बॉक्सर मेरीकॉम ने बच्चों के नाम लिखी चिट्ठी!

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Boxer Mary Kom

Vinod kochar

— विनोद कोचर —

हा–“तुम छोटे हो पर जानना जरूरी है कि दुष्कर्म क्या होता है, क्योंकि तुम्हारी माँ से भी छेड़छाड़ हुई!!”

“प्यारे बच्चों…

मैं महिलाओं से रोज होने वाली हिंसा के बारे में बात करना चाहती हूँ।आप अभी बहुत छोटे हो।पर आपको इस उम्र में यह जानना जरूरी है कि महिलाओं से कैसे पेश आएं।

हमारा व्यवहार कैसा हो? आपकी माँ भी छेड़छाड़ की शिकार हुई है।वो भी तीन तीन बार। मैं 17 साल की थी, तब मणिपुर में मेरे साथ छेड़छाड़ हुई थी।फिर मेरे दोस्तों के साथ दिल्ली और हरियाणा में भी इससे जूझना पड़ा।यह काफी चौंकाने वाली बात है।सुबह के साढ़े आठ बजे थे।मैं रिक्शे से ट्रेनिंग केंप जा रही थी।तभी एक अनजान व्यक्ति ने मुझ पर हमला कर दिया।उसने मेरी छाती पर हाथ लगाया।मुझे गुस्सा आया।मैंने चप्पल हाथ में लेकर उसका पीछा किया।मगर वो भाग गया।अफ़सोस है कि उस वक्त कराटे की ट्रेनिंग मेरे काम न आ सकी।अब33साल की हूँ। लोग एक मेडलिस्ट के तौर पर मेरी तारीफ करते हैं।लेकिन मैं चाहती हूँ कि एक औरत के तौर पर भी मेरा उतना ही सम्मान हो।किसी इंसान के लिए हम नाटी और चपटी हैं, जिसे चिंकी कहकर बुलाया जाता है।किसी के लिए हमारा जिस्म ही सब कुछ है।

मेरे प्यारे बच्चों…. याद रखना, तुम्हारीे तरह हमारे पास भी दो ऑंखें और एक नाक है।बस हमारे जिस्म के कुछ हिस्से तुम से अलग हैं।इतना सा फर्क है हमारे और तुम्हारे बीच।यह मायने नहीं रखता कि महिलाएं क्या पहनें या कब घर से बाहर निकलें, क्योंकि यह दुनिया उतनी ही महिलाओं की है जितनी मर्दों की।मुझे आजतक यह समझ नहीं आया कि किसी महिला को उसकी मर्जी के खिलाफ छूने से मर्दों को क्या मिलता है? जब कभी तुम किसी महिला के साथ छेड़खानी होता हुआ देखना तो तुम उस महिला की मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाना।रोड पर चलता हुआ हर व्यक्ति मुझे पहचान नहीं सकता।जैसा धोनी और विराट को पहचानते हैं।लेकिन मैं यह भी डिज़र्व नहीं करती कि कोई मुझे चिंकी कहे।मैं यौन हमलों को लेकर लोगों को जागरूक करुँगी आओ हम ऐसा समाज बनाएं जहां लड़कियां हर जगह सुरक्षित रहें और उन्हें किसी तरह का डर न हो।”
…तुम्हारी माँ”

अपने छोटे छोटे बच्चों को इतने संवेदनशील मुद्दे पर इतनी बेबाकी से चिट्ठी लिखने वाली मेरी कॉम की इस जांबाज़ी को इस शेर के साथ मैं सलाम करता हूँ:-

अल्लाह ने जो मक़ाम औरत को दिया है
लाज़िम है, एहतराम करे खुद ये आदमी
नादान है वो शख्स जो ये सोचता नहीं।
औरत के ही वजूद से है नस्ल-ए-आदमी!

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