— परिचय दास —
महात्मा गांधी की दृष्टि और उनके संघर्ष का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट होता है कि उनकी समकालीनता का मूल्यांकन किसी एक देश, समय, या परिस्थिति तक सीमित नहीं रह सकता। गांधी का चिंतन न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में प्रासंगिक है बल्कि वैश्विक सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा के संदर्भ में भी गहराई से सामयिक है। पश्चिमी विचार दृष्टि से गांधी का पुनः मूल्यांकन करते समय उनकी विचारधारा की कई विशेषताएं और उनकी मानवता के प्रति अपार प्रतिबद्धता उभर कर सामने आती हैं। पश्चिम में बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में समाज और राजनीति के क्षेत्र में भारी उथल-पुथल देखने को मिली। इस काल में पूंजीवाद, उपनिवेशवाद, फासीवाद और युद्ध के खिलाफ संघर्ष की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। गांधी का ‘सत्याग्रह’ और ‘अहिंसा’ इस संघर्ष के लिए एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
गांधी का मुख्य दर्शन था – सत्य और अहिंसा। पश्चिमी दृष्टिकोण से यह दर्शन न केवल एक नैतिक मूल्य था, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता का एक तरीका भी था, जिसमें मानवता के प्रति सम्मान और न्याय की अवधारणा प्रमुख थी। गांधी ने अपनी विचारधारा को केवल एक नैतिक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत नहीं किया बल्कि उसे अपनी राजनीतिक रणनीति के रूप में भी अपनाया। इस संदर्भ में, जॉन रॉल्स जैसे पश्चिमी नैतिक दार्शनिक का सिद्धांत भी गांधी के सिद्धांत से जुड़ा हुआ महसूस होता है, जिसमें निष्पक्षता और न्याय की बात की जाती है।
गांधी का अहिंसा का सिद्धांत पश्चिमी विचारधारा में अहिंसावाद (pacifism) के संदर्भ में देखा जा सकता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने भी गांधी से प्रेरणा लेकर अहिंसा को अपनी संघर्ष की रणनीति बनाया। गांधी के इस सिद्धांत ने पश्चिम में एक नयी विचारधारा को जन्म दिया – जहां अहिंसा को न केवल व्यक्तिगत आचरण के रूप में देखा गया, बल्कि एक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन के रूप में भी अपनाया गया। जहां पश्चिम के कई विचारक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की बात कर रहे थे, वहीं गांधी का दृष्टिकोण दोनों को एकीकृत कर एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
गांधी के ‘स्वराज’ के विचार का भी पश्चिमी समाजशास्त्र और राजनीति में गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। पश्चिमी चिंतकों जैसे कि जॉन लॉक और जीन-जाक रूसो ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक अनुबंध की बात की, जबकि गांधी ने ‘स्वराज’ को आत्म-शासन के रूप में समझाया, जो आत्मानुशासन और सामुदायिक जिम्मेदारी पर आधारित था। उनका स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि वह एक व्यापक दर्शन था, जिसमें आत्मनिर्भरता, आत्म-स्वीकृति, और आत्म-विकास का समावेश था। यह विचारधारा आज के समय में भी प्रासंगिक है, जब पूरी दुनिया में आर्थिक असमानता और पर्यावरणीय संकट की चुनौती बनी हुई है। गांधी का आत्मनिर्भरता का विचार हमें इस बात की याद दिलाता है कि सच्ची स्वतंत्रता तभी संभव है, जब समाज के सभी वर्गों को समान अवसर और संसाधन प्राप्त हों।
महात्मा गांधी के विचारों का प्रभाव पश्चिम में ‘डी-कोलोनाइजेशन’ या उपनिवेशवाद के खिलाफ आंदोलन में भी देखा गया। फ्रांत्ज़ फैनन जैसे चिंतक जिन्होंने उपनिवेशवाद के प्रभावों पर गहन चिंतन किया, गांधी के अहिंसात्मक प्रतिरोध से प्रेरित हुए। गांधी का यह मानना कि उपनिवेशवाद को केवल हिंसात्मक संघर्ष से समाप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि सत्य और नैतिकता के आधार पर उसका प्रतिरोध करना आवश्यक है, पश्चिमी विचारधारा में उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों के लिए एक नया मार्गदर्शन था।
