रमों के साथ शह और मात का सियासी खेल बदस्तूर चल रहा है। दोनों देशों में फाइटर जेट और अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा और विशाल हो इसकी कोशिश भी जारी है। साथ ही दहशतगर्दी में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। इन सब के बावजूद स्नेह और भाईचारा की ऐसी बातें अंधेरे में आशा तो जगाती ही है।