— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
आसमान से आग उगलते मिसाइल, बम के गोले, फौजी बख्तरबंद गाड़ियों, काफिलो की बंदूक से निकलती हुई गोलियां बेकसूर इंसानो का कत्ल करते, बच्चों को मारते औरतों के जिस्म को रोनते, इमारतो को जमींदोज आगजनी करते हैवानियत के सारे मंजर आज दुनिया तमाशबीन बनकर देख रही है। परंतु आज से 73 साल पहले जुलाई 1950 में सोशलिस्ट चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया ने 73 साल पहले जुलाई 1950 में बताया और चेतावनी दी थी इस्राइल अरब संघर्ष के बारे में, “मैंने इस्रायल के प्रधानमंत्री बेन गुरियन और अरब लीग के नेताओं की मीटिंग कराने की कोशिश की थी। इस्राइल के प्रधानमंत्री ने मुझसे कहा था कि वे अरब नेताओं से मिलने के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं।
मुझे लगा था की सीमाओं की गारंटी तो प्रभावी की ही जा सकती है, हालांकि फिलिस्तीन के अरब शरणार्थियों की समस्या को हल करने में बहुत कठिनाई होगी। किसी भी स्थिति में इस्राइल के लिए यह अच्छा होगा कि वह नज़रेथ और और अन्य स्थानों के अरबो को न केवल समान नागरिकता की औपचारिक सुविधा दें बल्कि उन्हें सम्मानजनक जीवन की वह तमाम सुविधाएं भी दे जो यहूदियों को दी जा रही है। मैं यह समझ नहीं पाया हूं की अरबो और यहूदियों के लिए सामूहिक बस्तियां बनाने की पहल क्यों नहीं की जा सकती।
इस बीच मिस्र में चुनाव हुए हैं और मिलनसार नहास पाशा वहां प्रधानमंत्री बने हैं। मैंने जब 6 महीने पहले उनसे बात की थी तो वह तीसरे खेमे के बारे में आशान्वित नहीं दिखे थे लेकिन अगर भारत सकारात्मक नीति अपनांए तो उनका मन भी बदल सकता है। जैसे भी हो नहास पाशा और आजाम पाशा की बेन गुरियन से मीटिंग होनी चाहिए। इसका कुछ तो फायदा होगा, भले ही वह इस्राइल अरब युद्ध को न रोक पाए। भले ही कितने युद्ध हो जाएं लेकिन अंततः समझोता तो होना ही चाहिए इस तरह की बैठके इसमें सहायक ही होती है।
एक न एक दिन इस्राइल और अरब दुनिया के बीच कुछ संघात्मक व्यवस्था बनानी ही पड़ेगी। अगर दुनिया में कहीं अंतिम व्यक्ति तक युद्ध करने जैसी भावना मुझे दिखी तो वह इस्राइल में ही दिखी। जब मैंने एक इस्रायली उत्साही नौजवान से कहा की 8 करोड़ अरब शत्रुओं के सामने 20 लाख यहूदियों के टिके रहने की कोई संभावना नहीं है और किसी दिन अरर्बो के पास भी यहूदियों जितने हथियार आ जाएंगे तो उसने अपने शांत उत्तर से मुझे डरा दिया। उसने कहा कि उनके लिए जाने की कोई जगह नहीं है। आश्चर्य की बात है कि इस देश में जहां हर लड़की मशीनगन चला सकती है, महात्मा गांधी की आत्मकथा हर उस नौजवान ने पढी है जिससे मैं मिला। गहराई -गहराई को आमंत्रित करती है चाहे वह हिंसक हो या अहिंसक।
इस्राइल एशियाई देश है। उसके पास इतने मानव संसाधन और प्रतिभाएं हैं कि किसी और देश मे इतनी नहीं होगी। वह नए ढंग के जीवन के प्रयोग कर रहा है विशेषकर कृषि में। शांति और पुनर्निर्माण के कार्य में इस्रायल की साझेदारी सारे एशिया को, जिसमें अरब भी शामिल है, लाभान्वित करेगी। भारत सरकार को इस्राइल को मान्यता देने में देरी नहीं करनी चाहिए। मैं यही बात मिस्र की सरकार से भी कहना चाहता हूं। मैं यह बताने की जरूरत नहीं समझता कि मैंने मिस्र मे अपने को ज्यादा घर जैसा सहज महसूस किया बनिस्पत इस्रायल के लोगों के बीच क्योंकि काहिरा में गंदगी, शोर और अनुशासनहीनता कानपुर की तरह ही है। यह दुःखों और उम्मीदों का रिश्ता और संभवत: है दोनों देशों की संस्कृतियों का एक जैसा होना भी हमें एक दूसरे के करीब लाता है”।