गांधी के आर्थिक विचार भी पश्चिमी विचारधारा में एक नई दृष्टि प्रदान करते हैं। पश्चिम में औद्योगिकीकरण और पूंजीवाद ने समाज को प्रगति का प्रतीक माना, जबकि गांधी का ‘सर्वोदय’ और ‘स्वदेशी’ का विचार इस प्रगति की नई परिभाषा प्रस्तुत करता है। गांधी ने हमेशा जोर दिया कि विकास का अर्थ केवल भौतिक समृद्धि नहीं है, बल्कि यह मानवता की नैतिक और सामाजिक प्रगति से भी जुड़ा होना चाहिए। उनके अनुसार, मशीनों का अंधाधुंध प्रयोग और उपभोक्तावादी संस्कृति मानवता को स्वार्थी और संवेदनहीन बना सकती है। इस संदर्भ में, उनका ‘स्वदेशी’ का विचार, स्थानीय उत्पादन और आत्मनिर्भरता की बात करता है। आधुनिक पश्चिमी विचारक जैसे कि इवान इलिच और एफ. शूमाखर, जो ‘स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल’ जैसी अवधारणाओं पर बल देते हैं, गांधी के इन विचारों से प्रभावित हुए हैं।
आज की दुनिया में पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए भी गांधी के विचार बहुत प्रासंगिक हैं। पश्चिमी समाज जो बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण और उपभोग पर निर्भर था, अब अपनी नीतियों और कार्यप्रणाली में बदलाव की आवश्यकता महसूस कर रहा है। गांधी का ‘अपरिग्रह’ और ‘स्वावलंबन’ का सिद्धांत आज की पर्यावरणीय चुनौतियों के संदर्भ में अत्यधिक सामयिक है। उनका मानना था कि पृथ्वी पर सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन किसी एक व्यक्ति के लालच के लिए नहीं। यह विचार आधुनिक पर्यावरणीय आंदोलन में एक प्रमुख प्रेरणा के रूप में काम कर रहा है, जहां टिकाऊ विकास और संसाधनों के सही उपयोग पर जोर दिया जा रहा है।
गांधी के जीवन के व्यक्तिगत पहलुओं का भी पश्चिमी दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया जा सकता है। उनके जीवन में सादगी, व्यक्तिगत अनुशासन, और आत्मानुशासन का जो महत्व था, वह पश्चिमी दर्शन में अस्तित्ववाद (existentialism) से मेल खाता है। अस्तित्ववाद के प्रमुख चिंतक जैसे कि जीन-पॉल सार्त्र ने भी व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके द्वारा चुने गए कर्मों की बात की है। गांधी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन में चुनौतियों और कठिनाइयों के बावजूद अपने सिद्धांतों पर अडिग रह सकता है। यह अस्तित्ववादी दृष्टिकोण में एक नया आयाम जोड़ता है, जिसमें व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी और उसके सामाजिक प्रभाव को महत्व दिया गया है।
महात्मा गांधी का ‘सत्य’ के प्रति दृढ़ निश्चय भी पश्चिमी दर्शन में प्रासंगिक है। इमैनुएल कांट के ‘शुद्ध विवेक’ के सिद्धांत के अनुसार, नैतिकता का आधार व्यक्ति की आंतरिक समझ और विवेक पर होता है। गांधी ने सत्य को एक ऐसी सार्वभौमिक अवधारणा के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे व्यक्ति को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। उनके अनुसार सत्य को केवल एक धार्मिक या आध्यात्मिक सिद्धांत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उसे जीवन के हर क्षेत्र में अमल में लाया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण से गांधी का ‘सत्य’ का सिद्धांत आधुनिक नैतिकता और राजनीति के लिए एक दिशा-निर्देशक बन जाता है।
महात्मा गांधी की समकालीनता का पश्चिमी विचार दृष्टि से मूल्यांकन करते हुए यह कहा जा सकता है कि उनके विचार केवल उनके समय के लिए ही नहीं, बल्कि आज और भविष्य के लिए भी अत्यधिक प्रासंगिक हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत – अहिंसा, सत्याग्रह, सर्वोदय, और स्वराज – एक ऐसा मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जो केवल राजनीतिक या सामाजिक परिवर्तन के लिए ही नहीं, बल्कि मानवता की बेहतरी के लिए आवश्यक है। गांधी का दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि सच्चा परिवर्तन न केवल बाहरी संरचनाओं में होता है, बल्कि व्यक्ति के भीतर से भी आरंभ होना चाहिए। यही कारण है कि पश्चिमी विचारधारा में गांधी के विचारों की गहराई से कद्र की जाती है और उनके सिद्धांतों को आज भी नई समस्याओं के समाधान के रूप में अपनाया जाता है।
गांधी के जीवन और उनकी विचारधारा को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि उनका महत्व केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था। उनका जीवन और उनके सिद्धांत आज के समय में भी उतने ही सामयिक हैं, जब हम सामाजिक अन्याय, पर्यावरणीय संकट, और नैतिक पतन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। गांधी का जीवन हमें यह सिखाता है कि व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और सत्य के प्रति उसकी निष्ठा समाज में बड़े पैमाने पर परिवर्तन ला सकती है। यही गांधी की समकालीनता है, जो उन्हें हमारे समय का एक सच्चा नायक बनाती है।